S91, Praarthana mein Eeshvar se kya maange ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। दि.26-8-1954ई.

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 91

 प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ९१ को । इसमें स्तुति, प्रार्थना और उपासना से होने वाले फायदे के बारे में विशेष रूप से बताया गया है।

इसके साथ ही इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में बताया गया है कि- संतों का स्वभाव कैसा होता है? भक्ति के तीन महत्वपूर्ण बातें क्या है? स्तुति, प्रार्थना और उपासना किसे कहते हैं? त्रिकाल संध्या का समय क्या है? पाप कर्म क्या है? जब कितने प्रकार का होता है? जप के तीन प्रकार कौन-कौन से हैं? संत कबीर साहब, गुरु नानक साहब, श्रीमद्भागवत गीता और उपनिषद में ध्यान के बारे में क्या कहा गया है? नाद या शब्द के तीन प्रकार कौन-कौन से हैं? रोजाना सत्संग क्यों करना चाहिए? सभी संतो ने क्या कहा है? santon ka dayaalu svabhaav, eeshvar-bhakti mein stuti praarthana aur upaasana ka mahatv, traikaalik dhyaanaabhyaas se paramaatm-praapti,  vaachik, upaanshu aur maanas jap kee shreshthata; shabd ke prakaar, sunane ka mahatv, saampradaayik bhedabhaav aur santo kee aagya,    इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- भगवान से क्या मांगना चाहिए, ईश्वर से क्या मांगे, सत्संग प्रार्थना, प्रार्थना गीत हिंदी में, प्रार्थना क्या है? प्रार्थना की परिभाषा, प्रार्थना लिखी हुई, प्रार्थना का उद्देश्य, प्रार्थना के लाभ, praarthana, praarthana mein bolane vaale suvichaar, praarthana mein jo kuchh maanga,  praarthana mein jo kuchh maanga poora karo,  praarthana mein tujhase karo, praarthana mein hai chhutakaara, praarthana mein tujhase karoon,   इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें। 

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 90 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


Stuti prathna aur upasna mein kya farak hai. Par pravachan karte gurudev
स्तुति-प्रार्थना-उपासन पर प्रवचन

What to ask God in prayer. प्रार्थना में ईश्वर से क्या मांगे?

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि-  प्यारे लोगो ! बारंबार का जन्म लेना दु : खकर है । इसलिए संतों ने साग्रह कहा कि इस जन्म - मरण से छूट जाने के लिए ईश्वर का भजन करो । .....इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव--The compassionate nature of the saints, the importance of praise prayer and worship in devotion, divine attainment through triennial meditations, superiority of recitation, upanshu and manas chanting;  Types of words, importance of listening, communal discrimination and command of saints,.....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-

९१ . स्तुति , प्रार्थना और उपासना 


Prathna mein kya mangna chahie pravachan

प्यारे लोगो !

     बारंबार का जन्म लेना दु:खकर है । इसलिए संतों ने साग्रह कहा कि इस जन्म - मरण से छूट जाने के लिए ईश्वर का भजन करो । जिस प्रकार कोई भले आदमी किसी के दुःख को देखकर उसको सुख पाने की शिक्षा देते एवं उपाय करते हैं , उसी प्रकार संतों ने संसार के लोगों को दुखिया देखकर ईश्वर की भक्ति करने के लिए बताया 

      ईश्वर की भक्ति में केवल तीन बातों को बताया गया - स्तुति , प्रार्थना और उपासना । स्तुति कहते हैं यशगान को अपने उपकारक का गुणगान करना स्तुति है । ईश्वर ने माता के गर्भ - काल से ही सबों की रक्षा की है । जन्म लेने से पूर्व ही माता के पास दूध का भण्डार देना , यह ईश्वर की दया है । हमलोग हर घड़ी , हर समय , हर जगह ईश्वर से अपने को उपकृत पाते हैं । ऐसे परम उपकारक परम प्रभु परमात्मा का यशगान नहीं करना कृतघ्नता है । प्रार्थना कहते हैं , माँग को । ईश्वर से क्या माँगें ? ईश्वर से ईश्वर को माँगो । जब ईश्वर की प्राप्ति होगी , तो कोई माँग नहीं रहेगी । इसलिए ईश्वर से प्रार्थना करो । ईश्वर के पास जाने के लिए भजन करना , उपासना है 

     संतों की शिक्षा के अनुकूल गुरु महाराज ने हमलोगों को तीनों प्रकार की शिक्षा दी । त्रयकाल संध्या करने बताया - ब्राह्ममुहूर्त में , दिन में स्नान के बाद और सायंकाल । इन तीनों समयों में अबाधित रूप से उपासना करो । वह कर्म पाप है , जो ईश्वर - भक्ति में विघ्न डाले । इसलिए संतों ने कहा - झूठ मत बोलो , चोरी नहीं करो , व्यभिचार मत करो । नशाओं का सेवन नहीं करो और हिंसा मत करो । मत्स्य - मांस का भक्षण मत करो

     जैसे हाथी - घोड़े को सिखाकर लोग उनपर सवारी करते हैं । उसी प्रकार तुम अपने को सिखाओ , संयत रखो अपने को । यदि तुम संयत में रखोगे , तो अपने पर ही अपनी सवारी द्वारा परमात्मा तक पहुँचोगेभजन में जप , ध्यान दो ही बातें हैं । जप  वाचिक , उपांशु और मानस ; तीन प्रकार के होते हैं  बोल - बोलकर जप करना वाचिक जप है । इससे श्रेष्ठ जप है उपांशु जप । उपांशु जप में केवल होठ हिलते हैं । उसकी आवाज केवल अपने सुन सकते हैं । मानस जप - जपों का राजा है । यह केवल मन से ही जपा जाता है । वाचिक और उपांशु से हजार गुणा श्रेष्ठ है मानस जप । मानस जप एक प्रकार से ध्यान ही है । तीनों में विशेष मानस जप है । यह सब जपों से श्रेष्ठ है । इसके बाद गुरु - मूर्ति का ध्यान है । जैसा कि संत कबीर साहब ने कहा मूल ध्यान गुरु रूप है , मूल पूजा गुरु पाँव । मूल नाम गुरु वचन है , मूल सत्य सतभाव ॥

     स्थूल ध्यान के बाद सूक्ष्म ध्यान करो । सूक्ष्म ध्यान के लिए कबीर साहब ने कहा  गगन मण्डल के बीच में , तहवाँ झलके नूर । निगुरा महल न पावई , पहुँचेगा गुरु पूर ।। नैनों की करि कोठरी , पुतली पलंग बिछाय । पलकों की चिक डारि के , पिय को लिया रिझाय ॥ कबीर कमल प्रकासिया , ऊगा निर्मल सूर । रैन अंधेरी मिटि गई , बाजे अनहद तूर ॥ 

     तथा बाबा नानक के वचन में भी आया है  तारा चड़िया लंमा किउ नदरि निहालिआ राम । सेवक पूर करंमा सतिगुरसबदि दिखालिआ राम । गुरु सबदि दिखालिआ सचु समालिआ अहिनिसि देखि विचारिआ । धावतु पंच रहे घरु जाणिआकामु क्रोध विषुमारिआ । अंतरि जोति भई गुरु साखी चीने राम करंमा । नानक हउमै मारि पतीणे तारा चड़िया लंमा ।। 

     और श्रीमद्भगवद्गीता के अनुकूल अणोरणीयाम् प्रत्यक्ष हो जाता है । इसी अणोरणीयाम् को उपनिषद् में परम विन्दु कहा है बीजाक्षरं परम विन्दुंनादं तस्योपरिस्थितम् । सशब्दं चाक्षरे क्षीणे निःशब्दं परमं पदम् ॥ -ध्यानविन्दूपनिषद् 

     अर्थात् परम विन्दु ही बीजाक्षर है ; उसके ऊपर नाद है । नाद जब अक्षर ( अनाश ब्रह्म ) में लय हो जाता है , तो निःशब्द परम पद है । इस विन्दु को पकड़कर नाद को ग्रहण करके परमात्मा तक पहुँचो । नाद यानी शब्द तीन प्रकार के होते हैं - प्राणमय , इन्द्रियमय , मनोमय  प्राणमय शब्द ध्वन्यात्मक है । जो सूक्ष्म ध्यान में प्रकट होता है । मुँह से कहना , कान से सुनना इन्द्रियमय शब्द है । इसके लिए गुरु से जानो कि किस शब्द का जप करेंगे फिर इसको मन ही मन जपना मनोमय शब्द है । 

     नित्य इस विषय को सुनिए । सुनने से इस ओर प्रेरण होता है । इसलिए नित्य सत्संग करो । सत्संग से ही लोग ईश्वर - भजन करते हैं । सत्संग से जितना लाभ होता है , उससे विशेष कोई लाभ नहीं । 

     किसी एक खास उपासना या सम्प्रदाय को श्रेष्ठ कहना , दूसरे को न्यून समझना गलत बात है । जो जिस सम्प्रदाय में हैं , उसमें जो उपासना है वह करें  किसी को नीच , किसी को ऊँच कहना हमारे गुरु महाराज ( बाबा देवी साहब , मुरादाबाद ) के ज्ञान में पाप है । किसी सम्प्रदाय से लड़ाई - झगड़ा मत करो । सभी मिलकर रहो । ईश्वर का भजन करो । सभी संतों ने सदाचार पालन करने कहा , ध्यान करने कहा और सत्संग करने कहा । इन तीनों को नित्य किया कीजिए ।० 


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 92 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि संतों का दयालु स्वभाव, ईश्वर-भक्ति में स्तुति प्रार्थना और उपासना का महत्व, त्रैकालिक ध्यानाभ्यास से परमात्म-प्राप्ति,  वाचिक, उपांशु और मानस जप की श्रेष्ठता; शब्द के प्रकार, सुनने का महत्व, सांप्रदायिक भेदभाव और संतो की आज्ञा के बारे में । इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने  इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S91, Praarthana mein Eeshvar se kya maange ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। दि.26-8-1954ई. S91, Praarthana mein Eeshvar se kya maange ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। दि.26-8-1954ई. Reviewed by सत्संग ध्यान on 9/24/2020 Rating: 5

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