प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर S467, इसमें बताया गया है कि मंदार हिल पर्वत भारतीय धर्म का अनोखा स्थान है, ऐतिहासिक स्थान है। इस स्थान के बारे में जनश्रुति है कि जब समुद्र मंथन हुआ था, तब इस पहाड़ को मथानी के रूप में प्रयोग किया गया था और उसके बाद यह पर्वत मंदारहिल में है। यहां समय-समय पर गुरु महाराज के बहुत सारे प्रवचन होते रहे हैं । यहां सत्संगी लोग भी बहुत हैं। कुछ ही दूर पर "महर्षि मेंही धाम" आश्रम भी है । इस प्रवचन में गुरु महाराज ने बताया है कि परमात्मा की भक्ति ईश्वर का स्वरूप जानकर ही करना चाहिए । ईश्वर का स्वरूप संतों की वाणी में कैसा है? गुरु के आज्ञा के अनुसार चलने से ही ईश्वर, परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है और हम लोग हर तरह के दुख से छूठ सकते हैं । गुरु महाराज की आज्ञा क्या-क्या है ? संसार में रहते समय हमको क्या करना चाहिए और जब इस संसार से विरत होने का समय हो अर्थात भजन करने का समय हो उस समय हम को किस तरह से रहना चाहिए आदि बातों का खुलासा इस वीडियो में है।
प्रवचन चित्र एक |
प्रवचन चित्र दो |
प्रवचन समाप्त |
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि ईश्वर भक्ति में स्तुति, प्रार्थना और उपासना आवश्यक है । इसके साथ ही ईश्वर का स्वरूप और सत्संग ध्यान की प्रेरणा भी आवश्यक है । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
S467, ईश्वर भक्ति में तीन बातें परमावश्यक- स्तुति, प्रार्थना और उपासना -महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/25/2018
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