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S118 (ग) अंत:करण की शुद्धि कैसे होती है ? ant:karan kee shuddhi kaise hotee hai ?

महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर / 118 ग

      प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 118  के  इस भाग में बताया गया है कि  अंतरण की शुद्धि पांच पापों को छोड़ने से होती है। हिंसा दो तरह के हैं,  वार्य और अनिवार्य। अनिवार्य हिंसा को छोड़कर वार्य हिंसा से बचना चाहिए।  आइये इस प्रवचन का पाठ करने के पहले गुरु महाराज का दर्शन करें-

इस प्रवचन के दूसरे भाग को  पढ़ने के लिए  👉 यहां दबाए।

सत्संग सुधा ११८
सत्संग सुधा ११८ 


अंत:करण की शुद्धि  कैसे  होती है ?

     प्रभु प्रेमियों। !  इस प्रवचनांश में आप पायेंगे कि -  20.  अंत:करण की शुद्धि  कैसे  होती है ?   21. व्यभिचार किसे कहते हैं?   22.  नशा कितने तरह का होता है?  23. मनुजी के अष्टघातक कौन-कौन हैं?   24.  हिंसा कितने तरह की होती है?   25. कस्तूरबा गांधी गोश्त का शिरवा क्यों नहीं खायी ?   26. बकरे मारनेवाले की अंतिम गति कैसी होती है?   27. स्वराज्य में सुराज्य कैसे होगा ?   28. संतों की बात नहीं मानने से क्या होगा ?   इत्यादि बातें । इन बातों को अच्छी तरह से समझने के लिए निम्नलिखित प्रवचन को मनोयोग पूर्वक विचारते हुए बार-बार पढिए --

११८. विषयों का उपभोग किस रूप में?

सत्संग -सुधा 118

धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !

शेष प्रवचन --

जैसे दवाई की मात्रा के अनुसार दवाई - सेवन करते हैं , इसी तरह संसार में रहने के लिए दवाई के रूप में विषयों का उपभोग कीजिए , उसमें आसक्त नहीं होइए। 

     20. संत लोग जो कहते हैं , उनके अनुकूल चलना चाहिए । यदि भला भी होना चाहो और बुराई भी करो तो कैसे हो सकता है । इत्रदान में गोबरवाली अंगुलि देना ठीक नहीं । 

      ईश्वर का भजन करना चाहते हो, तो अपने अंत:करण को शुद्ध करो । अंत:करण को शुद्ध करने के लिए अपने को पापों से बचाओ । पापों से बचने के लिए झूठ छोड़ो । झूठ ऐसा झोला है , जिसमें सब पाप छिपा रहता है । 

     कोई पाप चुराकर करो तो वह प्रकट हो जाएगा । रामकृष्ण परमहंसजी ने कहा है कि पाप और पारा को कोई हजम नहीं कर सकता है । जैसे कोई छिपकर पारा खा ले तो वह शरीर को फोड़कर निकल जाता है । उसी तरह से छिपकर किया हुआ पाप भी कभी-न-कभी प्रगट हो ही जाता है । चोरी , नशा , हिंसा , व्यभिचार मत करो ।

      21. स्त्री - पुरुष का अनैतिक संबंध जोड़ना व्यभिचार है । वैवाहिक मर्यादा को तोड़कर अनैतिक संबंध जोड़ने- वाली नारी व्यभिचारिणी है और अनैतिक संबंध जोड़नेवाला पुरुष व्यभिचारी है । 

       22. तम्बाकू भी नशा है । संत कबीर साहब ने कहा है--

भाँग  तम्बाकू  छूतरा, अफयूँ और शराब । 
कह कबीर इनको तजै , तब पावै दीदार ।। 

इतना ही नशा नहीं है ।

मद तो  बहुतक  भाँति   का ताहि न जानै कोय । 
तन मद मन मद जाति मद, माया मद सब लोय ॥ 
विद्या  मद   और   गुनहु   मद, राज मद्द उन मद्द । 
इतने   मद   को   रद्द   करै,   तब  पावै अनहद्द ।। 

झूठ को तुरत छोड़ो । ऐसा नहीं कि आज पाँच झूठ बालते हैं , तो कल चार झूठ बोलेंगे । 

     23. हिंसाओं से बचो । अष्टघातक मनुजी ने बताए हैं- 

अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी । 
संस्कर्ता चोपहर्ताच खादकश्चेति घातकाः ॥ 

अर्थात् १. पशुवध की आज्ञा प्रदान करनेवाला , २. शस्त्र से मांस काटनेवाला , ३. मारनेवाला , ४ . बेचनेवाला , ५. मोल लेनेवाला , ६. मांस पकानेवाला , ७. परोसने के लिए लानेवाला , ८. खानेवाला ; ये आठो घातक हिंसा करनेवाले ही कहलाते हैं । हिंसा के सिलसिले में मत्स्य-मांस नहीं खाओ । दूसरी बात यह है कि आपका शरीर पवित्र है और पशु- पक्षी का शरीर अपवित्र है । पवित्र शरीर में अपवित्र जीव-जन्तुओं का मांस लेना ठीक नहीं । संसार में इतने मीठे-मीठे फल हैं, मिठाइयाँ हैं कि मनुष्य उतने खा नहीं सकते ।

     24. हिंसा दो तरह की है - वार्य और दूसरा अनिवार्य । वार्य हिंसा से बचा जा सकता है । अनिवार्य हिंसा से कोई बच नहीं सकता । कृषि कर्म में जो हिंसा होती है , वह अनिवार्य है । कृषि द्वारा यदि अन्न का उत्पादन नहीं हो, तो लोग भूखों मर जायें । लोग कहा करते हैं कि बिना मत्स्य-मांस खाए शरीर स्वस्थ नहीं रहता ; लेकिन इस विचार को महात्मा गांधी ने नहीं माना ।

    25. एक बार कस्तूरबा गांधी बीमार हो गई थी । उनको इतनी कमजोरी आ गई थी कि जिसके लिए डॉक्टर ने गोश्त का शिरवा खाने के लिए कहा था । गांधीजी ने कहा ' कस्तूरबा स्वतंत्र है , वे अपनी जीवनरक्षा के लिए गोश्त का शिरवा लेना चाहें , ले सकती हैं । ' लेकिन जब महात्मा गांधी ने उनसे पूछा तो कस्तूरबा गांधी ने कहा - ' मैं आपकी गोद में मर जाऊँगी , लेकिन गोश्त का शिरवा नहीं खा सकती । ' गांधीजी ने स्वयं कस्तूरबा का प्राकृतिक इलाज किया , जिससे वे बहुतांश में स्वस्थ हो गई । लेकिन भोजन में नमक का छोड़ना आवश्यक था । कस्तूरबा गांधी छोड़ने में असमर्थ थी । महात्मा गांधी ने कहा ' अब मैं भी नमक नहीं खाऊँगा । ' उन्होंने स्वयं नमक खाना छोड़ दिया । लाचार होकर कस्तूरबा ने भी नमक खाना छोड़ दिया । फिर वे पूर्ण स्वस्थ हो गई । 

     मांस-मछली खाने से बलवान होंगे , यह बात मानने योग्य नहीं । मथुरा के चौबे मत्स्य - मांस नहीं खाते । उनका थप्पड़ किसी को कान में लग जाय , तो बहरा ही बना देगा । मारवाड़ी लोग आपके यहाँ हैं । वे मत्स्य - मांस नहीं खाते , कितने अच्छे - अच्छे शरीरवाले हैं । बिना मत्स्य - मांस के ही उनके रोगों का इलाज होता है । 

      26. किसी के घर में चोर - डाकू आवे तो उससे लड़ना चाहिए । देश के काम के लिए हमारे योग्य बलवाले उस दुष्ट को रोकें । जिस हिंसा की मनाही है , वह वार्य हिंसा के लिए है , अनिवार्य हिंसा से बचने के लिए नहीं । शौक से हिंसा मत करो । बकरे मारनेवाले को देखा कि मरने के छह महीने पूर्व उनको ऐसा भ्रम होने लगा कि बकरी सींग से मारने आती है । एक शौकीन हिंसा करनेवाले के लिए दो लाख रुपये खर्च किए गए , लेकिन वे बचे नहीं । कर्मफल अमिट है । संत कबीर साहब ने यह कहा है  --

कहता हूँ कहि जात हूँ,  कहा जो मान हमार । 
जाका गर तू काटिहौ , सो फिर काट तोहार ॥ 
मांस  मछरिया   खात है , सुरा   पान से हेत । 
सो नर जड़ से जाहिंगे , ज्यों  मूरी   की खेत ॥ 
यह कूकर को खान है,  मानुष देह क्यों खाय ।  
मुख  में आमिख मेलता , नरक पड़े सो जाय ॥

      27. किसी की चीज बिना उसके दिए मत लो । चोरी-डकैती मत करो।  पंच पापों से यदि बचकर रहो , तो देश में चैन हो जाय ।पाप करने के कारण ही देश में चैन नहीं है। चोरी डकैती व्यभिचार आदि पाप करते रहने से कैसे चैन हो सकता है ? भारत में पहले घर में ताला नहीं लगाया जाता था । आज क्या हो गया है ? स्वराज्य हुआ , लेकिन सुराज नहीं हुआ है । पंच पापों को छोड़िए और ईश्वर - भजन कीजिए । तभी कल्याण होगा । 

     28. संतों ने सबके उपकार के लिए कहा है । पसंद पड़े तो कीजिए , नहीं पसंद हो तो नहीं कीजिए । उसका जो फल होगा , वह भोगिए । मेरा कोई बल नहीं है कि जबर्दस्ती कहेंगे कि कीजिए ही । ∆


(यह प्रवचन पुरैनियाँ जिलान्तर्गत महर्षि मेँहीँ नगर, कुशहा तेलियारी ग्राम में दिनांक २८.६.१९५५ ई ० को अपराह्नकालीन सत्संग में हुआ था । )

 

नोट-  इस प्रवचन में निम्नलिखित रंगानुसार और विषयानुसार ही  प्रवचन के लेख को रंगा गया या सजाया गया है। जैसे-  हेडलाइन की चर्चा,   सत्संग,   ध्यान,   सद्गगुरु  ईश्वर,   अध्यात्मिक विचार   एवं   अन्य विचार   । 


उपरोक्त प्रवचन को महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर में प्रकाशित रूप में पढ़ें -

महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर 118च
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर 118च

महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर 118छ
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर छ


इस प्रवचन को शांति संदेश में प्रकाशित रूप में पढ़ें -

सत्संग -सुधा 118च
सत्संग -सुधा 118च

सत्संग -सुधा 118छ
सत्संग -सुधा 118छ


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 119  को पढ़ने के लिए 👉 यहां दबाएं।

     प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि पवित्रता का महत्व क्या है? अंतःकरण को कैसे पवित्र कर सकते हैं, व्यभिचार का अर्थ क्या है? नशा कितने प्रकार का होता है ? झूठ क्यों नहीं बोलना चाहिए ? चौबे के थप्पड़ का मारा कैसा होता है? इत्यादि बातें।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।



सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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