S246 शरीर में नौ द्वार || दशम द्वार, मोक्ष का द्वार और आज्ञाचक्र क्या है? Dasham dvaar, Moksh ka dvaar aur Aagyaachakr
महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर / 246
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दशम द्वार, मोक्ष का द्वार और आज्ञाचक्र क्या है?
२४६. शरीर में नौ द्वार
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! |
1. अभी जो मैंने मान-पत्र सुना तथा स्वागताध्यक्ष का भाषण सुना तो दोनों के सुनने से मैं नहीं कह सकता कि प्रसन्नता मुझे नहीं हुई। मान-पत्र स्वाभाविक ही बढ़ा-चढ़ाकर लिखा जाता है। ऐसे मजमें में जो स्वागताध्यक्ष होते हैं, वे बड़े भाग्यवान होते हैं।
साधकों का दैनिक व्यवहार |
2. आध्यात्मिकता के वास्ते शारीरिक सुख छोड़ दिया जाय, हो नहीं सकता। अवश्य ही भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, वशिष्ठ आदि जैसे महात्मा हों, तो वे दुःख को सुख बना लेते हैं। इतना सुख अवश्य चाहिए, जितने सुख से ध्यान में मन लगे। उतना सुख यहाँ है। अभी मौसम भी ऐसा है कि बाहर में सो भी सकते हैं। प्रत्येक मनुष्य को अपने बिछावन के लिए कम्बल या सन की चट्टी अवश्य रखनी चाहिए। १९०७ ई० में मेरे पास कोई सामान नहीं था। आरा जिला के धरकन्धा में एक संत थे, मैं वहाँ गया। उन्होंने मुझे मिट्टी का पात्र दिया। चार हाथ का एक अंगोछा बिछावन के लिए दिया। इस ख्याल से यदि सत्संग में लोग जायें कि वहाँ बिछावन मिल जाएगा, अन्य सत्संगियों के लोटे और बिछावन से काम चला लेंगे, तो यह ठीक नहीं। यहाँ पर इतना भी बहुत है। यह ऐसा है, जो नहीं होने योग्य, सो हुआ है।
क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का ज्ञान |
3. एक साधु ने मुझसे पत्र लिखकर कहा- 'तुम राम को मनुष्य मानते हो, इसलिए तुमने राम की निन्दा की है।' संयोगवश जिस दिन मैं यहाँ आ रहा था, वे मुझसे मिलने आश्रम आ गये। मैंने कहा, आप आ गए, यह आपने बहुत कृपा की। मेरी यात्रा उत्तम हो गयी। मैंने उनसे कहा-राम की निन्दा कौन कर सकता है?
राम ने भूप का या नर-शरीर को धारण किया। नर-शरीर को नर-शरीर अवश्य कहा जाएगा और जिसने शरीर धारण किया, उन्हें राम अवश्य कहा जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का वर्णन किया है। उन्होंने कहीं नहीं कहा कि क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ में भेद नहीं है, बल्कि उन्होंने यह कहा- सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ मैं हूँ। केवल क्षेत्र की महिमा कही जाय और क्षेत्रज्ञ की महिमा नहीं कही जाय, ऐसी बात कहने से अपने को भटकाना है।
भगवान् राम का उपदेश |
4. भगवान राम ने नर-शरीर धारण कर बहुत विलक्षण सब काम किए। उनका उपदेश सब काल के लिए बहुत उपयोगी है। उन्होंने सबसे पहले उपदेश दिया कि-
'बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथहिं गावा ।।' (रामचरिमानस, उत्तरकाण्ड)
मनुष्य-तन पाना बड़ा भाग्य है। शूद्र, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य सबका बड़ा भाग्य है। जिस इन्द्रिय से जो काम होना चाहिए, वह सबको मौजूद है। जो नीच है, वह कान से नहीं सुनकर पैर से नहीं सुनता है। कोई चीज खाओ, सबको एक ही स्वाद मालूम होगा। सबको भगवान ने बनाया है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने भगवान की भक्ति की, पूज्य हो गए। उसी तरह कबीर साहब, रैदास आदि भी भजन करके पूज्य होग गएं। आज रैदासजी महाराज कहते हैं।
मोक्ष का द्वार क्या है? |
5. विशेष बात इस शरीर में क्या है? इसमें साधनों का धाम और मोक्ष का द्वार है। समूचा शरीर द्वार नहीं है। इस शरीर में नौ द्वार हैं। ये जो नौ द्वार हैं, इनमें से कोई द्वार मोक्ष का द्वार नहीं है। संतवाणी से पता चलता है कि जो नौ द्वारवाले शरीर में रहते हैं, वे संसार में दौड़ते रहते हैं। इस शरीर में दसवाँ द्वार भी है। उस द्वार से गमन करो, तो निज घर में पहुँच जाओगे। यह शरीर स्थूल घर है। संत जो कहते हैं कि इसमें दशम द्वार है, यह बहुत कम लोग जानते हैं। बाहर से अपने को समेटकर अन्तर प्रविष्ट होकर अन्तर्मुखी जहाँ तक होना होता है, वही दसवाँ द्वार है। यह दसवाँ द्वार ही मोक्ष का द्वार है। इसमें शरीर नहीं जाता, मन अवश्य जाता है। यह इस द्वार की विलक्षणता है।
6. जाग्रत में आप जहाँ रहते हैं, स्वप्न में आप वहाँ नहीं रहते। कण्ठ से स्वर का उच्चारण होता है। स्वर के बिना व्यंजन का उच्चारण नहीं हो सकता। प्रत्येक व्यंजन के साथ स्वर अवश्य रहता है। स्वर से व्यंजन हटाकर बोलिए, तो बोल नहीं सकते। स्वप्न में जब हम बोलते हैं, तो हमको जानना चाहिए कि हम कण्ठ में हैं। दसवें द्वार को योगियों के यहाँ आज्ञाचक्र कहा जाता है। यही है अन्तज्योंति और अन्तर्नाद का द्वार।
अभिनंदन पत्र पाठ |
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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