S13 || शांति, तृप्ति और मुक्ति के लिए क्या करना चाहिए? || महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर प्रवचन नं. 13

महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर" /13

      प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि 

मेँहीँ

 सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 13 में  सत्संगईश्वर भक्ति, संतवाणी, उपदेश, मुक्ति, शांति, तृप्ति, ईश्वर स्वरूप, परमात्मा प्राप्ति, एकाग्रता, परम शांति,  एकविन्दुता इत्यादि के बारे में बताया गया है। आइये इन बातों को जानने के पहले सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज का दर्शन करें-

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 12 को पढ़ने के लिए  👉यहाँ दवाएँ ।  

१३. बंदीगृह में स्वतंत्रता नहीं
१३. बंदीगृह में स्वतंत्रता नहीं

Shaanti, tripti aur mukti ke lie kya karana chaahie?

     सदगुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज इस प्रवचन में  कहते हैं कि-- 1. सत्संग में क्या होता है?  2. ईश्वर भक्ति में क्या होता है?   3. सत्संग में संत-वचनों का पाठ क्यों होता है?  4. मुक्तिकोपनिषद का उपदेश क्या है?   5. मुक्ति क्या है?   6. शांति, तृप्ति और मुक्ति के लिए क्या करना चाहिए?  7. भगवान श्री राम का स्वरूप कैसा है?  8. परमात्मा स्वरुप का ग्रहण कैसे होगा?   9. एकाग्रता के लिए क्या करना चाहिए?   10. परम शांति को प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए?  11. ध्यान में सफलता क्यों नहीं मिलती है?  12. एकविन्दुता प्राप्त करने से क्या-क्या होता है?  इत्यादि के बारे में।

‎१३. बंदीगृह में स्वतंत्रता नहीं

प्यारे लोगो ! 

     

सत्संग में क्या होता है?
सत्संग में क्या होता है?

     1. हमलोगों के सत्संग से ईश्वर-भक्ति का प्रचार होता रहता है। इसी विषय का हमलोग मनन करते रहते हैं।  2. ईश्वर- भक्ति में तीन बातें परमावश्यक रूप से होती हैं- स्तुति, प्रार्थना और उपासना। इन तीनों में से किसी को हटाने से भक्ति पूरी नहीं होती। इसलिए हमलोग नित्यप्रति नियमित रूप से इन तीनों कामों को करते रहते हैं। 

     3. सन्तों के वचनों का पाठ किस उद्देश्य से किया 

संत वचनों का पाठ क्यों करते हैं?
संत वचनों का पाठ क्यों 

 जाता है? यही कि हमलोग जानें कि इस देश में हमारे पहले जो बड़े-बड़े साधु, सन्त, महात्मा, अवतार वगैरह हुए हैं, उनका विचार ईश्वर और उनकी प्राप्ति के विषय में क्या है? इसीलिए हमलोग अवतारों और सब संतों की वाणियों का पाठ सत्संग में किया करते हैं।  4. मुक्तिकोपनिषद् भारती-सन्तवाणी से पहले की है। इसमें श्रीराम हनुमानजी को उपदेश देते हैं- नित्यानन्द प्राप्त करने के हेतु ईश्वर की भक्ति करके मुक्ति को प्राप्त करो।

S13, Shriram ji and Hanuman dialogue, praise, solicitation and salvation --सतगुरु महर्षि मेंहीं प्रवचन। श्री राम का हनुमान को उपदेश पर चर्चा करते गुरुदेव
हनुमान को उपदेश 

     5. जीव शरीर और संसार में बन्दी हो गया है, उसका इससे छूट जाना उसकी मुक्ति है। इस बन्दीगृह में पड़े रहने से स्वतंत्रता नहीं है। स्वतंत्रता नहीं रहने से अवश्य कष्ट होता है। शरीर और इन्द्रियों के घेरे में रहने से चेतन-आत्मा विषयों की ओर रहती है। विषयों में रहने से चंचलता रहती है। और तृष्णा बढ़ जाती है। चेतन-आत्मा तृष्णा की डोरी पर दौड़ती रहती है; फिर शान्ति, तृप्ति और मुक्ति कहाँ?  

योगी लोग क्या करते हैं? चित्रवृति का निरोध क्यों करते हैं?
योगी क्या करते हैं? 

     6. इसी शान्ति , तृप्ति और मुक्ति के लिए कहते हैं कि चित्त की वृत्ति का निरोध करो। शरीर में रहते हुए इसका निरोध होने पर जीवन्मुक्ति तथा शरीर छूटने पर विदेहमुक्ति होती है। 

     पुनः श्रीराम ने बताया-'मेरे स्वरूप का ध्यान करो। 

राम का स्वरूप कैसा है?  भगवान राम के अव्यक्त स्वरूप कैसा है?
राम का स्वरूप कैसा है?

     7. मेरा स्वरूप अशब्द, अस्पर्श, अरूप, अविनाशी, अस्वाद, अगन्ध, अनाम और गोत्रहीन, दुःख-हरण करनेवाला है, मेरे इस तरह के रूप का नित्य भजन करो। 

अशव्दमस्पर्शमसूपमव्ययं तथारसं 
                                         नित्यमगन्ध वच्च यत। 
अनामगोत्रं ममरूपमीदृशं भजस्व 
                                         नित्यं पवनात्मजार्तिहन्।। 


ध्यानाभ्यास कैसे करें?
ध्यानाभ्यास कैसे करें?

 8. इस ध्यान में बड़ी एकाग्रता की जरूरत है; क्योंकि एकाग्रता में सुरत का सिमटाव, सिमटाव में उसकी ऊध्वगति और ऊध्र्वगति से ह मायिक आवरणों से पार कर परमात्म-स्वरूप का ग्रहण हो सकेगा। चित्त-धर्म- निरोध वा एकाग्रता के लिए प्राण-स्पन्दन और वासना; इन दोनों में से किसी एक को रोको। प्राण का हिलना बन्द करो, तो वासना नष्ट हो जायगी और वासना रोकने पर प्राण-स्पन्दन रुक जायगा। 

एकतत्व  के अभ्यास से क्या होता है?
एकतत्व  का अभ्यास

     9. इसके लिए एकतत्त्व का दुढ़ अभ्यास करो। ऐसा करने से जैसे बहुत जाड़े के समय (हेमन्त ऋतु) में कमल का नाश हो जाता है, इसी तरह जो एकतत्व का दृढ़ अभ्यास करेगा, तो वह काम-वासना का नाश करेगा और वही परमात्मस्वरूप को प्राप्त कर परम शान्ति को भोगेगा।  

ध्यान की सफलता का राज, ध्यान अभ्यास में क्या करते हैं?
ध्यान की सफलता का राज

10. इसके लिए अध्यात्म विद्या की शिक्षा, साधु -संग, वासना-परित्याग तथा प्राणस्पन्दन-निरोध- ये चार बातें आवश्यक हैं। इन चार बातों को त्यागकर जो हठात् ही चित्तवृत्ति का निरोध करना चाहता है, वह इस काम में असफल होता है।  11.जिस प्रकार कमल-नाल में बहुत कोमल सूत होते हैं, उनमें मस्त हाथी को नहीं बाँध सकते, उसी प्रकार दुराग्रह से मन को नहीं रोक सकतेप्राण-स्पन्दन-निरोध तथा सुरत के पूर्ण सिमटाव के लिए एकविन्दुता प्राप्त करो।  

एकविन्दुता प्राप्ति का लाभ, ध्यान अभ्यास में एक बिंदु का प्राप्त करने से क्या लाभ होता है?
एकविन्दुता प्राप्ति का लाभ

12. मन की एकविन्दुता में एक- ही-एक का ग्रहण होता है। इसी में ध्यान स्थिर होता है, इसी में ज्ञान की वृद्धि होती है और बढ़ते-बढ़ते जहाँ तक बढ़ना चाहिए, बढ़ जाता है। इससे मोक्ष मिलेगा, जिसमें एक परमात्मा का स्वरूप ही रह जाता है। तब संसार को देखते हुए भी साधक ब्रह्म को ही देखता है, तब वह ब्रह्म-स्वरूप ही हो जाता है ।∆

‎(यह प्रवचन बाँंका जिला, मंदार पहाड़ पर श्रीकीर्तिनारायण सिंह द्वारा आयोजित दिनांक-३१-३- १९५१ ई.के प्रातकाल के सत्संग में हुआ था।) 

नोट- उपर्युक्त प्रवचन में  हेडलाइन की चर्चा,  सत्संग,  ध्यान,   सद्गगुरु,   ईश्वर,   अध्यात्मिक विचार   एवं   अन्य विचार  से  संबंधित बातें उपर्युक्त लेख में उपर्युक्त विषयों के रंगानुसार रंग में रंगे है।


     इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 14 को पढ़ने के लिए 👉 यहां दबाएं। 


     प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने  ईश्वर का यथार्थ स्वरूप कैसा है? मोक्ष की प्राप्ति कैसे हो सकती है? मोक्ष प्राप्ति के साधन क्या है? मोक्ष किसे कहते हैं? इत्यादि बातों को जाना। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का कोई संका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।


महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर में प्रकाशित प्रवचन निम्न प्रकार से है-


महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर प्रवचन 13 चित्र एक
महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर प्रवचन 13 चित्र एक

महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर प्रवचन 13 चित्र दो
महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर प्रवचन 13 चित्र दो

निम्न वीडियो में उपरोक्त प्रवचन का पाठ किया गया है-


महर्षि मेँहीँ साहित्य सुमनावली 


सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर
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