प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर S323 वां, इसमें बताया गया है कि आपस में मिलकर ईश्वर-स्तुति, संत-स्तुति और गुरु-स्तुति कीजिए। जो किसी का उपकार नहीं मानता, वह कीर्तघ्न कहा जाता है। ईश्वर की कृपा से हवा, धूप, मिट्टी आदि की सुविधा हम लोगों को प्राप्त है । इसलिए ईश्वर की स्तुति करें। गुरु के भी बहुत उपकार है, उनके बिना संसार में कैसे रहेंगे और संसार से पार कैसे जाएंगे । ईश्वर का भजन कैसे करेंगे? कौन सा मंत्र जाप करेंगे? आदि की जानकारी नहीं होती । इसलिए गुरु की भी स्तुति करें । संत लोग बीच-बीच में आकर चेताते रहते हैं । इसलिए संतों की भी स्तुति होनी चाहिए । इन सबसे बड़ी बात है । ईश्वर परमात्मा के ध्वनात्मक और वर्णनात्मक दोनों नामों का जाप होना चाहिए । दोनों नामों की पहचान होनी चाहिए, यही असली भक्ति है।
प्रवचन चित्र एक |
प्रवचन चित्र दो |
प्रवचन समाप्त |
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि आपस में मिलकर ईश्वर-स्तुति, संत-स्तुति और गुरु-स्तुति करना चाहिए। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
S323, आपस में मिलकर ईश्वर-स्तुति, संत-स्तुति और गुरु-स्तुति कीजिए -महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
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7/24/2018
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