महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" /262
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 262 वां, भारत देश के, उत्तर प्रदेश राज्य के देवरिया जिलांतर्गत, अखिल भारतीय संतमत सत्संग महाधिवेशन में दिनांक- 03-04-1967 ई. को तरिया सुजान ग्राम में प्रात: काल हुआ था। --पूज्यपाद स्वामी श्री संतसेवी जी महाराज ।
इस संतमत प्रवचन में आप जानेंगे--ईश्वरीय ज्ञान से समस्याओं का समाधान, ईश्वरीय ज्ञान का अधिकारी,ईश्वरीय ज्ञान, मनुष्य होना चाहिए, मनुष्य कैसा होना चाहिए, मनुष्य को कैसा होना चाहिए, मनुष्य जीवन कैसा होना चाहिए, मनुष्य का स्वभाव कैसा होना चाहिए, मनुष्य का चरित्र कैसा होना चाहिए, मनुष्य का आहार कैसा होना चाहिए, आदि के बारे में।
ईश्वर भक्ति के अधिकारी |
Dispel misconception, मिथ्या धारणा को दूर करें।
सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि-- ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी मनुष्य मात्र है। चाहे वह किसी जाति का हो, मनुष्य होना चाहिए। जो पहुंचे हुए संत होते हैं, उनके संग को ही सत्संग कहते हैं। सत्संग भगवान का निज अंग है। मनुष्य माता के गर्भ से ही दुख उठाते हुए आगे बढ़ता है और विभिन्न तरह के विकारों में इसके विभिन्न तरह के भोगों को भोगता है। संतों का ज्ञान इनसे छूटने के लिए होता है । जो सत्संग से मिलता है। सत्संग से ईश्वर स्वरुप का ज्ञान होता है और ईश्वर-भक्ति करके मोक्ष। इन बातों को बिशेष रूप से जानने के लिए इस प्रवचन को पूरा पढें--
ईश्वर भक्ति और मनुष्य |
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी मनुष्य मात्र है। चाहे वह किसी जाति का हो, मनुष्य होना चाहिए आदि बारे में। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का संका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।
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S262, Dispel misconception, मिथ्या धारणा को दूर करें, सद्गुरु महर्षि मेंहीं प्रवचन।
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
11/05/2019
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