S297, Santmat Satsang ki anmol baatein/सद्गुरु महर्षि मेंहीं अमृतवाणी

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" / 297

       प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 297 वां, इसमें बताया गया है कि संतमत satsang की पुरानी बातें।1910 ई. में संत्संग के स्वरूप के बारे में जानकारी दी गई है।

नवंबर 2018 धान आभास के समय गंगा का दृश्य
नवंबर 2018 ध्यान अभ्यास के समय गंगा का दृश्य




1910 ईस्वी में सत्संग का स्वरूप

      गुरु महाराज इस प्रवचन में सत्संग के प्रारंभिक स्वरूप को बताते हुए, सत्संग के विकास के बारे में बताते हैं और संतमत सत्संग की आवश्यकता के बारे में भी बताते हुए कहते हैं-

1910ई.  में सत्संग का स्वरूप
1910 ईस्वी में सत्संग का स्वरूप

61वें महाधिवेशन का प्रवचन
61 वें महाधिवेशन का प्रवचन

      प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि सत्संग की प्रारंभिक स्वरूप और ज्ञान की बाते ं । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


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S297, Santmat Satsang ki anmol baatein/सद्गुरु महर्षि मेंहीं अमृतवाणी S297, Santmat Satsang ki anmol baatein/सद्गुरु महर्षि मेंहीं अमृतवाणी Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/10/2018 Rating: 5

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