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S245 दिमाग की ताजगी के लिए क्या करें || Dimaag kee taajagee ke lie kya karen

महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर / 245

     प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 245  में दिमाग की ताजगी के लिए क्या करें? मैं अपने दिमाग को तरोताजा कैसे करूं? दिमाग की कमजोरी का देसी इलाज क्या हो सकता है? सत्संग का लाभ क्या है? आदि बातों की जानकारी दी गई है। इन बातों को जानने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज का दर्शन करें। 

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 244 को पढ़ने के लिए 👉 यहाँ दवाएँ। 

महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर 245
महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर 245

दिमाग की ताजगी के लिए करें सत्संग

     प्रभु प्रेमियों  !  सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज इस प्रवचन ( उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरुवचन, उपदेशामृत, ज्ञानोपदेश, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में निम्नलिखित पाराग्राफ नंबरानुसार  निम्नोक्त विषयों की चर्चा की है--  1. कोई भी जमीन पुण्यमयी कैसे होती है?   2. गुरु महाराज कैसे प्रसंन्न होते हैं?   3. सत्संग से हम क्या सीखते हैं?   4. अध्यात्मिक दृष्टि से  बच्चे कौन है?   5. अध्यात्मिक दृष्टि से सयाने कौन हैं?   6. संसार में कैसे रहना चाहिए?  7. सत्संगियों को संसार में कैसे रहना चाहिए?   8. साधु-महात्मा, संन्यासी का क्या कर्तव्य है?   9. गुरु गोविन्द सिंह बेटे के मरने पर भी शोक क्यों नहीं किए?  10. वेद का उपदेश क्या है?  11. संसार में कैसे रहना चाहिए?   इत्यादि बातें। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए निम्नलिखित प्रवचन को मनोयोग पूर्वक विचारते हुए बार- बार पूरा पढ़ें-

२४५. मस्तिष्क को ताजा बनाने के लिए सत्संग

महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर S245

 प्यारे लोगो !

    1. जिस क्षेत्र में हमलोग सत्संग कर रहे हैं, वह बड़े महत्त्व का है। यहाँ भगवान बुद्ध बहुत सत्संग किया करते थे। यहाँ निकट ही वेणुवन में भगवान बुद्ध सत्संग कराया करते थे। यहाँ और भी पहाड़ पर उनका स्थान है। यह पुण्यभूमि है।
प्रसंन्न मुद्रा में गुरुदेव
प्रसंन्न मुद्रा में गुरुदेव

     2 आपलोग जो सत्संग-प्रेमी हैं, घर के कामों को छोड़कर, विहार के इस कठिन महँगाई के समय में भी खर्च करके यहाँ आए हैं। यह देखकर मेरे चित्त को बहुत ही प्रसन्नता होती है। हमलोग क्यों आए? इसलिए कि जहाँ ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध सत्संग करते थे, वहाँ सत्संग करें। 

     3. सत्संग से हम क्या सीखते हैं? बच्चे खेल खेलने में-खिलौने में खुश होते हैं। वे कुछ वर्ष खुश रहते है। उनको समझाया-बुझाया जाता है, अभिभावक की ओर से उनको भय दिखाया जाता है, दबाव डाला जाता है और विद्याभ्यास में लगाया जाता है। जैसे-जैसे वे विद्याभ्यास में बढ़ते हैं, वैसे-वैसे उनके ज्ञान का विकास होता है। वे समझते हैं कि बचपन का खेल भले ही छूट गया। वह सदा का सुखदायक नहीं था। पढ़-लिख लेने के बाद कर्तव्य और अकर्तव्य को समझने लगते हैं तथा उचित विचार कर उचित कर्म को करते हैं। ऐसे ही वे चलते हैं।

अध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में बच्चे
अध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में बच्चे

     4. यहाँ ऐसे बच्चे हैं, जो देखते हैं कि केवल संसार के ही काम हैं। जो संसार के आगे का ख्याल नहीं रखते, वे भी बच्चे हैं। मैं कहूँगा, जिनको जीवन के बाद का ख्याल नहीं है, चाहे वे कितनी अधिक उम्र के हो गए हों, फिर भी वे बच्चे हैं, चाहे वे मेरी उम्र (८३ वर्ष) के हों वा मेरी उम्र से अधिक के हों।

     5. विद्या से अनुचित और अनीति को समझते हैं, फिर भी उन्हीं में चलते हैं। किन्तु सत्संग से ज्ञान सीखकर जो संसार के बाद को भी सोचते हैं, उनको पता लगता है कि यह शरीर छोड़कर जाना है। लेकिन पता नहीं, कहाँ जाना है। जाना जरूर है। कहाँ जाना है? पता नहीं। रास्ता मालूम नहीं, स्थान मालूम नहीं, कितनी चिन्ता की बात है? इस बात को जो चेतते हैं, वे ही सयाने होते हैं। वे ही बालपन के खेल को छोड़ते हैं। इन्हीं बातों को समझाने के लिए संत लोग संसार में विचरते हैं।

      6. संतों ने संसार के खेल को देखा और कहा कि इसको छोड़ देना अच्छा है। एक बात तो यह है कि संसार के कामों से उपराम होना और दूसरी बात यह है कि संसार के कामों में लगे रहने पर भी संसार से उपरामता रहे। संसार के कामों में त्रुटि नहीं होने देकर उसमें उपरामता रहे, यह उत्तम है। जो संसार के  कामों को छोड़कर रहते हैं, वे भी संसार के कामों और प्रबन्धों को छोड़कर नहीं रह सकते।

संसार के काम
संसार के काम
      7.मनुष्य को समझ में आवे कि रास्ता क्या है? जाना कहाँ है? सबसे उत्तम स्थान कहाँ है? यह भी संसार का ही काम है। और कामों से मन को हटा लिया जा सकता है, लेकिन इससे हटा नहीं सकते। बड़े-बड़े संतों, महात्माओं को ऐसा ही देखा गया। वे लड़ाई के मैदान में नहीं गए, खेती करने नहीं गए, नौकरी नहीं की, लेकिन यह काम अपने ऊपर ले लिया कि 'चलना है रहना नहीं, चलना बिस्वाबीस।' यह ख्याल देते रहे। चलना किस रास्ते से है। कहाँ जाना है? इस बात को समझाते हैं। यह समझाना निर्वाण में जाकर नहीं होता, संसार में रहकर ही करते हैं। दूसरे वे हैं, जो संसार के कामों को करते हुए अपने चेतते हैं और दूसरों को चेताते हैं, जैसे भगवान श्रीकृष्ण।

     भगवान बुद्ध संन्यासी हुए, औरों को भी उन्होंने संन्यासी बनाया। भगवान बुद्ध के समय में जितने संन्यासी हुए उतने किन्हीं के समय में नहीं। केवल संन्यासी ही नहीं बनाए, राजा और सेनापति भी उनके शिष्य थे। उनको उन्होंने संन्यासी नहीं बना लिया, उस तरह की शिक्षा दी। 

'कर ते कर्म करो विधि नाना। सुरत राख जहँ कृपानिधाना।।

     8. युद्ध भी करो और स्मरण भी करो।  'तन काम में मन राम में।' करम करै करता नहीं, दास कहावै सोय।' - कबीर साहब कर्म करते थे। उन्होंने अपने जीवन यापन के लिए किसी दूसरे पर भार नहीं दिया। 'थोड़ा बनिज बहुत है बाढ़ी उपजन लागे लाल मई।' संतोष उनको बहुत था। थोड़ा-सा काम करते थे, अपना जीवन-यापन जिससे हो। मतलब यह कि जो संन्यासी हो जाते हैं, उनका कर्तव्य हो जाता है कि वे संसार के पार को बतावें। संसार में सदा रहना नहीं है।

गूरू गोविन्द सिंह जी और संत महात्मा
गूरू गोविन्द सिंह जी और संत महात्मा
     9. समर्थ रामदास ऐसे थे कि वे शिवाजी राव को चलाते थे। राजा को भी अपनी राय देते थे। शिवाजी ने कहा कि मैं तप करूँगा। समर्थ ने कहा- मैं तुम्हारा तप करता हूँ, तुम तलवार लो। गुरु गोविन्द सिंहजी महाराज ने दोनों काम करके दिखाया-भजन भी, तलवार भी। गुरु गोविन्द सिंहजी महाराज कभी अनीति में नहीं गुजरे। बेटे मर गए, लेकिन उन्होंने शोक नहीं किया। उन्होंने समय को देखा। संसार में युद्ध-ही-युद्ध होता है

      10. वेद के उपदेश से यही मालूम हुआ कि इन्द्रिय का सुख, सुख नहीं है। संसार के पदार्थों में सुख नहीं, ईश्वर-भजन में सुख है। भगवान बुद्ध के वचन का धम्मपद ग्रन्थ से पाठ हुआ, उसमें भी यही आया, 'ईश्वर-भजन करो'- ऐसा तो उसमें नहीं आया, लेकिन यह आया कि संसार के सुखों में आसक्त मत होओ। तब क्या करो ? संसार के सुख में नहीं फँसकर, शरीर-सुख से जो विशेष सुख है, उस ओर चलो। निर्वाण की ओर चलो। यह संसार जो दीप-टेम के समान जलता है, सदा के लिए बुझ जाए, उधर चलो। हमलोग इन्हीं बातों को याद दिलाने और जो नहीं सुने हैं, उनको सुनाने के लिए यह सत्संग करते हैं।

    3. जिनको सत्संग का चसका लग जाता है, वे दूर-दूर से आते हैं। उनके मस्तिष्क को ताजा बनाने के लिए सत्संग होता है। सुनकर लोग विद्वान होते हैं। भगवान बुद्ध ने जो वचन कहे थे, लोगों ने सुने, याद रखे। लिखे तो पीछे गए।

     11. उपनिषद् के पाठ में आया कि भवसागर को पार करने के लिए सूक्ष्म मार्ग का अवलम्बन करो। स्थूल रास्ते पर चलकर संसार भर ही रहोगे, बाहर नहीं जा सकते। संसार का मार्ग तो यह है कि यहाँ से कलकत्ता जाओ और कलकत्ता से यहाँ आओ। यह स्थूल मार्ग है। दूसरा मार्ग है कि शरीर छूटने के बाद-संसार से जाने के बाद आराम से रहना हो। इसके लिए जो उत्तम उत्तम कर्म हैं, स्थूल दर्जे के ही हैं। फिर भी उत्तम हैं, उनको करो। सूक्ष्म मार्ग बहुत उत्तम है। 

'लखे रे कोई बिरला पद निर्वाण।

     यह बाहर में नहीं है, भीतर का रास्ता है। उसपर पैर से चला नहीं जाता। सूक्ष्म अवलम्ब लेकर चलना होता है।

 'बिन पावन की राह है, बिन बस्ती का देश। 
बिना पिण्ड का पुरुष है, कहै कबीर सन्देश।।'

     इस सत्संग से ये ही सब बातें बतायी जाएँगी। मैं धीरे-धीरे बतलाऊँगा कि सूक्ष्म मार्ग कहाँ है, उसका आरम्भ कहाँ से है और अंत कहाँ है? मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मैं बतलाऊँगा कि जहाँ से आपको फिर लौटकर इस संसार में आना नहीं होगा। n


(यह प्रवचन नालन्दा जिलान्तर्गत भगवान महावीर और भगवान बुद्ध के विहार स्थल राजगीर में ५८वाँ अखिल भारतीय संतमत सत्संग का विशेषाधिवेशन दिनांक २८.१०.१९६६ ई० के प्रातःकालीन सत्संग में हुआ था।) ∆


नोट- उपर्युक्त प्रवचन में  हेडलाइन की चर्चा,  सत्संग,  ध्यान,   सद्गगुरु,   ईश्वर,   अध्यात्मिक विचार   एवं   अन्य विचार  से  संबंधित बातें उपर्युक्त लेख में उपर्युक्त विषयों के रंगानुसार रंग में रंगे है।


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर S246 को पढ़ने के लिए   👉  यहां दबाएं।


'महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर' ग्रंथ में  प्रकाशित उपरोक्त प्रवचन निम्नलिखित प्रकार से है--

महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर 245,क
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर 245,क

महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर 245,ख
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर 245,ख



     प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके हमलोगों ने जाना कि  संसार में कैसे रहना चाहिए?  साधु महात्माओं का क्या कर्तव्य है? हमको इस संसार में सब दिन नहीं रहना है ।   इस संसार के पार में जाना है । इस बात को बार-बार याद करने के लिए सत्संग करना चाहिए इत्यादि बातें इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में इस प्रवचन का पाठ किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर
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S245 दिमाग की ताजगी के लिए क्या करें || Dimaag kee taajagee ke lie kya karen S245   दिमाग की ताजगी के लिए क्या करें  ||  Dimaag kee taajagee ke lie kya karen Reviewed by सत्संग ध्यान on 5/24/2024 Rating: 5

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