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S02 (क) सत्संग से क्या लाभ है || Satsang se kya labh hota hai || pravachan २४-१२-१६५० ई P

महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर / 02 

     प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेँहीँ  सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 02, के बारे में। इस प्रवचन में  आपस में मेल से रहते हुए सत्संग और भजन करने से देश और समाज को बहुत फायदा है। वेद, पुराण और संतमत सभी एकमत से ऐसा कहते हैं। आदि बातों की विस्तार से जानकारी दी गई है। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें। 

     इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नं. S01, को पढ़ने के लिए   👉यहां दबाएं

सत्संग से लाभ पर प्रवचन देते सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज
राष्ट्र को प्रभावित करने वाले कारक पर चर्चा करते गुरुदेव

सत्संग सुनने से देश को क्या फायदा है?

      प्रभु प्रमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष)  में कहते हैं - 1. गुरु महाराज कैसे प्रसन्न होते हैं?    2. सत्संग में कैसे बैठना चाहिए?    3. सत्संग ध्यान से देश, समाज और परिवार वालों का कल्याण कैसे होता है?    4. सत्संग की महिमा पर साधु प्रेम दास और प्रसाशन संस्मरण,    5. सत्संग में क्या पाठ करना चाहिए?     6. साम्प्रदायिक भाव कैसे मिटेगा ? 7. एकता से लाभ और फूट से क्या-क्या हानि हो सकती है?     8. संतमत की उपयोगिता कैसे है?    9. आनंदपुर्वक कैसे रह सकते हैं?    10. सुख शांति प्राप्त करने का राज क्या है?     11. संसार में कैसे रहना चाहिए?     12. ईश्वर कैसा है?    13. स्वाबलंबी जीवन का महत्व ।     14ईश्वर भक्ति के बिना जीव का कल्याण नहीं है। 15. लड़ाई- झगड़ा मिटाने का उपाय इत्यादि बातों  के बारे में।  इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए निम्नलिखित प्रवचन को मनोयोग पूर्वक पूरा पढ़ें-


२. वेद पुरान संतमत भाखौं

S02, (क) Factors affecting national unity. । महर्षि मेंहीं प्रवचन । २४.१२.१६५०ई. मोकमा, पूर्णियाँ, बिहार


 प्यारे भाइयो !
     

     1.  आपलोगों के दर्शन से बहुत प्रफुल्लित होता हूँ । आप सब लोगों को मैं वन्दगी और प्रणाम करता हूँ ।

सद्गुरु महर्षि मेंहीं
गुरु महाराज
     2. अररिया इलाके में मैं बुलाया गया था । वहाँ एक पुराने सत्संगी थे , अब उनका शरीर नहीं है । मिड्ल स्कूल में सत्संग का प्रबंध था । मैं स्वभावतः अपने जैसा ( धीरे - धीरे ) बोला । लोग कुछ दूर कुछ नजदीक थे । कुछ सुने , कुछ नहीं सुने , इसलिए लोगों ने हल्ला किया । वहाँ लाउड स्पीकर का प्रबंध नहीं था । उसी प्रकार मैं जोर से नहीं बोल सकता । आपलोग नजदीक - नजदीक बैठिए तो अच्छा है ।

     3. आज आप क्या देखते हैं ? देश में अनेक ख्याल - विचार - धाराएँ हैं । एक कांग्रेस है , जिसका राज्य शासन है , दूसरा सोसलिस्ट - समाजवादी और तीसरा साम्यवादी है । ये तीनों हमसे पूछते हैं कि तुम क्या कहते हो ? तुम शरीर और संसार से अपने को छुड़ाने के लिए कहते हो , इससे देश को क्या फायदा होगा ? इस प्रश्न का उत्तर सुन लीजिए और इसमें अगर देश को कोई फायदा हो तो चुन लीजिए । इस सत्संग के उपदेशों में क्या है , सुनिये । जो सदाचारी होगा , वह शरीर और संसार को छोड़ेगा , वही आत्मज्ञान में ऊँचा होगा और माया के आवरणों को पार करेगा । अपने को ऊँचा चढ़ावेगा , ऊँचे - से - ऊँचा पद जिसे मुक्ति कहते हैं , प्राप्त करेगा । जिसमें सदाचार की कमी है , वह मुक्ति - लाभ नहीं कर सकेगा । सदाचार जिस समाज में होगा , उसकी सामाजिक नीति बहुत अच्छी होगी । जहाँ की सामाजिक नीति उत्तम होगी , वहाँ की राजनीति अनुत्तम हो , संभव नहीं । सब सदाचारी होंगे, तो समाज अच्छा होगा । अच्छे समाज जब राजनीति को बनाएँगे , तो वह कितनी अच्छी होगी ! यह मेरी युक्ति नहीं , बाबा देवी साहब की है । उन्होंने यह युक्ति १९०९ ई० में बतलाई थी ।

गुरु महाराज भक्तों सहित
गुरुदेव भक्तों सहित
     4. सुल्तानगंज से पश्चिम बरियारपुर रेलवे स्टेशन के पास पुरुषोत्तमपुर बिलिया एक ग्राम है । वहाँ प्रेम दास नाम के मेरे एक प्रेमी साधु रहते थे । वे मुझे अपनी कुटिया में बुलाकर सत्संग करवाए । अंग्रेजों का समय था । कांग्रेस का दमन हो रहा था संयोग से दारोगा साहब उसी ओर आ पहुँचे । देखा कि सामियाना टंगा है । चौकीदार को कहा कि साधु को बुलाओ । प्रेम दास गए । दारोगाजी ने पूछा- ऐ साधु ! क्या हो रहा है ? प्रेम दास ने उत्तर दिया- मेरे गुरु – साधु महाराज आए हैं , सत्संग होगा । ईश्वर का नाम लेंगे , उन्हें याद करेंगे । दारोगा साहब दफादार को वहीं छोड़ गए । दफादार सत्संग सुनकर बोले ऐसा सत्संग हो तो चोरी - डकैती सब बंद हो जाय । हमलोगों को पहरा भी नहीं देना पड़े । मैंने उनसे कहा आप तो समझे , अब दारोगा साहब को जाकर कहिए । सत्संग में पाँच पाप - झूठ , चोरी , नशा , हिंसा और व्यभिचार छोड़ने के लिए कहते हैं । अगर सब सदाचारी बन जाएँगे , तो वहाँ झगड़ा मिट जाएगा । मुकदमा वगैरह भी नहीं होगा । शासन अच्छा हो जाएगा । शासनकर्ता को बहुत सुविधा होगी । इसलिए आपलोगों से प्रार्थना है कि अपने देश को ऊँचा उठाने के लिए सदाचारी बनिए । 

      5. अभी वेद - मंत्र - केन और कठ उपनिषदों के श्लोकों का पाठ हुआ । संत कबीर तथा गुरु नानक आदि संतों के वचनों का पाठ भी आपलोगों ने सुना । वेदमंत्र पढ़ना नहीं जाने तो संतों की वाणी को पढ़कर जान सकेंगे ।    

 
विविध रूपों में सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज
विविध रूपों में गुरुदेव
    6.
इन सबको पढ़कर विचारिए कि सबका मत एक है अथवा नहीं ? अगर है तो जिस पदार्थ को प्राप्त करने कहते हैं , वह एक ही है या नहीं ? काम का है या नहीं ? काम का पदार्थ होगा तो लेना चाहिए , नहीं तो नहीं । अगर सबका मत नहीं मिलता है तो जो उसमें श्रेष्ठ जाना जाता है , उसे ही मानेंगे । अगर सबका एक ही मत हो तो साम्प्रदायिक भाव मिट जाए । यह जो अलग - अलग मत का नाम सुनते हैं , इससे मालूम होगा कि इन सबका अलग - अलग मत है । लेकिन जैसे कोई गोरे , कोई काले हैं , किंतु मनुष्य ही हैं ; वैसे ही सब संतों का मत है । सब एक ही मत के लोग हैं । तो फिर साम्प्रदायिक भाव के कारण जो लड़ाई होती है , मिट जाएगी । 

     7. बहुत पहले राजा लोग देश को टुकड़े - टुकड़े करके अलग - अलग रहते थे । आपस में लड़ते - झगड़ते थे तो दूसरे देश के लोग आकर चढ़ बैठे । घर फूटे गँवार लूटे ' - यह बात बहुत दिनों से चली आ रही है । किंतु वे इस ज्ञान को अपने काम में नहीं लाए । पचास वर्षों से बेशी कोशिश करने के बाद अब अपना देश स्वतंत्र हुआ है । शासनकर्ता कहते हैं- साम्प्रदायिकता का भाव एक होने नहीं देता । हमलोगों की तरफ देखिए - मोक्ष , परलोक , ईश्वर को रखते हुए संसार के सारे लोग एकता में रहें , साम्प्रदायिकता का भेद - भाव मिटकर एक हो जाए तो उसका नाम क्या कहा जायगा ? संतमत । यह कोई नयी बात या नया नाम नहीं है-

 "यहाँ न पच्छपात कछुराखौं । बेद पुरान संतमत भाखौं ।"
गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज
गो. तुलसी दास जी

 गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामायण में लिखा है । ' घर फूटे गँवार लूटे ' कहकर भी जैसे उसे कार्यान्वित नहीं करते ; उसी प्रकार संतमत को मानते हुए भी भेद - भाव रखते हैं , यह अच्छा नहीं ।

       8. संतमत में चलते - चलते ईश्वर को प्राप्त कर लेंगे , मोक्ष प्राप्त होगा और आवागमन से मुक्त हो जाएंगे । इस सत्संग में घर छोड़ने के लिए नहीं कहा जाता । कमाई करके खाओ । 

    9. इच्छाओं को समेटते-समेटते एकदम कम कर दो तो आनंदपूर्वक रह सकोगे । अगर इच्छाओं को बढ़ाओ तो संसार की सब संपत्ति मिलने पर भी शान्ति नहीं मिलेगी । 

बसुधा  सपत  दीप  है  सागर,  कढ़ि  कंचनु  काढ़ि धरीजै ।। 
मेरे ठाकुर के जन इनहु न बांछहि हरिमांगहि हरिरसु दीजै ।।

        10. आनंदपुर्वक कैसे रह सकते हैं? जो इच्छाओं को बढ़ाते हैं , वे इससे दुःख पाते हैं । 

भक्ति का मारग झीना रे । 
नहिं अचाह नहिं चाहना चरनन लौ लीना रे 

संत कबीर साहब
संत कबीर साहेब
     11. संत कबीर साहब भी कहते हैं - इच्छारहित मन बने । यह देह संसार में आकर अकेले नहीं रहेगा । इसके लिए कपड़े - भोजन चाहिए । परिवार में लोगों की संभाल बड़ा कठिन है । बाबाजी बन जाओ , स्त्री , पुत्र आदि अगर नहीं हो , शादी नहीं हुई हो तो अकेले ही रहो , जैसे मैं । परंतु दोनों ओर कठिनाइयों के समुद्रों को ही पार करने पड़ते हैं । वा दोनों ओर अग्निकुण्डों में गिरकर ही अपने को सुरक्षित रखना होता है । गृहस्थी में रहना किले के अंदर रहकर लड़ना है , परंतु गृहस्थी छोड़कर रहना , मैदान में रहकर लड़ना है ।

शूर  संग्राम   को  देखि  भागै  नहीं । 
                                 देख    भागै    सोइ   शूर    नाहीं ॥
काम औ क्रोध मद लोभ से जूझना।
                                 मड़ा घमसान  तहँ    खेत  माहिं ।। 
साँच औ  शील संतोष शाही  भये । 
                                नाम   शमशेर  तहँ   खूब   बाजै ॥ 
कहै  कबीर  कोई जूझि हैं  शूरमा । 
                                कायराँ    भीड़  ता  तुरत  भाजै ॥

     अच्छी बात है कि गृहस्थी में रहकर लोग भजन करें । यदि मेरी निस्वत पूछो कि तुमने गृहस्थी क्यों छोड़ी ? तो जानना चाहिए कि पहले जैसी जानकारी थी , वैसी आजकल नहीं है , बदल गयी है । परंतु जिस व्रत को धारण करना चाहिए , उसको निभाना चाहिए ।  


भगवान बुद्ध
भगवान बुद्ध

      12. बौद्ध संन्यासी नागसेन ने राजा मिलिन्द से पूछा - आप किस पर आए ? राजा बोला - रथ पर । क्या पहिया रथ है ? धूरी रथ है ? जुआ रथ है ? पहिए धूरी आदि जितने यंत्र हैं , सब मिलाकर रथ है । उसी प्रकार आपका शरीर है । वैसे कोई अकेला नहीं हो सकता । अद्वैत पद में जाकर ही अकेला हो सकता है । संसार में अकेला रह नहीं सकता

     13. बाबा साहब ( बाबा देवी साहब ) ने मुझसे पूछा था - तुलसी सिस्टम में रहना चाहते हो या स्वावलंबन में ? मैंने कहा - तुलसी सिस्टम में । जिसे सुनकर सब हँस पड़े । बल्कि एक सत्संगी ने तो मुरादाबाद में ऐसा कहा कि माँगकर लाओगे तो फेंक दूंगा ।

सतगुरु बाबा देवी साहब
बाबा देवी साहब
     मैंने पौन दो वर्षों तक लड़कों को पढ़ाया । मैं स्वयं खेती का काम भी देखता हूँ । उपदेश यह है - अपने जीवन - निर्वाह के लिए उपार्जन करो । गुरु महाराज का जोर था कि अपने जीवन - निर्वाह के लिए कमाओ । काम करते रहो , निठल्ला मत बैठो । भजन - सत्संग का काम करो । अपने गुजारा के लिए भी काम करो । झूठ , चोरी , नशा , हिंसा और व्यभिचार से बचने का प्रयास करते रहो । बाबा साहब डाकघर में काम किए , खेती भी किए । बैंक में कुछ जमा हुआ , फिर बैंक फेल भी हो गया । अपनी कमाई से ही अपना गुजारा करो । सदाचार से रहो , ईश्वर की भक्ति करो । जीवात्मा बहुत हैं , ईश्वर कोई नहीं है कोई ऐसा भी कहते हैं , किंतु यह बात भीतर नहीं जाती । यहाँ आध्यात्मिक , राजनीति किसी के लिए विरोध नहीं है । आपको संतमत कहना पसंद नहीं है तो आर्यसमाज या संन्यासी जो कहिए । किंतु मैं तो कहूँगा कि अपने में पृथक - पृथक की भावना न हो , एक मिल - जुलकर रहें । हम देश की रिवाज नहीं तोड़ते । आप सबका छुआ खाइए या स्वयं पाकी बनिए । इसके लिए सत्संग को कोई दखल नहीं । देश में छोटा - बड़ा बहुत दिनों से रहा है । देश में नया विधान हो , इसके लिए मुझे कोई लड़न्त - भिड़न्त नहीं

     14. अभी आपलोग ईश्वर के विषय में सुन रहे हैं । परमात्मा , ईश्वर है । उसकी स्थिति को हमलोग मानते हैं । संत मानते हैं , इसलिए हम मानते हैं , ऐसा नहीं । हमें तो विश्वास है । घर - घर में बचपन से राम - राम , वाह गुरु आदि कहते आए हैं । यह श्रद्धा नहीं मिट सकती । राम - राम तो बच्चे में कहते थे , किंतु पदार्थ रूप में परमात्मा कैसा है , क्या है , यह सत्संग से जाना जाता है । कोई कहते हैं कि ईश्वर नहीं है तो आश्चर्य मालूम होता है । वेद - पुराण संत की वाणी में एक राय यह है कि ईश्वर को जानकर जानना और पहचानकर जानना । ईश्वर इन्द्रिय से जानने योग्य नहीं है । हाथ - पैर से नहीं जानेंगे , स्वाद , गंध आदि मालूम ही नहीं होगा । किंतु वह बिन पावन की राह है , बिन बस्ती का देश । 

बस्ती न शुन्यं  शुन्यं   न  बस्ती ,   अगम    अगोचर    ऐसा । 
गगन शिखर महिं बालक बोलहिं , वाका नाँव धरहुगे कैसा ।। 

    बस्ती या शून्य , देश या काल , इन्द्रिय - ज्ञान में है । जो इन्द्रिय - ज्ञान से ऊपर है , उसके लिए मालूम होता है , जैसे हई नहीं है । वेद में आया है कि आत्मा से आत्मा जाना जाता है । आँख , कान दोनों इन्द्रियाँ हैं , किंतु एक का ज्ञान दूसरे के द्वारा नहीं हो सकता । उसी प्रकार मन - बुद्धि के द्वारा उस परमात्मा को नहीं जान सकते । अपने से ही जानेंगे अपने को इन्द्रिय से रहित करके । गोरख , नानक , कबीर ; सबकी वाणी में यही कहा गया है कि इन्द्रियों से नहीं , आत्मा से जानेंगे । तभी अन्तर साधना सफल है । 


     15. जिस किसी देश में यह सत्संग होगा , जिस देश में ईश्वर के मानने में हिचक नहीं है , उसके लिए फायदा है । सब राष्ट्र एक हों , जैसे मुंगेर , भागलपुर आदि अलग - अलग जिलों में रहकर भी एक देश के हैं , ऐसा मानते हैं । उसी प्रकार अलग - अलग देश में रहकर भी अगर अपने को एक मानें तो लड़ाई - झगड़ा सब मिट जाय । जबतक अपने को अलग - अलग मानेंगे , तबतक लड़ाई होती रहेगी । नदी के दोनों पार में एक ही देश के लोग हैं इसी तरह से एक देश से दूर तक समुद्र में चलकर जो दूसरा देश कहलाता है , वह भी तो इसी भूमंडल का देश है । दोनों देशों के लोग एक ही भूमंडल में हैं । दोनों को एक ही भाव से रहना चाहिए । हम दोनों देश के सब अपने ही हैं , ऐसा जानें तो सब लड़ाई झगड़ा मिट जाएँ । ०


नोट-    हेडलाइन की चर्चा,   सत्संग,   ध्यान,   सद्गगुरु ईश्वर,   अध्यात्मिक विचार   एवं   अन्य विचार   विषयों से संबंधित बातें उपर्युक्त लेख में उपर्युक्त विषयों के रंगानुसार रंग में रंगे है।


इसी प्रवचन को "शांति-संदेश* तथा 'महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर' ग्रंथ में भी प्रकाशित किया गया है। इसे उसी प्रकाशित रूप में पढ़ने के लिए लिए   👉  यहां दबाएं। 


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     प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि सत्संग शब्द का क्या अर्थ है? सत्संग की आवश्यकता, सत्संग सुनने के फायदे, सत्संग का महत्व, सत्संग का प्रभाव, सत्संग किसे कहते हैं, सत्संग की व्याख्या, सत्संग की महिमा, सत्संग कितने प्रकार के होते हैं, सत्संग के प्रकार, सत्संग पर भाषण, सत्संग को परिभाषित करो,  इत्यादि बातें। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का संका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।




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