प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर S471, इसमें बताया गया है कि कबीर साहब की वाणी के भ्रामक विचार का यथार्थ रूप यानी कबीर साहब की बानी का हवाला देकर कहा जाता है कि आंख ना मूदों कान न रूदों तनिक कष्ट नहीं धारों। खुले नयन पहचानो, हंसि हंसि सुंदर रूप निहारों। ध्यान भजन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। जो खाया पिया वही भजन ध्यान है आदि।इन सभी व्याधियों का सही अर्थ क्या है? इस प्रवचन के लाष्ट भाग में इसका खुलासा आ गया है। इसके पहले संत मत के संबंध में और ईश्वर-भक्ति के संबंध में कहा गया है। यह प्रवचन कई भागों में है । इसके बाद का प्रवचन पढ़ने के लिए यहांंं दबाएं।
पूज्य गुरुदेव |
प्रवचन चित्र |
प्रवचन चित्र दो |
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि कबीर साहब की वाणी के भ्रामक विचार का यथार्थ रूप करता है । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का संका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
S471, (क) कबीर साहब की वाणी के भ्रामक विचार का यथार्थ रूप -सद्गुरु महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
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5/25/2018
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