महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 88
प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ८८ के बारे में। इसमें बताया गया है कि साधकों का भोजन कैसा होना चाहिए? खाना खाने के नियम, स्वस्थ रहने के लिए कैसा भोजन करना चाहिए, खाना कैसे खाएं।
इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष ) में पायेंगे कि- काम कैसे होता है? विद्यार्थी क्यों डरते हैं? कबीर साहब मनुष्य शरीर के संबंध में क्या कहते हैं? कैसा भोजन करना चाहिए? कितना भोजन करना चाहिए? मांस-मछली खाना चाहिए कि नहीं? मांस मछली खाने के संबंध में मुसलमानों का धर्म क्या कहता है? मनुष्य का शरीर पवित्र है या पशु का? संत कबीर साहब की वाणी में बंधन से मुक्त और बंधन युक्त कौन है? इत्यादि बातों के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- कैसा भोजन करना चाहिए, भोजन कब करना चाहिए, ज्यादा खाना खा ले तो क्या करें, खाने से पहले क्या करना चाहिए, भोजन कितना करना चाहिए, दिन में कितनी बार भोजन करना चाहिए, अधिक भोजन करना, भोजन कब और कैसे करना चाहिए, दिन के अनुसार भोजन, कम खाना अधिक जीना, खाना खाने के नियम, स्वस्थ रहने के लिए कैसा भोजन करना चाहिए, खाना कैसे खाएं, खाना और भोजन में क्या अंतर है, खाना कितनी बार खाना चाहिए, खाना खाते समय क्या करना चाहिए,संतुलित भोजन , भोजन की परिभाषा क्या है, दिन के अनुसार भोजन, हमें भोजन की आवश्यकता क्यों होती है, भोजन के नियम आयुर्वेद, भोजन के घटक, संतुलित भोजन के घटक, भोजन बनाने के नियम, इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए ! संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।
इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 87 को पढ़ने के लिए यहां दवाएं।
साधु संतों के भोजन पर विचार विमर्श करते गुरुदेव |
What should be the food of the seekers? साधकों का भोजन कैसा होना चाहिए?
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! जितने लोग हैं , सब डर से काम करते हैं । किसान को होता है कि खेती का काम जिस - जिस समय में जो - जो होता है , उस - उस समय में काम नहीं करने से खेत नहीं उपजेगा ।..... इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----How does it work? Why are students afraid? What does Kabir Sahib say in relation to human body? What should i eat How much should I eat? Should you eat meat or fish or not? What does the religion of Muslims say in relation to eating meat and fish? Is the body of man sacred or animal? Who is free from bondage and bonded in the voice of Saint Kabir?....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-
८८. मछली की देह अधिक पवित्र है या तुम्हारी देह ?
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !
जितने लोग हैं , सब डर से काम करते हैं । किसान को होता है कि खेती का काम जिस - जिस समय में जो - जो होता है , उस - उस समय में काम नहीं करने से खेत नहीं उपजेगा । अन्न के लिए वस्त्र के लिए दुःख होगा , किसान को डर है । लोग कहते हैं कि वह स्वतंत्र है , किंतु नहीं , पेट का नौकर है । ठीक समय पर खेती का काम नहीं करने से उसको दुःख होगा , इसी डर से धूप में खेती करता है , पानी में सड़ - सड़कर काम करता है ।
नौकरीवाले को अपने से ऊपर के हाकिम का डर रहता है कि ठीक से काम नहीं करने से नौकरी से अलग न कर देवे , ऊँचे से नीचे पद पर न दे देवे । लड़के को पिता का डर रहता है , शिक्षक या मौलवी साहब का डर रहता है कि नहीं पढ़ेंगे , तो ये लोग मारेंगे । बड़े होने पर जानते हैं कि ठीक से नहीं पढ़ने पर परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होंगे , लज्जा होगी । किन्तु इसके साथ - साथ यह भी जानना चाहिए कि यह शरीर अवश्य छूटेगा , चाहे कब्र में गड़े या चिता में जले । इसी के लिए संत कबीर साहब कहते हैं - ' यह शरीर जल के बुदबुदे ( बुलबुले ) के समान है । ' बच्चे मर गए , जवान मर गए , बूढ़े मर गए । बूढ़े देह से मरते हैं , किंतु उनका मन नहीं मरता । निधड़क बैठा नाम बिनु , चेति न करै पुकार । यह तन जल का बुदबुदा , बिनसत नाहीं बार ।। आज कहै मैं काल्ह भनूँगा , काल्ह कहै फिर काल । आज काल्ह के करत ही , औसर जासी चाल ।। काल करै सो आज कर , आज करै से अब्ब पल में परलै होयगा , बहुरि करैगा कब्ब ।।
इससे शरीर भी बिगड़ जाता है और धर्म भी बिगड़ जाता है धर्म के बिगड़ने से दुनिया में भी हँसी होती है और दुनिया छोड़ने पर नरक जाना पड़ता है ।
साधु - संत जो भोजन करने के लिए बतावें , वह भोजन करो । जितना भोजन ठीक - ठीक पच जाय , उतना भोजन करो । जीभ - स्वाद के लिए धर्म का नाश मत करो । जीभ का स्वाद क्या है ? वह तो आदत है , उसको अच्छा लगता है, किन्तु जो नहीं खाता , उसे पसन्द नहीं होता ।
हमारे यहाँ दो धर्म हैं - एक धर्म में मांस - मछली नहीं खाने की बात है और दूसरे धर्म में मांस - मछली खाने की बात है । मांस - मछली खाने में कोई दोष भी लगा सकता है , किंतु नहीं खाने में कोई दोष नहीं लगा सकता । इसलिए जिसमें दोष नहीं लगावे , वही अच्छा है । जो लोग मांस - मछली नहीं खाते हैं , उनको दूसरे लोग जो मांस - मछली खाते हैं , नहीं कहते कि तुम नहीं खाते हो , इसलिए तुमको दोष लगेगा ; बल्कि जो नहीं खाता है , वह उसे जो मांस - मछली खाता है , कहता है कि तुमको दोष लगेगा । उसको अधर्मी कहता है । खानेवाले को एक अच्छा कहता है , दूसरा अच्छा नहीं कहता । इसके लिए जिसको अच्छा नहीं लगता , क्यों खाया जाय ?
मुसलमानों के धर्म में है कि जबतक शगल ( साधना भ्यास ) करते रहो , कोई चिकनी चीज नहीं खाओ । मांस - मछली नहीं खाओ । शगल करना एक दो दिन की बात नहीं है । शगल करते - करते सालों लग जाते हैं । जो साल - साल , कई सालों तक नहीं खाएगा , उससे फिर आप ही वह खाना छूट जाएगा । इस तरह उसमें भी मांस - मछली आदि का खाना मना है ।
मछली की देह अधिक पवित्र है या तुम्हारी देह ? चिड़िया की देह मनुष्य देह से उत्तम नहीं है । इसलिए अपने से नीच शरीर के मांस को अपनी ऊँची और पवित्र देह में डालना ठीक नहीं ।
हमा आस्त - सब वही है । हमा अज आस्त - सब उससे है । सब वही है - यह अद्वैतवाद है । सब उससे है - इसमें द्वैतवाद है । हमलोगों के यहाँ अद्वैतवाद है , उसमें है - एक वही है । मंसूर ने ' अनलहक ' कहा था । जब दिल मिला दयाल तब कछु अंतर नाहिं । पाला गलि पानी मिला यों हरिजन हरि माहिं ।। - कबीर साहब
जैसे पाला गलकर पानी हो जाता है , उसी प्रकार ईश्वर से मिल जाने पर एक ही हो जाता है। संत कबीर साहब ने कहा बुन्द समानी समुंद में , यह जानै सब कोय । समुंद समाना बुन्द में , बूझै बिरला कोय ॥ निरबन्धन बन्धा रहै , बन्धा निरबन्ध होय । करम करै करता नहीं , दास कहावै सोय ॥
झूठ , चोरी , नशा , हिंसा और व्यभिचार ; इन पाँचों पापों को नहीं करने का बंधन रखो । एक ईश्वर पर विश्वास , उसकी प्राप्ति अपने अंदर होगी – इसका दृढ़ निश्चय रखना , गुरु - सेवा , सत्संग और ध्यान ; इन पाँचों को करने का बंधन रखो । कोटि कोटि तीरथ करै कोटि कोटि करिधाम । जब लग संत न सेवई , तब लग सरै न काम ।। जहँ आपा तहँ आपदा , जहँ संसय तहँ सोग । कह कबीर कैसे मिटे , चारो दीरघ रोग ।। अहं अग्नि हिरदे जरै , गुरु से चाहै मान । तिनको जमन्योता दिया , हो हमरे मेहमान ।। संत कबीर साहब ०
इसी प्रवचन को शांति संदेश में प्रकाशित किया गया है उसे पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
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प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि Saadhakon ka bhojan kaisa hona chaahie? khaana khaane ke niyam, svasth rahane ke lie kaisa bhojan karana chaahie, khaana kaise khaen, इत्यादि बातें। इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर |
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S88, (क) Saadhakon ka Bhojan kaisa hona chaahie ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 28-05-1954ई.
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
11/04/2020
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