प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए, आज जानते हैं कि- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर S361, इसमें बताया गया है कि "शंकर भजन बिना नर, भक्ति न पावहि मोर ।" रामचरितमानस के इस अर्धाली का वास्तविक अर्थ क्या है? शंकर भजन क्या है? सिद्धि दायक शंकर भजन केे गुप्त भेद को समझे।
गुप्त भेद का प्रकाश करते गुरुदेव |
"औरउ एक गुप्त मत, सबहिं कहउं कर जोरि।
शंकर भजन बिना नर, भगति न पावहिं मोरि।।"
वास्तुत: भगवान के कथन का अभिप्राय कुछ अन्य था। गोपनीय बात सांकेतिक भाषा में कही गई है । वह है-- मैं सबको और भी एक गुप्त विचार कहता हूं । (वह यह है कि) किरणो (चैतन्य वृत्तियों- सूरत की धारों) को जोड़कर (एकत्र करके) कल्याण करने वाला भजन किए बिना (कोई) मेरी भक्ति नहीं पाता है। और गुरु महाराज से सुनें।
गुप्त भेद व्याख्या |
हम आशा करते हैं कि आप गुरु महाराज के प्रवचन को सुनकर समझ गए होंगे कि भगवान शंकर का असली भक्ति क्या है? शंकर भजन वास्तव में क्या है। निम्नोक्त तस्वीरें 1998 ईस्वी के शांति संदेश के मुख्य पृष्ठ का है।
गुप्त भेद व्याख्याता महर्षि मेंहीं |
सिद्धिदायक शंकर भजन के गुप्त भेद बताने वाले गुरु महाराज के चरणो में कोटि सह नमन फिर मिलते हैं । दूसरे प्रवचन में जय गुरु महाराज। प्रभु प्रेमियों! जिन लोगों को उपर्युक्त चित्र को पढ़ने में दिक्कत है। वे निम्नोक्त वीडियो देखें-
S361, सिद्धिदायक शंकर भजन के गुप्त भेद
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
11/29/2017
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
प्रभु प्रेमियों! कृपया वही टिप्पणी करें जो सत्संग ध्यान कर रहे हो और उसमें कुछ जानकारी चाहते हो अन्यथा जवाब नहीं दिया जाएगा।