S353, भाषा का महत्व, 'सुन ऐ तकि न जाईओ,..' पर व्याख्या,प्रेरक प्रसंग-महर्षि मेंहीं

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-S353, प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर S353, इसमें  बताया गया है कि भाषा का क्या महत्व है, ईश्वर भजन के लिए सभी भाषा उपयुक्त है। केवल ईश्वर भजन की जानकारी होनी चाहिए । गुरु के द्वारा जानकारी करने का तरीका मालूम होना चाहिए । ईश्वर सभी भाषा को समझते हैं। 'सुन ऐ तकि न जाईओ,..' भजन जो संत तुलसी साहब की वाणी है पर व्याख्या, साथ ही गुरु महाराज के सुक्तिकण और प्रेरक प्रसंग भी दिया गया है।

शांति संदेश कबर
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प्रवचन
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प्रवचन समाप्त
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     प्रभु प्रेमियों ! आप लोगों ने गुरु महाराज के प्रवचन का पाठ सुना, पड़ा । इससे आप जान गए होंगे ईश्वर भक्तों को किसी भाषा से द्वेष नहीं तथा संस्कृत भाषा का आदर गुरु महाराज करते हैं और ईश्वर भक्ति का उपदेश करते हैं। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है तो आप हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बताएं जिससे वह भी लाभांवित हो । सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने।


S353, भाषा का महत्व, 'सुन ऐ तकि न जाईओ,..' पर व्याख्या,प्रेरक प्रसंग-महर्षि मेंहीं S353, भाषा का महत्व, 'सुन ऐ तकि न जाईओ,..' पर व्याख्या,प्रेरक प्रसंग-महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 5/18/2018 Rating: 5

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