प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर S136, इसमें बताया गया है कि संतमत का वास्तविक स्वरुप और साधना क्या है? संतमत सत्संग का मुख्य उद्देश्य इस लोक और परलोक में सुखी रहना है। हम लोग जब तक संसार में रहे, सुख से रहे और संसार से जाने के बाद परम सुखी हो जाएं। इसके लिए इस शरीर में रहते हुए, किन कर्तव्यों का पालन करना है। इसकी जानकारी के लिए ही संतमत सत्संग है। संतमत की बातों को समझने में ही पूरा जीवन बिता देना और उसके अनुसार आचरण नहीं करना मूर्खतापूर्ण बातें हैं। यही बातें इस प्रवचन में बताई गई है। इस प्रवचन के पहले भाग को पढ़ने के लिए । यहां दबाएं।
पूज्यपाद गुरुदेव
प्रवचन चित्र 3
कबीर भजन
प्रवचन समाप्त
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि संतमत का वास्तविक स्वरुप और साधना क्या है । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का संका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
S136, (ख) संतमत का वास्तविक स्वरुप और साधना -महर्षि मेंहीं//सत्संग ध्यान
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/12/2018
Rating: 5
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
प्रभु प्रेमियों! कृपया वही टिप्पणी करें जो सत्संग ध्यान कर रहे हो और उसमें कुछ जानकारी चाहते हो अन्यथा जवाब नहीं दिया जाएगा।