महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" / 502
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 502 वां, भारत देश के, बिहार प्रांत के रोहतास जिलांतर्गत डेहरी-ऑन-सोन ग्राम में आयोजित संतमत सत्संग में दिनांक- 28-09-1949 ई. को अपराह्न काल में हुआ था।
इस संतमत प्रवचन में आप जानेंगे-- संतों की अमृतवाणी से ईश्वर स्वरूप का वर्णन प्रमाणिक माना जाता है। ज्ञान चार प्रकार के होते हैं। दान-पुण्य करने से मन की मलिनता मिटती है। शरीर कितने प्रकार का होता है। ध्यान अभ्यासी साधुओं की महिमा,क्या खायें और क्यों खायें।, आदि के बारे।ज्ञानमुद्रा में प्रवचन करते हुए |
शरीर के प्रकार और ध्यान अभ्यास
सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- संतों की अमृतवाणी से ईश्वर स्वरूप का वर्णन प्रमाणिक माना जाता है। ज्ञान चार प्रकार के होते हैं। दान-पुण्य करने से मन की मलिनता मिटती है। शरीर कितने प्रकार का होता है। ध्यान अभ्यासी साधुओं की महिमा,क्या खायें और क्यों खायें। पूरी जानकारी के लिए इस प्रवचन को पूरा पढें-
ईश्वर स्वरूप और ध्यान योग प्रवचन चित्र 1 |
ईश्वर स्वरूप और ध्यान योग प्रवचन चित्र दो |
ईश्वर स्वरूप और ध्यान योग प्रवचन समाप्त |
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि वेद, पुराण और संतमतानुसार, सत्संग की महिमा क्या है । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
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S502, Body type and meditation practice, सदगुरु महर्षि मेंहीं प्रवचन दि. 28-09-1949 ई.
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/21/2019
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