महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" / 35
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान् प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर" जिसमें सद्गुरु महाराज के विविध विषयों पर, विविध समय एवं स्थानों पर दिए गए प्रवचनों का वृहद संग्रह है। इस संग्रहनीय पुस्तक के वें5 नंबर के प्रवचन के बारे में।
इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी ) में बताया गया है कि- खेती न करें तो क्या होगा ? अन्न नहीं होगा , भोजन समाप्त हो जाएँगे , संसार में कैसे जीवन रहेगा ? भूख लगने पर जो कष्ट होता है लोगों को मालूम है । भोजन नहीं मिलने पर जो नहीं खाने का वह खा लेता है , जो नहीं करने का वह कर लेता है। इन बातों की जानकारी के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- भोजन का महत्व, भोजन का महत्व पर कविता, स्वस्थ रहने के लिए भोजन का क्या महत्व है, भोजन का परिभाषा, हमारे भोजन का हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव, खाना, भोजन, लंच, डिनर, भोजन के स्रोत, आहार के प्रकार, भोजन के पोषक तत्व कौन कौन से हैं, संतुलित आहार का अर्थ, मेरा प्रिय भोजन, भोजन हमारे लिए क्यों आवश्यक है, संतुलित भोजन, आदि। इन बातों को जानने के पहले, आइए ! संत सदगुरु बाबा महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारी जनता ! आप सबलोग खेती करते हैं । यदि आपलोग खेती न करें तो क्या होगा ? अन्न नहीं होगा , भोजन समाप्त हो जाएँगे , संसार में कैसे जीवन रहेगा ? भूख लगने पर जो कष्ट होता है लोगों को मालूम है । भोजन नहीं मिलने पर जो नहीं खाने का वह खा लेता है , जो नहीं करने का वह कर लेता है । .... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस प्रवचन को समझते हुए पढ़ें-
३५. इस जीवन के बाद और क्या होगा ?
प्यारी जनता !
आप सबलोग खेती करते हैं । यदि आपलोग खेती न करें तो क्या होगा ? अन्न नहीं होगा , भोजन समाप्त हो जाएँगे , संसार में कैसे जीवन रहेगा ? भूख लगने पर जो कष्ट होता है लोगों को मालूम है । भोजन नहीं मिलने पर जो नहीं खाने का वह खा लेता है , जो नहीं करने का वह कर लेता है । विश्वामित्र बड़े तपी थे । उनके समय अकाल पड़ा था , तो किसी तरह प्राण बचाने के लिए लोग वृक्ष का छिलका , पत्ता खा गए । विश्वामित्र ऐसे तपस्वी होते हुए भी डोम के यहाँ कुत्ता का मांस लिया , सो भी चोर के रूप में । डोम के पहचानने पर विश्वामित्र बोला - मनुष्य मरने की अवस्था में प्राण बचाने के लिए , प्राण रक्षार्थ कोई भी उपाय कर सकता है । प्राण बचने पर अनेक धर्म हो सकते हैं , कहकर भोजन किया । भंगहा में एक माई दूसरे गाँव से आई थी । भूख सहन न कर सकी , तो अपने बच्चे को पकाकर खा गई । बिना खेती किए खाना कैसे होगा वस्त्र कैसे पहने , द्रव्य भी कहाँ से आवे ? केवल हीरा - मोती घर में रहे और खाने की चीज न रहे , तो भूखे मर जाएँगे । लोग इसी डर से खेती करते हैं कि खेती नहीं करेंगे तो भूखे रहना पड़ेगा । लड़के गुरुजी के डर से , घर में माता पिता के डर से पढ़ते हैं । इस अवस्था में नहीं पढ़ने से पीछे संसार में विद्याहीन होकर महादुःखी होगा ।
ऊँचे - ऊँचे हाकिम तक डर के मारे अपना-अपना काम करते हैं । ठीक - ठीक काम नहीं करने से पद से नीचे गिरा दिये जाएँगे , बदनामी होगी । इस प्रकार अपने जीवन में सुख से रहने के लिए लोग डर के मारे प्रबंध किया करते हैं । जो अपने लिए सुप्रबंध नहीं करते , वे दुःखी रहा करते हैं । डर बहुत बड़ी कड़ी छड़ी है । डर से लोग संसार का प्रबंध करते हैं , सुखी रहने के लिए । यह भी डर रखो कि इस जीवन के बाद और क्या होगा ? केवल शरीर को जला देने से ही काम समाप्त नहीं हो जाता , शरीर छूटने पर वह अपने कर्म के अनुकूल लोक में जाते हैं- पितृलोक , ब्रह्मलोक या नरक ; जैसा कर्म किया है उसके अनुकूल । फिर उसको भोगकर इस संसार में आता है । गाड़ी की पहिया के समान उलट - पुलट होता रहता है । प्रत्येक बार के जन्म में दुःख - सुख होता रहता है । ब्रह्मा के धाम में जाओ तो भी कर्म फल नहीं छूटता । इस प्रकार आवागमन का कष्ट लगा रहता है । सब सुकर्म या सब दुष्कर्म ही , किसी से हो संभव नहीं । सब कुछ - न - कुछ सुकर्म और दुष्कर्म करते हैं । आदमी कर्म से ही बुरे या भले का संग करता है । सुकर्म करके लोग स्वर्ग जाते हैं , किंतु सब दिन वहाँ रहना नहीं होता । संसार में एक जीवन के लिए प्रबंध करते हैं , किंतु इस एक जीवन के बाद फिर क्या होगा , इसके लिए भी करो ।
' निधड़क बैठा नाम बिनु , चेति न कर पुकार । यह तन जल का बुदबुदा , बिनसत नाहीं बार ॥ ' ' पाँचो नौबत बाजती , होत छतीसो राग । सो मन्दिर खाली पड़ा , बैठन लागे काग ॥ ' -संत कबीर साहब
पूर्ण ईश्वर का भजन करो तो सब दुःखों से छूट जाओगे ।
शरीर का यह स्थूल तल है , इसके भीतर जो प्रवेश करता है तो वह सूक्ष्मतल में जाता है । सूक्ष्मतल जहाँ तक है उसको पार करने पर कारण आता है । यह कारण भी छूट जाता है , तब महाकारण होता है । ये चारो जड़ शरीर हैं । जड़ अज्ञान , इसके बाद चेतन अर्थात् ज्ञानमय शरीर आता है । ये ही पाँच तल हैं । इन्हीं पाँचों तल से शब्द होते रहते हैं कोई कहे शब्द क्या होता है ? बिना शब्द के सृष्टि नहीं होती है । इन पाँचों के केन्द्र हैं । बिना केन्द्र के मण्डल नहीं बन सकता ।
बिना विद्या के कोई ईश्वर को , धर्म को नहीं समझ सकता । कबीर साहब नहीं पढ़े थे । उनका नकल नहीं हो सकता । सूर्य ईश्वर का बनाया हुआ है मनुष्य अपने से ऐसा कोई बना नहीं सकता । उसी प्रकार कबीर साहब बनाए हुए थे , उनको बनना नहीं था ।
मिट्टी से बर्तन बनता है । भूमंडल की थोड़ी - थोड़ी मिट्टी एक - एक बर्तन का कारण है । उन सब थोड़ी मिट्टी का खजाना भूमंडल है । जितनी मिट्टी से बर्तन बनता है और वह जहाँ से मिट्टी ली गई , वह भी स्थान है । तो जहाँ से मिट्टी ली गई , वह महाकारण है । सब मिट्टी कारण है और उसकी खानि महाकारण है । कारण बीज , सबब । जो कारण रूप में आता है वह फूट - फूट = अलग - अलग रूप में हो जाता है । यह व्यष्टि रूप है । जो समष्टि रूप में है , महाकारण है । तीन गुणों के मिलने को प्रकृति कहते हैं । उत्पत्ति , स्थिति और विनाश ; ये ही तीन गुण हैं । उत्पन्न करने की शक्ति रजोगुण , पालन करने की शक्ति सतोगुण , विनाश करने की शक्ति तमोगुण है ।
इन तीन गुणों से विशेष संसार में क्या है ? संसार में यही तीनों गुण काम करते हैं । तीन गुणों के समरूप जो है वह प्रकृति है । उत्पादक , पोषक , विनाशक ; तीनों का सम्मिश्रण रूप जो है , वह है प्रकृति । यही प्रकृति समरूप में रहने से महाकारण है । इसका नाप - जोख नहीं हो सकता । तीन शक्ति जहाँ समरूप में है , कुछ हलचल नहीं हो सकता । तीन छोरवाली रस्सी को तीन बराबर बलवाला आदमी खीचे तो हलचल नहीं होगा । उसी प्रकार तीनों गुण समरूप में रहने से महाकारण है । जब ईश्वर की मौज होगी , प्रकृति के किसी अंश पर मौज पड़ने से उस अंश का भाग कंपित हो जाएगा , यह हो जाएगा कारण और अकपित भाग महाकारण होगा । महाकारण के बिना कारण नहीं होगा । धान का बीज कारण है । धान बोने से अंकुर होता है , यह है सूक्ष्म । फिर धान का वृक्ष हो जाता है , तब होता है स्थूल । इस प्रकार प्रकृति के चार रूप हैं , यही रचना है । हमलोग प्रकृति के स्थूल भाग में हैं । अपने अंदर धंसो तो सबसे बारीक वह है , जो आँख बंद करने पर अंधकार मालूम पड़ता है । अंधकार से आगे बढ़ो तो सूक्ष्म में चले जाओगे । अंधकार छूटने पर क्या मिलेगा ? प्रकाश । अंधकार से जिसकी वृत्ति प्रकाश में गई , वह सूक्ष्म में चला गया । यही ऊपर उठना है । स्थूल भाग में रहने पर कितना दूर देखते हो , कितना दूर तक विचरण करते हो ! उसी प्रकार सूक्ष्म में जाने पर सूक्ष्म संसार को दूर तक देखोगे और विचरण करोगे । यह अवस्था जाग्रत , स्वप्न , सुषुप्ति - किसी में नहीं रहोगे , तीनों अवस्थाओं को पार कर जाओगे , तब पाओगे । स्थूल में ये तीन अवस्थाएँ हैं । किंतु सूक्ष्म में प्रवेश करने पर ये तीनों अवस्थाएँ छूट जाती हैं और वह अवस्था तुरीय होती है । तुरीय अवस्था का मैदान बहुत । सूक्ष्म , कारण , महाकारण इसी अवस्था में है । यह चौथी अवस्था है । अन्धकार से ऊपर उठने पर अपने शरीर का और संसार का ज्ञान नहीं रहता । इस शरीर के भी पाँच दर्जे हैं और संसार के भी पाँच दर्जे हैं । हमलोग जिसमें घूमते - फिरते हैं - कहाँ ? शून्य में । स्थूल आकाश बाहर में भी है और आपके अंदर में भी है । शून्य सूक्ष्म है , सूक्ष्म स्थूल में स्वाभाविक समाया हुआ रहता है । शरीर स्थूल है , इसमें शून्य का समाना स्वाभाविक है । लोहा जो ठोस है , उसमें भी शून्य है । शून्य नहीं रहने से अग्नि में डालने से वह लाल रंग का नहीं हो सकता , वह गर्म नहीं हो सकता । उसी प्रकार स्थूल में सूक्ष्म , सूक्ष्म में कारण , कारण में महाकारण एक दूसरे में समाए हुए हैं । इन दोनों में ( आपके शरीर और संसार में ) बड़ा मेल है । आप अपने शरीर के स्थूल भाग में रहते हैं , तो संसार के भी स्थूल भाग में रहते हैं । शरीर के सूक्ष्म भाग में जाने पर संसार के भी सूक्ष्म भाग में चले जाते हैं । शरीर के जिस तल पर जब जो रहता है , संसार के भी उसी तल पर तब वह रहता है । शरीर के जिस तल को जब जो छोड़ता है , संसार के भी उस तल को तब वह छोड़ता है । जिभ्या में चेतन रहने से मिश्री मीठी मालूम होती है । स्वप्न में जिभ्या से समेटकर भीतर में प्रवेश करता है , तब उस में मिश्री मीठी नहीं लगेगी , क्यों ? स्थूल मिश्री और स्थूल जिभ्या भी है , किंतु चेतना सिमटकर जाग्रत से स्वप्न में चली गई है , इसलिए स्थूल मिश्री का ज्ञान नहीं होता है ।
सृष्टि कम्पमय है । बिना हील - डोल के कुछ नहीं होता है । पहाड़ बढ़ता है और सड़ता भी है । यह भी कम्पन ही है । शरीर बढ़ता - घटता है । बिना कंपन से घटना - बढ़ना नहीं हो सकता । कंपन में शब्द अनिवार्य है । पाँच नौबत के पाँच केन्द्र हैं , पाँचो में शब्द होते हैं । जिस मंडल में रहते हो उस मंडल के शब्द का ज्ञान छोटा है । पाँचो मंडल के जो शब्द हैं , वह नौबत है । नौबत खुशयाली में बजाया जाता है । इस अंदर की नौबत में भी बहुत मीठा शब्द होता है । शब्द में अपनी ओर आकर्षण करने का गुण है , अपने उद्गम स्थान पर खींचता है । अपने अंदर रहकर सूक्ष्म मण्डल का जो शब्द सुनेगा , उसको क्या होगा ? सूक्ष्म के केन्द्र में उसकी वृत्ति चली जाएगी । दूसरी बात है ऊपर का शब्द नीचे दूर तक आता है । नीचे का शब्द ऊपर दूर तक नहीं जाता । इसलिए सूक्ष्म के केन्द्र पर पहुंचने पर कारण के शब्द को पहचानना , सुनना संभव है । इसी प्रकार कारण के केन्द्र पर पहुँचने पर महाकारण के शब्द को पकड़ना संभव है और महाकारण के केन्द्र पर पहुँचकर कैवल्य के शब्द को सुनना सम्भव है । इस पाँचवें केन्द्र में पहुंचने पर वह सतनाम को पहचानेगा , उसी को ऋषियों ने ॐ , उद्गीथ आदि कहा । उसका केन्द्र परमात्मा है । उसको पकड़ने से परमात्मा को प्राप्त कर लोगे । इसीलिए कबीर साहब कहा-
पाँचो नौवत बाजती , होत छतीसोराग । सो मंदिर खाली पड़ा , बैठन लागे काग ।।
तुम्हारे अंदर में ऐसे महान यंत्र हैं , जिनको पकड़ो तो ईश्वर की पहचान हो जाए । इनको काम में नहीं लिया तो शरीर नाश हो गया । यंत्र खराब हो गए , कौआ बैठने लगा , किस काम का ? इस शरीर पर कौआ बैठाओ या ईश्वर प्राप्त करो । एक केन्द्र से उसके ऊपर के केन्द्र के शब्द को पकड़ना शब्द की सीढ़ी पाना है । उस पर चढ्न जा सकता है । ऊपर पहुँचकर वह जीवन मुक्त होता । जबतक जीवन है , उसपर चढ़कर जाता है और आता । अन्तर में चलने के लिए भोजन पवित्र होना चाहिए । मांस - मछली का तो कहना ही क्या ? आपलोगों को पहले से ही मालूम है , जिस - जिस कुल में मांस - मछली खाने का चलन नहीं है , वह कुल बहुत उत्तम है । नशा में अपव्यय , अपवित्रता और रोग है । चावल को धोकर भी खाते हैं , किंतु तंबाकू को बिना धोए ही मुँह में डालते हैं । कोई भी नशा अच्छा नहीं है , इससे रोग उत्पन्न होते हैं । इसको नहीं खाना चाहिए । जो खाते हो , उन्हें छोड़ देना चाहिए । इसके अतिरिक्त और नशा है-
मद तो बहुतक भाँति का , ताहि न जानै कोय । तनमद मनमद जातिमद , मायामद सब लोय ।। विद्यामद और गुणहु मद , राजमद उनमद्द । इतने मद को रद्द करै , तब पावै अनहद ।।
अकबर के दरबार में तानसेन रहता था । वह गाने - बजाने में बहुत प्रवीण था । वह अकबर से हुक्म दिला दिया कि दिल्ली में कोई गाना गाने न पावे । जो गावे , उसको सजा मिल जाती थी । बैजूबाबरा जान - बूझकर शहर में गाना गाने लगा । गिरफ्तार करके दरबार में लाया गया । तानसेन से उसका मुकाबला हुआ । तानसेन हार गया । भगवान बुद्ध का वचन है - ' किसी से वैर मत करो । जो तुमसे वैर करता है , उससे प्रेम करो । वैर पर ख्याल मत करो । वह पीछे तुम्हारा मित्र बन जाएगा । इसी तरह जीवन जीना चाहिए । १८.११.१ ९ ५२ ई ०
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प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर" के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि भोजन पवित्र होना चाहिए । मांस - मछली का तो कहना ही क्या ? आपलोगों को पहले से ही मालूम है , जिस - जिस कुल में मांस - मछली खाने का चलन नहीं है , वह कुल बहुत उत्तम है । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त प्रवचन का पाठ करके सुनाया गया है।
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर |
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S35, Mai cooked and ate her baby । महर्षि मेंहीं प्रवचन १८-११-१९५२ई. बेलसरा, पूर्णियाँ, बिहार।
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/10/2020
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