महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" / 413
प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 19 वां,इसमें बताया गया है कि विंदू-नाद ध्यान क्या है? विंदू-नाद ध्यान की महिमा, विंदू-नाद ध्यान की परिभाषा।
प्रवचन चित्र एक |
गुरु कैसा होना चाहिए?
गुरु कितने हैं? गुरु कैसा होना चाहिए? सदाचार पालन, सत्संग, मोक्ष, चेतावनी, इन सब बातों को थोड़ा-थोड़ा समझाया गया है।
प्रवचन चित्र दो |
गुरु से संबंधित गुरु महाराज के सभी प्रवचनों को पढकप और इस प्रवचन को भी पूरे मन से पढ़कर आप गुरु से संबंधित बहुत बातें जान जाएंगे । इस ब्लॉग पर गुरुनाम से बहुत सारे प्रवचन है, उसको गुरु टैग में पढ़ें।
प्रवचन समाप्त |
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि विंदू-नाद ध्यान क्या है? विंदू-नाद ध्यान की महिमा, विंदू-नाद ध्यान की परिभाषा । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
S413, संत हों या उपदेशक- कर्मों के अनुसार गति सबकी -महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
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8/19/2018
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