S01 (क) ईश्वर कैसा है? ईश्वर को कौन जान सकता है? ईश्वर का स्वरूप || Nature of God

महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर / 01

     प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 1 में संतों की दृष्टि में ईश्वर कैसा है? ईश्वर भक्ति कैसे कर सकते हैं? आदि बातों की जानकारी दी गई है। इन बातों को जानने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज का दर्शन करें। 

महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर प्रवचन नंबर  १. संतमत में ईश्वर की स्थिति
१. संतमत में ईश्वर की स्थिति

संतों के अनुसार ईश्वर स्वरूप और अन्य आवश्यक बातें--

      प्रभु प्रेमियों  !  सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज इस प्रवचन ( उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरुवचन, उपदेशामृत, ज्ञानोपदेश, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में निम्नलिखित पाराग्राफ नंबरानुसार  निम्नोक्त विषयों की चर्चा की है--  1संतों की दृष्टि में ईश्वर कैसा है?   2. ईश्वर है इसका विश्वास कैसे करें?     3. ईश्वर को कौन जान सकता है?    4. ईश्वर को इन्द्रियों से क्यों नहीं जान सकते है?    5. हमारी आंतरिक और बाहरी इन्द्रियाँ  कौन- कौन न सी है?     6. चेतन-आत्मा क्या है?    7. ईश्वर या परमात्मा का क्या नाम है?     आदि बातें। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए निम्नलिखित प्रवचन को मनोयोग पूर्वक पूरा पढ़ें-


१. संतमत में ईश्वर की स्थिति


ईश्वर स्वरूप पर चर्चा करते गुरुदेव और भक्त

प्यारे लोगो !

1. ईश्वर कैसा है? 

     संतमत में ईश्वर की स्थिति का बहुत दृढ़ता के साथ 

ईश्वर कैसा है?
ईश्वर कैसा है? 

 विश्वास है ; परन्तु उस ईश्वर को इन्द्रियों से जानने योग्य नहीं बताया गया है । वह स्वरूपतः अनादि और अनंत है , जैसा कि संत सुन्दरदासजी ने कहा है- 

व्योम को व्योम अनंत अखण्डित , 
                                आदि  न  अन्त  सुमध्य  कहाँ  है ।

2. ईश्वर है इसका विश्वास कैसे करें?

     किसी अनादि और अनंत पदार्थ का होना बुद्धि - संगत प्रतीत होता है । मूल आदि तत्त्व कुछ अवश्य है । वह मूल और आदि तत्त्व परिमित हो ससीम हो , तो सहज ही यह प्रश्न होगा कि उसके पार में क्या है ? ससीम को आदि तत्त्व मानना और असीम को आदि तत्त्व न मानना हास्यास्पद होगा । 

व्यापक व्याप्य अखण्ड अनंता ।
                              अखिल   अमोघ  सक्ति  भगवन्ता ॥
अगुन   अदभ्र   गिरा   गोतीता । 
                              सब   दरसी    अनवय     अजीता । 
निर्मल     निराकार      निर्मोहा । 
                                नित्य    निरंजन  सुख   संदोहा ॥ 
प्रकृति पार  प्रभु  सब उरवासी । 
                                ब्रह्म   निरीह विरज  अविनासी ॥

     उपर्युक्त चौपाइयों में मूल आदि तत्त्व का वर्णन गोस्वामी तुलसीदासजी ने किया है । संतों ने उसे ही परमात्मा माना है । गुरु नानकदेवजी ने कहा है-

अलख अपार अगम  अगोचरि, 
                                  ना   तिसु    काल    न   करमा । 
जाति अजाति अजोनी सम्भउ, 
                                 ना    तिसु   भाउ     न    भरमा ॥ 
साचे सचिआर विटहु कुरवाणु, 
                                  ना तिसु रूप बरनु नहि रेखिआ ।
साचे      सबदि        नीसाणु ॥ 

      संतों का यह विचार है कि जो सबसे महान है , जो सीमाबद्ध नहीं है , उससे कोई विशेष व्यापक हो , सम्भव नहीं है । जो व्यापक - व्याप्य को भर कर उससे बाहर इतना विशेष है कि जिसका पारावार नहीं है , वही सबसे विशेष व्यापक तथा सबसे सूक्ष्म होगा । यहाँ सूक्ष्म का अर्थ ' छोटा टुकड़ा ' नहीं है , बल्कि ' आकाशवत् सूक्ष्म ' है । जो सूक्ष्मातिसूक्ष्म है , उसको स्थूल या सूक्ष्म इन्द्रियों से जानना असम्भव है ।


3ईश्वर को कौन जान सकता है?  

     वह ईश्वर आत्मगम्य है । केवल चेतन - आत्मा से जाना
ईश्वर को कौन जानेगा?
ईश्वर को कौन जानेगा
 जाता है । शरीर के भीतर आप चेतन - आत्मा हैं और उस आत्मा से जो प्राप्त होता है , उसी को परमात्मा कहते हैं रूप , रस , गन्ध , स्पर्श और शब्द ; इन पाँचों में से प्रत्येक को ग्रहण करने के लिए जो - जो इन्द्रिय हैं अर्थात् आँख से रूप , जिभ्या से रस , नासिका से गन्ध , त्वचा से स्पर्श और कान से शब्द ; इन इन्द्रियों के अतिरिक्त और किसी से ये पाँचो विषय ग्रहण नहीं किए जाते हैं । इसी प्रकार जो चेतन - आत्मा के अतिरिक्त और किसी से नहीं पकड़ा जाय , वही परमात्मा है । 

4. ईश्वर को इन्द्रियों से क्यों नहीं जान सकते है? 

     जो जितना विशेष व्यापक होता है , वह उतना ही सूक्ष्म होता है । परमात्मा अपनी सर्वव्यापकता के कारण सबसे विशेष सूक्ष्म है । स्थूल यंत्र से सूक्ष्म तत्त्व का ग्रहण नहीं हो सकता है । एक बहुत छोटी घड़ी के महीन कील - काँटों को बढ़ई और लोहार की सँड़सी , पेचकश आदि मोटे - मोटे यंत्रों से घड़ी में बिठाने और निकालने के काम नहीं हो सकते उसके लिए यंत्र भी महीन ही होते हैं ।

5.हमारी आंतरिक और बाहरी इन्द्रियाँ  कौन- कौन न सी है?  

     हमारी भीतरी और बाहरी सब इन्द्रियाँ - नेत्र , कर्ण ,

इन्द्रियाँ और ईश्वर
इन्द्रियाँ और ईश्वर
नासिका , जिह्वा , त्वचा , मुख , हाथ , पैर , गुदा और लिंग - बाहर की इन्द्रियाँ तथा मन , बुद्धि , चित्त और अहंकार - अन्तर की इन्द्रियाँ ; सब - की - सब उस दर्जे की सूक्ष्म नहीं हैं जो परमात्म - स्वरूप को ग्रहण कर सकें । ये तो परमात्मा की सूक्ष्मता के सम्मुख स्थूल हैं । भला ये उसको कैसे ग्रहण कर सकती हैं । 

ओsम्संयोजत उरुगायस्य जूतिंवृथाक्रीडन्तं  मिमितेनगावः ।  परीणसं कृणुते तिग्म शृंगो दिवा  हरिर्ददृशे  नक्तमृतः ॥                                               ( सा ० , अ ०८ , मं ०३ )

      इस मन्त्र के द्वारा वेद भगवान उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यो ! हाथ , पैर गुदा , लिंग , रसना , कान , त्वचा , आँख , नाक और मन - बुद्धि आदि इन्द्रियों के द्वारा ईश्वर को प्रत्यक्ष करने की चेष्टा करना झूठ ही एक खेल करना है ; क्योंकि इनसे वह नहीं जाना जा सकता है । वह तो इन्द्रियातीत है ।

           यन्मनसा   न  मनुते  येनाहुर्मनो  मतम् । 
           तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥
                                 -कनोपनिषद् ( खण्ड १ , श्लोक ५ )

    अर्थात् जो मन से मनन नहीं किया जाता , बल्कि जिससे

असली ईश्वर कौन है?
असली ईश्वर कौन है? 
 मन मनन किया हुआ कहा जाता है , उसी को तू ब्रह्म जान । जिस इस ( देशाकालाविच्छिन्न वस्तु ) की लोक उपासना करते हैं , वह ब्रह्म नहीं है ।

नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन । यमेवैषवृणुते   तेन   लभ्यस्तस्यैष  आत्मा  विवृणुतेतर्नूस्वाम् ॥   -कठोपनिषद् अ०१ , वल्ली २, श्लोक २३ )

     अर्थात् यह आत्मा वेदाध्ययन - द्वारा प्राप्त होने योग्य नहीं है और न धारणा - शक्ति अथवा अधिक श्रवण से ही प्राप्त हो सकता है , यह ( साधक ) जिस ( आत्मा ) का वरण करता , उस आत्मा से ही यह प्राप्त किया जा सकता है । उसके प्रति यह आत्मा अपने स्वरूप को अभिव्यक्त कर देता है। 



6. चेतन-आत्मा क्या है? 

     अब यह साफ तरह से जना देता हूँ कि अनादि आदि परम तत्त्व परमात्मा केवल चैतन्य आत्मा से ही ग्रहण होने , 

वेदाध्ययन और आत्मा
वेदाध्ययन और आत्मा

पहचाने जाने योग्य है जबतक शरीर और इन्द्रियों के सहित चैतन्य आत्मा रहेगी , तबतक परमात्मा को नहीं पहचान सकेगी । आँख पर पट्टी बँधी हो , तो आँख में देखने की शक्ति रहने पर भी बाहरी दृश्य नहीं देखा जाता और आँख पर रंगीन चश्मा लगा रहने पर बाहर का यथार्थ रंग नहीं देखने में आता है , चश्मे के रंग के अनुरूप ही रंग बाहर में देखने में आता है । आँख पर से पट्टी और चश्मा उतार दो , बाहर के यथार्थ रंग देखने में आएंगे । शरीर और इन्द्रियों के आवरण से छूटते ही या यों कहो कि चैतन्य आत्मा पर से शरीर और इन्द्रियों की पट्टी और चश्मे उतरते ही चैतन्य आत्मा को परमात्म - स्वरूप की पहचान हो जाएगी । शरीर , इन्द्रिय और स्थूल , सूक्ष्म आदि मायिक सब आवरणों के उतर जाने पर , जो इस पिण्ड में बच जाता है , वही चेतन - आत्मा है और इनसे जो पहचाना जाता है , वही अनादि आदि तत्त्व परमात्मा है । 

7. ईश्वर या परमात्मा का क्या नाम है?  

      मैं तो इस अनादि आदि परमतत्त्व को परमात्मा कहता हूँ और कहता हूँ कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी - अपनी रुचि के अनुसार इस मूल अनादि परमतत्त्व को जिस नाम से पुकारना चाहे , पुकारे । परन्तु यथार्थ में यह अवर्णनीय अनिर्वचनीय है । 

        राम    स्वरूप   तुम्हार , वचन अगोचर  बुद्धि  पर । 
        अविगत अकय अपार , नेति नेति नित निगमकह ॥
                                              -गोस्वामी तुलसीदासजी ।
    
ईश्वर प्राप्ति के लाभ
ईश्वर प्राप्ति के लाभ

    अविगत गति कछु कहत न आवै ।   ज्यो गूंगहि मीठे फल को रस, अन्तरगत   ही  भावै ॥  परम स्वाद सबही जु निरन्तर, अमित तोष उपजावै ॥  मन  बानी को अगम  अगोचर, सो   जानै  जो  पावै ॥
                                      -भक्त सूरदासजी

क्रमशः    

इस प्रवचन का शेषांश पढने के लिए   👉  यहां दबाएं। 

( यह प्रवचन ग्राम डोभाघाट (जिला पूर्णियाँ) अ० भा० सं० स० विशेषाधिवेशन के अवसर पर दिनांक ५.१२.१६४६ ई० के सत्संग में हुआ था ।) 

नोट- उपर्युक्त प्रवचन में  हेडलाइन की चर्चा,  सत्संगध्यान,   सद्गगुरु,   ईश्वर,   अध्यात्मिक विचार   एवं   अन्य विचार  से  संबंधित बातें उपर्युक्त लेख में उपर्युक्त विषयों के रंगानुसार रंग में रंगे है।


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर S02 को पढ़ने के लिए   👉  यहां दबाएं।


शांति-संदेश* तथा 'महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर' ग्रंथ में  प्रकाशित उपरोक्त प्रवचन निम्नलिखित प्रकार से है--

S01, (ख) God's position and nature of practice in Santmat  -महर्षि मेंहीं। संतमत में ईश्वर की स्थिति प्रवचन चित्र 1
संतमत में ईश्वर की स्थिति प्रवचन चित्र एक


S01, (ख) God's position and nature of practice in Santmat  -महर्षि मेंहीं। संतमत में ईश्वर की स्थिति प्रवचन चित्र दो
संतमत में ईश्वर की स्थिति प्रवचन चित्र दो


अमृता भारती मेंही सत्संग सुधा सागर प्रवचन नंबर 1 क
अमृता भारती मेंही सत्संग सुधा सागर प्रवचन नंबर 1 क
अमृता भारती मेंही सत्संग सुधा सागर प्रवचन नंबर 1 ख
अमृता भारती मेंही सत्संग सुधा सागर प्रवचन नंबर 1 ख



      प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके हमलोगों ने जाना कि ईश्वर क्या है? ईश्वर की शक्ति क्या है? संतों के अनुसार ईश्वर कौन है? ईश्वर की उत्पत्ति कैसे हुई? ईश्वर है या नहीं? हम ईश्वर में कैसे विश्वास कर सकते हैं? हम भगवान में विश्वास क्यों करते हैं? आप कैसे दिखाते हैं कि आप भगवान में विश्वास करते हैं? ईश्वर को कैसे देखा जा सकता है? मनुष्य भगवान को क्यों नहीं देख सकता है? मनुष्य ईश्वर को पाने में सफल क्यों नहीं होता? ईश्वर की पहचान कैसे हो सकती है? क्या वही चेतन आत्मा है? चेतन के 3 प्रकार कौन से हैं? चेतन से आप क्या समझते हैं? आत्मा प्रकार की होती हैं? आत्म चेतन का अर्थ, आत्म चेतन का गुण, उपनिषद के अनुसार आत्मा क्या है? वेदो में आत्मा कहां होती है? आत्मा का आकार कितना है?  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में इस प्रवचन का पाठ किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर
      प्रभु प्रेमियों ! उपरोक्त प्रवचन  'महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर"' से ली गई है। अगर आप इस पुस्तक से महान संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस  जी महाराज के  अन्य प्रवचनों के बारे में जानना चाहते हैं या इस पुस्तक के बारे में विशेष रूप से जानना चाहते हैं तो    👉 यहां दबाएं।

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S01 (क) ईश्वर कैसा है? ईश्वर को कौन जान सकता है? ईश्वर का स्वरूप || Nature of God S01 (क)   ईश्वर कैसा है? ईश्वर को कौन जान सकता है? ईश्वर का स्वरूप  ||  Nature of God Reviewed by सत्संग ध्यान on 5/09/2018 Rating: 5

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