महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" / 503
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 503 वां, भारत देश के, बिहार प्रांत के मुरादाबाद जिलांतर्गत मुरादाबाद सत्संग मंदिर में आयोजित संतमत सत्संग में दिनांक- 2-10-1949 ई. को अपराह्न काल में हुआ था।
इस संतमत प्रवचन में आप जानेंगे--संतों की अमृतवाणी में मनुष्य शरीर की वास्तविक स्थिति, प्रभु-भक्ति की आवश्यकता, ईश्वर भक्ति की संपूर्णता, भजन के परहेज, मरने के बाद दु:खी न होना, शब्द ध्यान, सत्संग की आवश्यकता और भोजन, आदि के बारे।सत्संग की आवश्यकता पर प्रवचन करते हुए गुरुदेव |
Need of satsang and food
सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- संतों की अमृतवाणी में मनुष्य शरीर की वास्तविक स्थिति है? प्रभु-भक्ति की आवश्यकता क्यों है? ईश्वर भक्ति की संपूर्णता कहां होगी? भजन के परहेज क्या-क्या है? मरने के बाद दु:खी न होना पड़े इसके लिए क्या करना चाहिए? शब्द ध्यान क्या है? सत्संग की आवश्यकता और साधकों को कैसा भोजन करना चाहिए? पूरी जानकारी के लिए इस प्रवचन को पूरा पढ़ें-
सत्संग की आवश्यकता पर प्रवचन चित्र |
सत्संग की आवश्यकता पर प्रवचन चित्र समाप्त |
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि मनुष्य शरीर की वास्तविक स्थिति, प्रभु-भक्ति की आवश्यकता, ईश्वर भक्ति की संपूर्णता, भजन के परहेज, मरने के बाद दु:खी न होना, शब्द ध्यान। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
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S503, Need of satsang and food, गुरुदेव के प्रवचन दि. 2-10-1949 ई.
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/22/2019
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