S268, (ख) उपकृत को आवश्य कृतज्ञ होना चाहिए -सद्गुरु महर्षि मेंहीं

     प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-"महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर S268 के शेष भाग को।  पहले भाग को पढ़ने के लिए        
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प्रवचन चित्र 3
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प्रवचन क्षेत्र 4
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प्रवचन समाप्त
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     प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के प्रवचन से आपने जाना के ईश्वर हमारे सबसे बड़े परोपकारी हैं ।  अतः हमें उनका गुणगान-स्तुति करके अपनी कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का कोई संका या प्रश्न है तो कमेंट करें। हम गुरु महाराज के ही शब्दों में आपके शंका का समाधान करना चाहेंगे। फिर मिलेंगे दूसरे पोस्ट में । जय जय गुरुदेव।



S268, (ख) उपकृत को आवश्य कृतज्ञ होना चाहिए -सद्गुरु महर्षि मेंहीं S268, (ख) उपकृत को आवश्य कृतज्ञ होना चाहिए  -सद्गुरु महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 4/01/2018 Rating: 5

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