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S87, Paap Puny ka parinaam ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 25-05-1954ई. सैदाबाद, अररिया

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 87

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ८७ के बारे में। इसमें बताया गया है कि  पाप पुण्य का परिणाम स्वर्ग नरक अवश्य होता है। ईश्वर जीव अवश्य है।

इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि-  मनुष्य देव-तुल्य कैसे होता है? संसार में कैसे रहना चाहिए ? साधारण लोग संसार को कैसा समझते हैं? स्वर्ग नरक होता है, इसका प्रमाण क्या है? सिकलीगढ़ धरहरा में अंग्रेज के साथ क्या हुआ था? सामान्य लोगों की कल्पना में ईश्वर कैसा है? ईश्वर तक कैसे जा सकते हैं? पापी व्यक्ति का मन कैसा होता है? पाप से कैसे छूटते हैं?   इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- पाप पुण्य का परिणाम, पंच महापाप, सबसे बड़ा पुण्य क्या है, पुण्य के प्रकार, पुण्य के कार्य, पाप के प्रकार, पाप-पुण्य का समास विग्रह, पुण्य का अर्थ, सबसे बड़ा पुण्य क्या है, सात पाप, पाप और पुण्य क्या है, पाप पुण्य की परिभाषा, पुण्य कर्म, पाप का अर्थ क्या है, पाप और पुण्य की कहानी, पाप का अर्थ क्या है,  पाप और पुण्य का फल, सबसे बड़ा पुण्य क्या है, पाप और पुण्य, पुण्य कैसे करे, पाप पुण्य का लेखा जोखा, पुण्य in हिन्दी,  इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 86 को पढ़ने के लिए   यहां दवाएं।


पाप पुण्य पर चर्चा करते हुए गुरुदेव
पाप पुण्य का परिणाम सुख दुख होता है पर चर्चा

The result of sin virtue. पाप पुण्य का परिणाम,

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारे लोगो ! आपलोगों को बहुत उत्तम शरीर मिला है । इसे पाकर आप साँप , बिच्छू भी बन सकते हैं और ..... इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----What is the work of mind, sense and spirit? What is the difference between mind and spirit? What is Sat and Asat? What is the difference between the knowledgeable and ordinary people? How does the mind die Why does not the individual have his knowledge? What is the reason for our suffering? Does meeting all wishes come true? How is it reconciled with God? How long does it take to find God? What happens with satsang?....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए  पढ़ें-

८७. ईश्वर को मानिए , उसमें विश्वास कीजिए 

पाप पुण्य पर चर्चा करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

प्यारे लोगो ! 

     आपलोगों को बहुत उत्तम शरीर मिला है । इसे पाकर आप साँप , बिच्छू भी बन सकते हैं और देवता भी बन सकते हैं । पाप - कर्म करेंगे , अधर्म कर्म करेंगे तो फिर साँप , बिच्छू बनेंगे और सदाचार का पालन करेंगे ; भगवद्भजन करेंगे , पाप नहीं करेंगे , तो देवता - तुल्य हो जाएँगे । झूठ नहीं बोलें , एक शब्द को छिपा लेने से भी झूठ है । बात मत चुराइए । एक बात से किसी को लाख रुपये मिल जाते हैं और किसी को लाख रुपये की घटी हो जाती है । हिंसा नहीं करें । मन से , वचन से और कर्म से – तीनों प्रकार की हिंसा से बचें । किसी भी नशीली चीज का सेवन न करें । व्यभिचार न करें । यह तो हुआ संसार में कैसे रहेंगे ।

      अब ईश्वर भजन कैसे हो , इसके लिए सुनिए- आप कहेंगे हम कमाते हैं , खाते हैं , ईश्वर - भजन का क्या काम है ? दूसरे कहते हैं - ईश्वर नहीं माने तो नहीं सही , किंतु दुनिया में प्रतिष्ठा से रहो । तो वे कहते हैं - दुनिया में धन से प्रतिष्ठा होती है , तो धन जैसे - तैसे जमा कर लो । तो कोई कहता है - अभी जैसे - तैसे धन जमा कर लो ; लेकिन मरने पर नरक जाओगे तब ? तब वे कहते हैं - नरक - स्वर्ग कहाँ है ? खाओ पियो , धन जमा करो । पाप - पुण्य किसको लगता है ? जबतक जियो , सुख से रहो , नहीं तो ऋण लेकर भी घी पियो । मरने पर शरीर जलकर भस्म हो जाता है । यमराज कहाँ है ? सब कल्पना है । 

     किंतु ऐसा मत समझो । ईश्वर और जीवात्मा दोनों हैं मरोगे तो जीवात्मा अवश्य रहेगा । पाप करोगे तो शरीर छूटने पर नरक देखना पड़ेगा । युधिष्ठिर जरा - सा झूठ बोले थे तो नरक देखना पड़ा था । यहाँ आप देखते हैं कि कोई बच्चा जन्म लेता है तो हृष्ट - पुष्ट और कोई बच्चा दुबला - पतला रोग लिए हुए । कोई धनी के यहाँ जन्म लेता है , तो कोई निर्धन के यहाँ । ऐसा क्यों होता है ? इसके लिए पूर्व जन्म का संस्कार मानना पड़ेगा । पूर्व जन्म के कोई दानी पुण्यात्मा होंगे , इसलिए श्रीमान् के यहाँ जन्म लेकर वे बचपन से ही सुखी रहते हैं, पाप - कर्म का भी फल मिलता है । किसी को तो इसी जन्म में उसका फल मिल जाता है ।  
     सिकलीगढ़ धरहरा में एक अंग्रेज रहता था । वह मनुष्य को मनुष्य नहीं समझता था , पशु समझता था । बड़ा बदमाश था , लोगों को बहुत सताता था । कुछ दिनों के बाद वह पागल हो गया । भीख माँगकर खाया । राजदण्ड हुआ । पुलिस उसको खूब पीटती थी । उसी से चाबी लेकर उसी का धन खोल - खोलकर लेता था । 

     ईश्वर को मानिए , उसमें विश्वास कीजिए । स्वर्ग - नरक है , इसको भी मानिए । कर्म - फल के अनुसार नरक - स्वर्ग और दुःख - सुख भोगना पड़ेगा ही । संसार में तो सुख है ही नहीं । ईश्वर- भजन कीजिए , मोक्ष मिलेगा , तभी सुख है । 

      पहले ईश्वर को जानिए कि स्वरूपतः कैसा है ? लोग समझते हैं कि ईश्वर बड़ी सुन्दर देहवाला और सिंहासन पर विराजमान होगा । किंतु असली बात तो यह है कि ईश्वर की पहचान आँख से होने योग्य नहीं है वह कान से सुनने और नाक से सूंघने योग्य भी नहीं है त्वचा से स्पर्श होने योग्य नहीं है । वह इन्द्रियों से ऊपर है । शरीर और इन्द्रियों को छोड़कर आप स्वयं रहते हैं, तब अपने से जो पकड़ेंगे , वही ईश्वर है । लेकिन जबतक वह चेतन आत्मा मन बुद्धि और शरीर इन्द्रियों में रहती है , तबतक पहचान नहीं सकती। जो चेतन आत्मा से जाना पहचाना जाय , उसके लिए कोशिश कीजिए । उसकी युक्ति गुरु से जानिए । 

      अपने गाँव से आप यहाँ आए हैं । जब आप घर जाने लगेंगे , तो जैसे - जैसे जिस रास्ते से यहाँ आए हैं , यहाँ से उधर जाने में वैसे - वैसे इन सब गाँवों को छोड़ते - छोड़ते अपने गाँव पहुंचेंगे । उसी तरह आप शरीर , इन्द्रिय और मन - बुद्धि में आ गए हैं । इन सबको पार कर वहाँ पहुँचिए , जहाँ से आए हैं ।

      किसी चीज को समेटिए , तो उसके विपरीत की ओर उसकी गति हो जाती है । इसी तरह जब यह मन इन्द्रियों की ओर से रोका जाएगा , तो जिधर मन - इन्द्रिय आदि नहीं है , उधर को बढ़ेगा । इसी तरह से जाते - जाते ईश्वर के स्थान पर पहुँचेगा , वहाँ जाकर ईश्वर को पहचानेगा । वह ईश्वर को पहचान कर मुक्ति प्राप्त करेगा । इसके लिए जो जप और ध्यान करने के लिए बतलाया गया है , उसको करते रहिए । 

      जो आदमी पाप में फँसा रहेगा , वह उस ओर नहीं जा सकता है । जिसका मन सत्संग में जाने से कतराता है तो समझिए कि उसका मन पापी है । जिसके मन में लगा रहे कि सत्संग में कब जायँ , कब जायँ तो उससे पाप नहीं होगा । यदि उससे पाप हो भी जाय और वह कह दे कि भाई ! मुझसे यह पाप हो गया तो उससे फिर पाप नहीं होगा । जो गलती से झूठ बात आप में आ गयी है , उसको छोड़ दीजिए । अपने को पाप में मत डुबाइए ।०


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 88 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि सिकलीगर धरहरा में अंग्रेज के साथ हुई घटना और अन्य उदाहरण के द्वारा बताया गया है कि ईश्वर, जीव अवश्य होते हैं। पाप, पुण्य का परिणाम भी अवश्य मिलता है। . इत्यादि बातें।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S87, Paap Puny ka parinaam ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 25-05-1954ई. सैदाबाद, अररिया S87,  Paap Puny ka parinaam ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 25-05-1954ई. सैदाबाद, अररिया Reviewed by सत्संग ध्यान on 11/03/2020 Rating: 5

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