S448, (क) संत सुखी मन जीती हो-सद्गुरु महर्षि मेंहीं

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर S448, इसमें  बताया गया है कि संत को छोड़कर संसार में कोई सुखी नहीं है। 

संत सुखी मन जीती हो-सद्गुरु महर्षि मेंहीं
संत सुखी मन जीती हो-सद्गुरु महर्षि मेंहीं


जितने भी मनुष्य शरीर धारी है, कोई भी सुखी नहीं है। सब कोई-न-कोई दुख से परेशान है। तो क्या ऐसा सुख नहीं है? जिसमें  कभी दुख न हो, निरंतर सूख-ही-सुख  हो ? कभी दुःख का मुख नहीं देखना पड़े। ऐसा सुख संतों दृष्टि में ईश्वर प्राप्ति में है । वह सुख कैसा होता है? उसका नमूना क्या है ? इन सब बातों को समझाने के साथ ही ईश्वर भक्ति के लिए ईश्वर का सरुप के बारे में संत क्या कहते हैं? यह प्रवचन दो भागों में पढ़ेंगे। पहला पोस्ट


प्रवचन चित्र
प्रवचन चित्र

प्रवचन चित्र दो
प्रवचन चित्र दो

     प्रभु प्रेमियों ! आप लोगों ने गुरु महाराज के प्रवचन पढ़कर जाना कि तन धर सुखिया कोई ना देखा जो देखा सो दुखिया हो और सुखी कौन है ? तो संत सुखी मन जीती हो। इस प्रवचन के शेष भाग पढ़ने के लिए।         
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S448, (क) संत सुखी मन जीती हो-सद्गुरु महर्षि मेंहीं S448, (क) संत सुखी मन जीती हो-सद्गुरु महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 4/12/2018 Rating: 5

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