प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर S174, इसमें बताया गया है कि मन मेरा मंदिर शिव मेरी पूजा का सही सरुप क्या है? हम लोगों का शरीर ही मंदिर है। बाहर के मंदिर में जाने की जरुरत नहीं है और हम मानसिक पूजा कैसे करें ? इसकी साधना की विधि क्या है? अपने शरीर की मंदिर में पूजा करने का सही विधान है ध्यान करना। ध्यान कैसे करेंगे ? जो ईश्वर का असली भक्ति होगा। ईश्वर-परमात्मा की भक्ति कैसे करें? ईश्वर-भक्ति का सही तरीका क्या है? यह प्रवचन बहुत लंबा है इस प्रवचन के पहले का भाग पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
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प्रभु प्रेमियों ! अब तक के प्रवचन में आपने जो पढ़ा उससे आपको बोध हो गया होगा कि हमारा शरीर किस प्रकार मन मंदिर के जैसा है। इस प्रवचन प्रवचन का 2 पृष्ठ और है उसे पढ़कर आप पूर्णतः जानकार हो जाएंगे।
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S 174, (ग) मन मेरा मंदिर शिव मेरी पूजा का सही सरुप क्या है? -सद्गुरु महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
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4/03/2018
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