महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 05 घ
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 05वें में आप जानेंगे-- mukti kya hai in hindi, मोक्ष के प्रकार, मोक्ष प्राप्ति के साधन, मोक्ष की परिभाषा, कैवल्य का स्वरूप, मोक्ष meaning, शरीर कितने प्रकार के हैं,मनुष्य कितने प्रकार के होते हैं, शरीर के प्रकार, भक्ति के प्रकार, भक्ति के भेद, शब्द विचार, शब्द भेद व प्रकार,पल- पल सुमिरन-ध्यान, दिव्य सत्संग, ध्यान क्या है, Surat Shabad yoga, Yoga for Meditation, ऐसे करें ध्यान योग, आदि के बारे में।
सुरत शब्द योग पर प्रवचन करते गुरुदेव |
Bhakti wisdom and salvation in humans
सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- मुक्ति क्या है? ईश्वर ने सृष्टि क्यों की? शरीर कितने प्रकार का है? संसार कैसा है? शरीर और संसार में अंतर, क्लोरोफॉर्म का नशा और ध्यान योग, मुक्ति कब होगी? भक्ति के प्रकार, ज्ञान कितने प्रकार का होता है? ध्यान योग या राजयोग और हठयोग, ओम धनात्मक और वर्णनात्मक शब्द में अंतर, शब्द योग, मानस जप, शब्द साधना, सार शब्द का वर्णन, ध्यान करने की विधि, दृष्टि जो का नमूना, ध्यान अभ्यास और सत्संग की आवश्यकता, आदि बातों पर प्रकाश डाला गया है। पूरी जानकारी के लिए इस प्रवचन को पूरा पढ़ें-
नाद योग प्रवचन चित्र एक |
नाद योग प्रवचन चित्र दो |
नाद योग प्रवचन चित्र 3 |
नादयोग प्रवचन चित्र समाप्त |
इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नं.S06, को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि Surat Shabad yoga,भक्ति के भेद,शब्द विचार,शब्द भेद व प्रकार,पल- पल सुमिरन-ध्यान,दिव्य सत्संग,ध्यान क्या है, Yoga for Meditation,मोक्ष की परिभाषा,कैवल्य का स्वरूप, मोक्ष meaning, इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में इस प्रवचन का पाठ किया गया है।
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर |
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S05,(घ) Bhakti wisdom and salvation in humans --महर्षि मेंहीं प्रवचन 17-01-1951 ई.
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/06/2018
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