S94, Bindu Nad meditation glory ।। महर्षि मेंहीं वचनामृत ।।प्रात: दि.11-10-1954ई. मुरादाबाद.

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 94

 प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ९४वां, को । इसमें विंदु और नाद ध्यान की महिमा, के बारे में विशेष रूप से बताया गया है।

इसके साथ ही इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में बताया गया है कि-  santo kee mahima, abhyaas kee mahima, bindu aur naad dhyaan kya hai? sanshayon ko nirmool karane vaala param bindu kahaan hai? bindu ke prakaar, santo ke vachan mein bindu dhyaan, mota dhyaan aur bindu dhyaan mein phark, dhyaanaabhyaasee se paap se chhootata hai, brahmaand mein jaane ka raasta, sabase badee pooja kya hai? bhojan aur bhajan,       इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- naad bindu upanishad, anaahat naad kise kahate hai, anaahat naad ka arth, naad ke kitane prakaar hain, anaahat ka arth, naad rahasy, naad yog ke laabh, anaahat naad yog, anaahat naad maharshi-meheen,  naad kee paribhaasha kya hai, anahad naad ka arth,bindu ka arth, bindu kise kahate hain, sanrekh bindu kee paribhaasha, bindu vidhi kya hai, bindu ke prakaar, mool bindu kise kahate hain, bindu, rekha, bindu maianing, anahad naad maiditeshan tekniks,    इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।  

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 93 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।

बिंदु नाद योग  पर विशेष चर्चा करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज
बिंदु और नाद ध्यान पर विशेष चर्चा करते गुरुदेव

Bindu Nad meditation

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारी धर्मानुरागिनी जनता ! हमलोग संतों की तारीफ में गाते हैं - विन्दु ध्यान - विधि नाद - ध्यान - विधि , सरल - सरल जग में परचारी ।। ' विन्दु - ध्यान और नाद - ध्यान बतलानेवाले संत होते हैं । .....इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----What is the glory of saints, glory of practice, point and sound meditation? Where is the supreme point to clear the doubts? Types of point, difference in point meditation, fat meditation and point meditation in the word of saints, the meditator frees from sin, the way to go into the universe, what is the greatest worship? Food and bhajans,......आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-

९४ . तिल परिमाण जान जन कोई 

बिंदु ध्यान पर विशेष रूप से प्रवचन करते गुरुदेव

प्यारी धर्मानुरागिनी जनता !

     हमलोग संतों की तारीफ में गाते हैं - विन्दु ध्यान - विधि नाद - ध्यान - विधि , सरल - सरल जग में परचारी ।। ' विन्दु - ध्यान और नाद - ध्यान बतलानेवाले संत होते हैं । यह सरल साधन है । वैसे तो सरल-से-सरल और मोटे - से - मोटा काम भी अभ्यास नहीं होने के कारण कठिन जान पड़ता है । जो जेहि कला कुसल ता कहँ , सो सुलभ सदा सुखकारी । सफरी सनमुख जल प्रवाह , सुरसरी बहइ गज भारी ॥ ज्यों सर्करा मिलइ सिकता महँ , बल तें नहिं बिलगावै । अति रसज्ञ सूछम पिपीलिका , बिनु प्रयास ही पावै ।। सकल दृस्य निज उदर मेलि , सोवइ निद्रा तजि जोगी  सोइ हरि - पद अनुभवइ परम सुख , अतिसय द्वैत वियोगी । सोक मोह भय हरष दिवस निसि , देस काल तहँ नाहीं । तुलसिदास एहि दसा - हीन , संसय निर्मूल न जाहीं ।। गोस्वामी तुलसीदासजी 

     संशयों को निर्मूल करने के लिए विन्दु - ध्यान और नाद - ध्यान है । विन्दु और नाद - ध्यान के लिए ध्यानविन्दूपनिषद् में है बीजाक्षरं परम विन्दुंनादं तस्योपरिस्थितम् । सशब्दं चाक्षरे क्षीणे निःशब्दं परमं पदम् ।। -ध्यानविन्दूपनिषद् 

     परमविन्दु कहने का मतलब क्या है ? एक छोटे - से - छोटा चिह्न बाहर में अंकित कर उसे विन्दु कहते हैं , किन्तु उसकी परिभाषा को पढ़ने पर कहते हैं कि उसका विभाग नहीं होता । छोटे - से - छोटा चिह्न भी अंकित कीजिए , फिर भी उसका विभाग होगा । परमविन्दु बाहर में अंकित नहीं किया जा सकता । पतली - से - पतली कोई भी नोंक , विन्दु अंकित करने योग्य नहीं है । परम विन्दु से स्थूल में कोई स्थान छेका नहीं जा सकता । बाहर में उसको अंकित करना असम्भव है । आप अपनी दृष्टि की नोंक से अपने अन्दर के प्रथम तल पर उसे अंकित कर सकते हैं । अंकित करने का अर्थ है - प्रथम पट पर दृष्टि की नोंक रखिए , स्वयं परम विन्दु उदित हो जाएगा । जैसे पेन्सिल की नोंक जहाँ रखते हैं , वहाँ स्वतः विन्दु हो जाता है , परन्तु इसका विभाग हो सकेगा । परम विन्दु अर्थात् परिभाषा के अनुकूल विन्दु का विभाग नहीं होगा । कबीर साहब का कहना है कि - ' स्याह सुफैद तिलों बिच तारा अविगत अलख रबी है । 

     पहले स्याह फिर सफेद हो जाता है - वही तारा हो जाता है । बाबा नानक साहब के वचन में भी है - ' तारा चड़िया लंमा ....। '

      तुलसी साहब का इसके लिए कथन है स्याम कंजलीला गिरिसोई । तिल परिमाण जान जन कोई ।। 

   श्रीमद्भगवद्गीता के आठवें अध्याय के श्लोक ९ में ' अणोरणीयाम् ' कहकर परमात्मरूप का वर्णन है और मनुस्मृति के अध्याय १२ , श्लोक १२२ में भी अणुरूप को परमात्म - ध्यान कहा गया है कविं पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमनुस्मरेयः । सर्वस्यधातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्ण तमसः परस्तात् ।। -गीता , अध्याय ८ / ९

प्रशासितारं सर्वेषामनीयां समणोरपि । रूक्माभं स्वप्न धीमगम्यं विद्यात्तं पुरुषं परम ॥ -मनुस्मृति , अध्याय १२/१२२ 

     बाहर के विषयों का ध्यान छूटता है , तब अंदर का ध्यान होता है । बाहरी विषयों के चिंतन से मोटा ध्यान भी नहीं हो सकता है , फिर उस चिंतन में रहकर कोई सूक्ष्म ध्यान कैसे कर सकता है ? ध्यानाभ्यासी की वृत्ति पाप की ओर से हटी होती है । उससे पाप - रहित कर्म होगा । जो पहले का किया हुआ पाप है , वह ध्यान - योग से नष्ट हो जाएगा । ध्यानाभ्यासी ध्यानबल से कर्ममण्डल के ऊपर उठ जाता है । इस तरह वह पाप - पुण्य ; दोनों से ऊपर उठ जाता है । उसे पाप और पुण्य वहाँ से लौटा नहीं सकते । इसलिए उपनिषद् के वचनों पर विश्वास करना चाहिए । जितने भी अक्षर ( लिपि ) , या दृश्य या रूप हैं , सबका बीज विन्दु है । किसी भी दृश्य का रूप बनाने के लिए पहले विन्दु बनता है । बिना विन्दु के कोई रूप नहीं बना सकते । जैसे वट के बीज के बिना वट का वृक्ष नहीं हो सकता , उसी प्रकार समस्त आकारों की उत्पत्ति अंत भी विन्दु है । उस विन्दु को जो प्राप्त करता है , वह दृश्य जगत के शिखर पर चढ़ जाता है । इसी को ब्रह्मरन्ध्र से होकर ब्रह्माण्ड में जाना कहते हैं

      रूप दृश्यमान है । रस जिभ्या से , गंध नाक से , शब्द कान से तथा स्पर्श छूने से आपको मालूम होता है । इन सबका रूप क्या है ? गन्ध का क्या दृश्य है ? इसी प्रकार अदृश्य पदार्थ भी संसार में है। दृश्य का आरम्भ विन्दु से और अन्त विन्दु पर होता है । और अदृश्य का आरम्भ किससे होता है ? अदृश्य का आरंभ शब्द से होता है। जो अदृश्य है । गति या कम्प का सहचर ध्वनि है कम्प के बिना कुछ नहीं बन सकता । ध्वनि कम्प या गति के साथ अवश्य होती है । साधो गति में अनहद बाजै । झंझकार और झनक झनक है , एहि मन्दिर में साजै ।। -दरिया साहब , बिहारी 

     अतएव सारी सृष्टि शब्द से अवश्य ही हुई है । जबतक शब्द रहेगा , तबतक संसार रहेगा । जब शब्द को पार कर जाय , तब संसार के पार में पहुँच जाय । संसार का दूसरा हिस्सा अरूप है , वह नाद ध्यान से पार किया जाएगा । नाद भी अरूप है । जैसे जल के सहारे से जल को पार किया जाता है , उसी तरह अरूप के सहारे से अरूप को पार किया जाएगा । शब्द में आकर्षण करने का गुण है  यही बड़ाई शब्द की , जैसे चुम्बक भाय । बिना शब्द नहिं ऊबरै , केता करै उपाय ।। -कबीर साहब 

चुम्बक सत्त शब्द है भाई । चुम्बक शब्द लोक ले जाई ॥ लेई निकारिहोखै नहिं पीरा । सत्तशब्द जो बसै शरीरा ॥ -दरिया साहब , बिहारी 

     विन्दु - ध्यान की यह महिमा है कि उसके द्वारा रूप जगत से ऊपर उठ जाएँगे और नाद ध्यान से अरूप जगत से ऊपर उठ जाएँगे । कितने लोग कहते हैं कि शरीर के अंदर अनेक रग - रेशे चलते हैं , उनकी ये ध्वनियाँ हैं ; उनको सुनकर क्या होगा ? मैं उनसे कहता हूँ कि अपनी वृत्ति को आप स्थूल मण्डल से ऊपर उठा लीजिए , तब सुनिए उस समय आपकी वृत्ति स्थूल में नहीं रहेगी , तब आप स्थूल ध्वनियों को कैसे सुन सकते हैं ? उस अंतर्नाद को सुनिए । इसी को तुलसी साहब ने कहा है स्रुति ठहरानी रहे अकाशा । तिल खिरकी में निसदिनबासा।। गगन द्वार दीसै एक तारा । अनहद नाद सुनै झनकारा तिल परमाने लगे कपाटा । मकर तार जहँ जीव का बाटा।।

    शब्द की धार सबके अंदर है । मकड़ा तार पर नीचे से ऊपर जाता - आता है , उसी तरह शब्द के द्वारा भी नीचे से ऊपर उठ सकते हैं । अपने अंदर में यात्रा करने के लिए विन्दुनाद ही सहारा हैइसी का अवलंब लेकर हम वहाँ पहुँच सकते हैं , जहाँ परमेश्वर परमात्मा का साक्षात्कार होगा। यही विन्दु - नाद - ध्यान की महिमा है । यही मुनियों का नादानुसंधान है । नास्ति नादात्परोमंत्रोन देवः स्वात्मनः परः । नानुसंधे परा पूजा न हि तृप्तेः परं सुखम् ।। -योगश्खिोपनिषद् , अध्याय २

      नादानुसंधान के समान कोई पूजा नहीं है। सबको चाहिए कि नाद और विन्दु का ध्यान करे। गुरु महाराज हमलोगों को कृपा करके इसकी शिक्षा और युक्ति दे गए हैं । उनका अभ्यास हमलोगों को करना चाहिए । भोजन कम कीजिए । विशेष भोजन से निद्रा आएगी और भजन नहीं होगा । इसलिए कम खाइए और भजन कीजिए ।० 

इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 95 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि विंदु और नाद ध्यान की महिमा, बिंदु का अर्थ, बिंदु किसे कहते हैं,बिंदु के प्रकार,नाद रहस्य, नाद योग के लाभ, अनाहत नाद योग, अनहद नाद मैडिटेशन टेक्निक्स,  इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने  इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है। 




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S94, Bindu Nad meditation glory ।। महर्षि मेंहीं वचनामृत ।।प्रात: दि.11-10-1954ई. मुरादाबाद. S94,  Bindu Nad meditation glory ।। महर्षि मेंहीं वचनामृत ।।प्रात: दि.11-10-1954ई. मुरादाबाद. Reviewed by सत्संग ध्यान on 9/28/2020 Rating: 5

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