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S243, सर्वश्रेष्ठ नाम जप से ही ईश्वर प्राप्ति होगी --सद्गुरु महर्षि मेंही

सर्वश्रेष्ठ नाम जप से ही ईश्वर प्राप्ति / S243

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर  S243, के बारे में।

 इसमें  बताया गया है कि- संतमत का वास्तविक स्वरुप और साधना क्या है? नादानुसंधान, बिंदु-ध्यान साधना का महत्व क्या है? इन साधनाओं की महत्ता और विशेषता क्या है? इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान आपको अवश्य मिलेगा जैसे कि-  सद्गुरु महर्षि मेंहीं प्रवचन,गुरु महाराज का प्रवचन,संतमत सत्संग,गुरुदेव प्रवचन,सत्संग सुधा,गुरु वचन,मेंहीं बाबा का प्रवचन,महर्षि मेंही प्रवचन,महर्षि वाणी,संतमत,सत्संग महिमा,महापुरषों के प्रेरणादायक विचार,महापुरुषों के अनमोल वचन,भारतीय संतो के विचार,संत लोगों के विचार,संत बचन,भक्ति,ज्ञान, सत्संग,ध्यान,जप, तप, गुरु महाराज का प्रवचन नं., न्यू संतमत सत्संग, सास बहू और संतमत,महर्षि मेंहीं आश्रम भागलपुर संतमत, महर्षि मेंहीं संतमत सत्संग आयोजन, अखिल भारतीय संतमत सत्संग, संत सद्गुरु महर्षि मेंही,मेही बाबा, कुप्पाघाट भागलपुर, महर्षि मेंहीं बाबा, महर्षि मेंहीं वीडियो, कुप्पाघाट भागलपुर बिहार, सत्संग सुधा,, , संतमत परिचय -संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं, संतमत का इतिहास,श्री  संतमत विचार, आदि बातें। इन बातों को समझने के पहले आइए ! सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें-

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नं S242, को  पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


सर्वश्रेष्ठ नाम जप नादानुसंधान की साधना है, इस पर चर्चा करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज।
सर्वश्रेष्ठ नाम जप नादानुसंधान की साधना है

महर्षि मेंहीं प्रवचन परिचय

सर्वश्रेष्ठ नाम जप से ही ईश्वर प्राप्ति होगी। आदिनाद ही परमात्मा, ईश्वर या भगवान को प्राप्त कराने में समर्थ है। आदिनाद को ही सर्वश्रेष्ठ नाम जप कहते हैं। आदिनाद का ध्यान करना सर्वश्रेष्ठ नाम जपना है। नाम जप के इस विधी को विस्तार से समझाने के लिए गुरु महाराज के इस प्रवचन को शुरु से अंत तक अवश्य पढ़ें । गुरु महाराज का यह प्रवचन शांति संदेश के नवंबर माह में प्रकाशित हुआ है जिसका विवरण निम्नांकित चित्र में है-

शांति संदेश में प्रकाशित सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का प्रवचन नंबर 243 का नमूना
प्रवचन परिचय 

धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !

ईश्वर की भक्ति में नाम - भजन की साधना प्रधान है । नाम - भजन नहीं , तो ईश्वर का भजन नहीं । ' नाम ' शब्द को कहते हैं । जिस शब्द से किसी की पहचान हो , वह शब्द उसका नाम है । यह बहुत समझाने की बात नहीं है , खुलासा है । शब्द भी दो प्रकार के होते हैं - एक शब्द जो हमलोग इस धरातल पर , इस वायुमण्डल में , इस संसार में बोलते हैं और सुनते हैं । यह अनित्य शब्द है ।
      ईश्वर के नाम के विषय में अच्छी जानकारी होनी चाहिये । शब्द ही नाम है । इसलिए शब्द के विषय में ठीक - ठीक जानना चाहिये । शब्द दो तरह के होते हैं - नित्य और अनित्यै । इस भूमण्डल पर आकाश - मण्डल में जो शब्द सुनते हैं , वह अनित्य शब्द है । इसको आकाश का गुण कहते हैं । बिना आकाश के यह शब्द नहीं हो सकता , लेकिन यह स्थूल आकाश जबतक है , तबतक इसके अन्दर के शब्द विद्यमान रहते हैं । आज के वैज्ञानिकों का ख्याल है कि जो शब्द पहले हो चुके हैं , उनको पकड़ा जाय , क्योंकि वे सभी शब्द आकाश में मौजूद हैं । यह शब्द नित्य है , लेकिन हमलोग इसको नित्य नहीं मानते । यह जड़ात्मक शब्द है , जड़ आकाश से बना है । जबतक यह आकाश है , तबतक वह शब्द है । इस आकाश के प्रळय होने पर वह शब्द भी नहीं रहेगा । इसलिये उसको अनित्य शब्द कहते हैं । ये मायावी शब्द हैं । इन शब्दों से ईश्वर , के गुण प्रकट होते हैं । इनसे ईश्वर की महिमा जानते हैं और उस ओर हमारी युत्ति होती है । इसलिए महात्मानों ने शब्द का अप बताया है । इसको वर्णात्मक शब्द कहते हैं । केवल वर्णात्मक शब्द है , ऐसा नहीं , ध्वन्यात्मक नाम भी है । ध्वन्यात्मक इसको इसलिए कहते हैं कि इसको लिख नहीं सकते । जो नाम कभी नाश नहीं हो , सो यह नहीं है । इसको सगुण शब्द भी कहते हैं । इसमें रजोगुण , तमोगुण और सतोगुण तीनों मिले हुए है । वर्णात्मक भी सगुण और ध्वन्यात्मक भी सगुण हैं , जो बाजे वगैरह के शब्द हैं । अपने अन्दर भी सगुण मण्डल के सभी शब्द सगुण है । ये सगुण शब्द अपने - अपने मण्डल की विद्यमानता के साथ हैं । जब प्रलय होते हैं , तब थे शब्द नहीं रहते ; इस- लिए इनको अनित्य शब्द कहते हैं । चाहे वर्णात्मक चाहे ध्वन्यात्मक सभी सगुण शब्द हैं , जो माया मण्डल से प्रवाहित हुए हैं । इसका साधन सगुण शब्द का साधन है । ये कभी - न - कभी लय हो जाते है । इसलिए अध्यात्मबुद्धि के लोग इसको अनित्य शब्द कहते हैं । ये सभी सगुण शब्द है । ईश्वर भजन के लिए जो सगुण शब्द का भजन करते हैं , वर्णात्मक का जप और ध्वन्यात्मक का ध्यान करते हैं । ये सब शब्द ईश्वर को जाहिर कराते हैं । लेकिन इससे ईश्वर की पहचान नहीं होती । इन शब्दों से ऋद्धि - सिद्धि मिलती है । लेकिन ईश्वर को पहचान नहीं होती । ईश्वर की पहचान के लिए निगुण शब्द है । माया - मण्डल का जहाँ पसार नहीं , त्रयगुणों का जहाँ पसार नहीं , वह सच्चिदानन्द- मण्डल का शब्द निर्गुण है , वहाँ माया का , त्रयगुणों का पसार नहीं है । वह निर्गुण शब्द है ।
      यह विश्वास करने के लिए जानना चाहिये कि आदि में परमात्मा अपने - आप ही थे । उनकी मौज से माया - रूपी सृष्टि हुई । जब सृष्टि के लिए उन्होंने मौज की , तो कम्पन अवश्य हो हुआ । कम्पन हो और शब्द नहीं , यह युक्तिसंगत बात नहीं । प्रत्येक कम्प में शब्द है । कम्पन का सहचर शब्द अवश्य होता है । आदि में जो शब्द हुना , उसको निगुण कहते हैं । यह निगुण शब्द परमात्मा - कृत प्रवचन हुआ । परमात्मा तक इसकी धारा लगी हुई है । इसी धारा से ईश्वर तक पहुँचा जाता है ।
      इस नाम में वैसा ही गुण है , जो ईश्वर में है । जिस केन्द्र से कोई शब्द निकलता है , उस केन्द्र में जो गुण होता है , उस केन्द्र के गुण को लिए हुए वह शब्द होता है और सुननेवाले में वह गुण हो जाता है , जैसे किसी के गाने में प्रसन्नता का गुण है , तो उसको सुनता है , वह भी प्रसन्न हो जाता है ।
      ईश्वर से जिस शब्द का विकास हुआ , उसको आदिस्फोट भी कहते हैं । वह आदि - स्फोट ईश्वर का गुण लिए हुए है । जिसने उसको पहचान लिया है , तो उसमें भी ईश्वरीय गुण आ जाता है । इसलिए परमात्मा को जाननेवाला ' जानत तुम्हहिं तुम्हइ होइ जाई ' हो जाता है । उसमें वही शक्ति आ जाती है ।
      निगुण नाम को बहुत कम लोग जानते हैं । निगुण नाम तो क्या , ध्वन्यात्मक नाम को भी बहुत कम लोग जानते हैं । बिना सगुण शब्द के साधन से निगुण शब्द पकड़ा नहीं जा सकता । नाम - जप सगुण शब्द है ।
      अपने अन्दर के सगुण मण्डलों के शब्द सगुण हैं । स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण - ये चारो जड़ मण्डल हैं । मण्डल के केन्द्र से धारा प्रवाहित होती है । ऊपर का शब्द नीचे दूर तक जाता है । सूक्ष्म स्थूल में स्वाभाविक ही समाता है । स्थूल मण्डल के केन्द्र पर सूक्ष्म का शब्द पकड़ा जाएगा । सूक्ष्म के केन्द्र पर कारण का शब्द पकड़ा जाएगा । कारण के केन्द्र पर महाकारण का शब्द पकड़ा जाएगा । जो साधक भजन करेगा , बड़ते - बढ़ते महाकारण के केन्द्र पर पहुंचेगा । वहीं पर वह निर्गुण शब्द को पकड़ेगा । वह शब्द सर्वव्यापक है , लेकिन पहचान वहीं होगी । यही निगुण शब्द ईश्वर तक है , ईश्वर से प्रवाहित है और ईश्वर तक पहुँचाता है । इसीलिए " निर्गुण निर्मल नाम है , अवगत नाम सर्वच । नाम रते सो घनपतौ , और सकस परपंच ॥ ( संत गरीबवासजी )
  इसी निगुणा नाम से ईश्वर की पहचान हो जातो है । अमृृृृतनाद उपनिषद में लिखा है '  अघोषम्अव्यंजनमास्वारंच अतालुकण्ठोष्ठमनासिकञ्च यत् । अरेफजातासयोकशाजित यवक्षरं न क्षरते कदाचित् ॥२४ ॥ ' ....
      यह आदिशाब्द है । इसी के लिए संत कबीर साहब ने कहा है - "आदि नाम पारस आहे, मन है मैला लोह । परसत ही कंचन भया, छूटा बंधन मोह।। '
      इसी से ईस्वर की पहचान होगी । संतों को जब इसाका प्रत्यक्ष ज्ञान हुआ , तो उन्होंने लोगों को इसका ज्ञान दिया । गो तुलसीदासजी की रामायण में है " वन्दौं राम नाम रघुबर को । हेतु कसानु भानु हिमकर को ।। "
      ' राम में र कार , आ कार और म कार है । ' कृशानु ' में र कार नहीं रहे , तो उसका अर्थ अग्नि नहीं होगा । ' भानु में आ कार नहीं रहे , तो उसका अर्थ सूर्य नहीं होगा और हिमकर में म नहीं रहे , तो उसका अर्थ चन्द्रमा नहीं होगा । यह निगुण रामनाम है , उपमा - रहित है । गुणों का भण्डार है । त्रयगुणों का भण्डार भी यही है । मनुष्य - भाषा में इस निर्गुण नाम को ' जो ३ म् ' कहते हैं । ध्वन्यात्मक नाम को और वर्णात्मक नाम को भी जानिए । वर्णात्मक नाम बहुत है । ध्वन्यात्मक नाम भी बहुत हैं । लेकिन निर्गुण नाम एक ही है ।
      जैसे काबेरी , गोदावरी , ब्रह्मपुत्र आदि नदियां जब समुद्र में मिल जाती हैं , तो केवल समुद्र का ही शब्द रह जाता है , इसी तरह सब नाम निगुण में मिल जाते हैं । 
 " सकल नाम जब एक समामा । तवही साध परम पद जाना । " ( संत कबीर साहब )
एकाग्र मन से जप करना चाहिए । 
      एकाग्रता की शक्ति होने से और काम किया माजाता है । विशेष एकाग्रता के लिए किसी इष्ट - मूर्ति का ध्यान करते हैं । संतों ने कह दिया - एक गुरु - मूत्ति का ध्यान करो । कोई प्रतिबन्ध नहीं है , जिसमें अपनी श्रद्धा हो , उसका ध्यान करो । मूति - ध्यान में अनेक लकीर हैं । एक लकीर में कितने ही विन्दु हैं । बहुत से विन्दुओं , बहुत - सी लकीरों और बहुत - से  अंग - प्रत्यंगों के योग से मूर्ति बनती है । लेकिन केवल एक - ही - एक रह जाय , इसके लिए विन्दु - ध्यान है ।
      विन्दु - ध्यान में पूर्ण सिमटाव होता है । जिस मण्डल में पूर्ण सिमटाव हुआ , उस मण्डल से उसकी गति और आगे हो जायेगी ।
 " अचर चर रूप हरि सर्वगत सर्वदा , वसत " होने के कारण , विन्दु भी ईश्वर का रूप है । बिन्दु रूप को देखने से पूरी शान्ति मिलती है । अन्य रूपों में यह शान्ति नहीं मिलती । हाथ - पैरवाले भगवान् होते हैं और बिना हाथ - पैर के भी भगवान् होते हैं । यदि बिना हाथ - पैर के भगवान् नहीं माने जाते तो शिवलिंग में , शालग्राम में अग प्रत्यंग , हाथ - पैर कहाँ है ? फिर इसको भगवान् कैसे मानते हैं ?
      बिन्दु को ईश्वररूप मानना , यह कोई अन्ध विश्वास नहीं है । क्योंकि जो सबमें रहता है , वह विन्दु में भी रहता है । इसलिए विन्दु भी उसका रूप है । इसमें पूर्ण सिमटाव होता है । इससे अन्दर में प्रवेश होना होता है ; स्थूल से सूक्ष्म में , बाहर से भीतर में प्रवेश होना होता है । यहाँ सूक्ष्म नाद ग्रहण होता है । यह ईश्वर - उपासना की विधि है । इसी विधि से सब लोग उपासना करें ।
      मैं न तो राम भजने के लिए मना करता हूँ , न कृष्ण भजने के लिए और न देवी भजने के लिए मना करता है । पंच पापों को करने के लिए मना करता हूँ । ईश्वर का भजन करो , पाप क्षय हो जाएगा ।. गुरु , ध्यान , सत्संग और सदाचार ये चार चीजें मिलकर संतमत है । संतमत सत्य के साथ है , असत्य के खिलाफ है । यह पुरानी से भी पुरानी बात है । असल में यही सनातन धर्म है ।
     कोई कहे कि सनातन धर्म में विन्दु - उपासना , नाद - उपासना नहीं है । मूर्तिध्यान नहीं है , जप नहीं है , कहे । जो नहीं जानते हैं , वे बिन्दु - ध्यान और नाद - ध्यान का नाम सुनकर नया समझते हैं । यह भजन नित्य करो । मनुष्य के अतिरिक्त नीच योनि में नहीं जाने देगा । यह भक्ति का बीज है । यदि ऐसा नहीं होता , तो नाभादास , रविदास आदि कैसे सन्स होते ? भजन नित्य करो । भजन का संस्कार अपने में लगाना बहुत प्रकार के भय से बचाता है । योग महाभय से बचाता है । योग के आरम्भ का नाश नहीं होता । जन्म - जन्मान्तर , पीछा करते हुए अन्त में मोक्ष दिलाकर ही छोड़ता है । इति।।

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     प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  संतमत का वास्तविक स्वरुप और साधना क्या है? नादानुसंधान, बिंदु-ध्यान साधना का महत्व क्या है? इन साधनाओं की महत्ता और विशेषता क्या है? इसको समझने के लिए इस प्रवचन को अवश्य पढ़ें-। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का संका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्नलिखित वीडियो में इस प्रवचन का पाठ करके सुनाया गया है।



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S243, सर्वश्रेष्ठ नाम जप से ही ईश्वर प्राप्ति होगी --सद्गुरु महर्षि मेंही S243, सर्वश्रेष्ठ नाम जप से ही ईश्वर प्राप्ति होगी --सद्गुरु महर्षि मेंही Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/12/2018 Rating: 5

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