महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" / 489
प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 489 वां,इसमें बताया गया है कि संतमत विचार, संतमत ज्ञान और संतों की ईश्वर भक्ति युक्त बातों की बिशेष चर्चा की गई है।
सूर्योदय सम गुरुदेव |
कबीर नानक तुलसी आदि संतों के सार विचार
सभी संतों का सार विचार है- निर्गुण भक्ति करने का और निर्गुण भक्ति में पारंगत होने के पहले सगुण भक्ति कर लेना चाहिए। जिससे कि थोड़ा अभ्यास हो जाए। आगे बढ़ने का कुछ सहारा मिल जाए।
संतों का सार विचार |
उपनिषद और संतमत ज्ञान
उपनिषदों और अन्य संतों ने भी यही बताया है कि ईश्वर के निर्गुण निराकार के दर्शन से ही ईश्वर-भक्ति पूरी होगी । वही परम कल्याणकारी भक्ति है ।उपनिषद और संतमत ज्ञान |
ईश्वर कैसा है?
इस विषय पर भी सभी पहुंचे हुए संत महात्मा एक स्वर से कहते हैं कि ईश्वर निर्गुण निराकार अनंत और बुद्धि से जानने योग्य नहीं है।
ईश्वर कैसा है? |
गुरु कृपा से ईश्वर भक्ति में सफलता
उस ईश्वर की प्राप्ति गुरु कृपा से ही हो सकती है ।अगर पहुंचे हुए गुरु मिल जाए तो बेरा तुरंत पार हो जाए और सभी दुखों से छुटकारा हो जाए।
गुरु कृपा से ईश्वर प्राप्ति |
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि संतमत विचार, संतमत ज्ञान और संतों की ईश्वर भक्ति युक्त बातों की बिशेष चर्चा । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
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S489, संतमत विचार, संतमत ज्ञान और संतों की ईश्वर भक्ति युक्त बातों की चर्चा
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
9/23/2018
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