महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर / 118
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शेष प्रवचन --
......हमारे यहाँ ऋषि, मुनि, योगी लोग हो गए हैं । उन लोगों ने इन्द्रियों को दमन किया है, जिनको दमन करना कठिन है । इस शरीर में मोक्ष का द्वार भी है ।
12. शरीर के जितने तल हैं , संसार के भी उतने ही तल हैं । जब हम स्थूल शरीर में रहते हैं , तो हम स्थूल संसार में रहते हैं । उसी तरह से सूक्ष्म , कारण , महाकारण आदि शरीरों के भी जिस तल पर रहते हैं , संसार के भी उसी तल पर रहते हैं । शरीर के जिस तल को छोड़ते हैं , संसार के भी उस तल को छोड़ते हैं । जो शरीर के सभी तलों से ऊपर उठ जाते हैं, वे संसार के सभी तलों से परे हो जाते हैं । जो शरीर से निकलता है, वह संसार से भी छूट जाता है ।जाग्रत से जब हम स्वप्न अवस्था में जाते हैं तो स्थूल शरीर का ज्ञान नहीं रहता है , तो स्थूल संसार का भी ज्ञान नहीं रहता है ।पिण्ड को पार करो तो ब्रह्माण्ड को भी पार कर जाओगे । इसलिए ऐसा कोई रास्ता मिले, जिससे इस शरीर से, संसार से छूटा जाय ।
13. इस शरीर में छोटे - छोटे बहुत छिद्र हैं , बड़े - बड़े नौ । आँख के दो , नाक के दो , कान के दो , मुँह का एक और मल - मूत्र के दो छिद्र हैं । छोटे - छोटे छिद्र झरोखे हैं । यह शरीर नौ द्वारों का घर है । नौ द्वारों में से एक भी द्वार ऐसा नहीं है , जिससे शरीर से छुटकारा मिले , मोक्ष मिले । ये सब द्वार भीतर से बाहर जाने को हैं और वह द्वार जिससे भीतर प्रवेश कर सकते हैं , दसवाँ द्वार है । वह आपकी आँख के पास है । आपलोग शिवजी की प्रतिमा में तीन आँखें देखते होंगे । शिवनेत्र इसलिए कहलाता है कि जो उसको प्राप्त करता है , उसका कल्याण होता है । यह रास्ता ब्रह्म की ओर जाने का है । गुरु नानक साहब ने कहा-
और - नउ दर ठाके धावतु रहाए, दसवें निज घरि वासा पाये ।
इन नौ द्वारों में रहते हुए आप कल्याण नहीं पाते हैं, दसवें द्वार में जाएँ , तब बहुत कल्याण होगा । दसवें द्वार में जाने के लिए बड़ी एकाग्रता की जरूरत होती है । एकाग्रता में शान्ति आती है ।
14. आपलोग जब जगने से सोने के लिए कोशिश करते हैं तो एक अवस्था आती है , जिसको तन्द्रा कहते हैं , उस समय शरीर कमजोर होता जाता है , शक्ति भीतर की ओर खिंचती जाती है । उस समय कुछ सुनते हैं और कुछ भूलते हैं । किसी इन्द्रिय का वहाँ स्वाद नहीं है । अंदर सरकाव में चैन मालूम होता है । सोने के समय मन की चंचलता छूटती है । यदि मन में कोई चिन्ता लगी हो तो नींद नहीं आवेगी । सोने के समय अंदर प्रवेश करते समय सब ख्याल छूटते जाते हैं , एक चैन मालूम होता है , यह तो स्वाभाविक सबको होता है । जो कोई भजन करता है , उसको विचित्र आनंद मालूम होता है । संत कबीर साहब ने कहा है--
15. जो अंतर की ओर चलता है , वह संसार की ओर से छूटता है , जो संसार की ओर से छूटता है , वह परमात्मा की ओर जाता है ।जो उस दसवें द्वार से गुजरता है , वह मोक्ष की ओर जाता है, वह भक्ति करता है । दसवें द्वार की ओर जाना भक्ति करनी है ।
जिसने इस मनुष्य शरीर को पाकर अपना परलोक नहीं सुधारा , वह दुःख पाता है । परलोक दो तरह के होते हैं - एक स्वर्गादि और दूसरा मोक्ष । यहाँ परलोक स्वागादि के लिए है । इसीलिए भगवान श्रीराम ने कहा--
अर्थात् जो मनुष्य-शरीर पाकर अपना कल्याण नहीं कर लेते हैं, वे अंत में दुःख पाते हैं और सिर धुन-धुनकर पछताते हैं । वे काल, कर्म और ईश्वर को झूठ ही दोष देते हैं ।
16. ईश्वर की बड़ी कृपा है कि मनुष्य का शरीर मिला है । ईश्वर की विशेष कृपा को आप प्राप्त कर सकते हैं , जब आप परमात्मा का भजन कीजिए । काल आपके अधिकार में है । समय को सोकर , बैठकर खो सकते हैं, कुछ काम करके बिता सकते हैं, ईश्वर - भजन करके बिता सकते हैं । समय किसी को कुछ करने में रोकता नहीं है । कर्म का भी दोष देना बेकार है । अपने प्रारब्ध को अपने से ही बनाना होता है। इसलिए काल, कर्म, ईश्वर को दोष देना उचित नहीं । फिर भगवान श्रीराम ने कहा--
17. स्वर्ग में भी पुण्य के अंत में दुःख ही होता है । विषय - सुख से अपने को निवृत्त करो । स्वर्ग- सुख का लालच भी छोड़ो । पशुओं के शरीर में भी इन्द्रियों के सुख का भोग है । मनुष्य भी यदि इन्द्रियों के भोगों में बरते तो पशु से क्या विशेषता हुई ? भगवान राम ने कहा-पंच विषयों से पर पदार्थ के लिए चेष्टा करो अर्थात् परमात्मा को प्राप्त करने कहा । भगवान राम ने कहा--
नरतन पाइ विषय मन देहीं । पलटि सुधा तेसठ विष लेहीं ।। ताहि कबहुँ भल कहहिं न कोई । गुंजा ग्रहइ परसमनि खोई ।।
मनुष्य - शरीर पाकर जो विषय में मन लगाता है, वह अमृत छोड़कर विष लेता है । आगे भगवान श्रीराम कहते हैं--
अंडज , पिण्डज , स्वेदज और ऊष्मज ; इन चार खानियों में ८४ लाख योनियाँ हैं । माया की प्रेरणा से काल , कर्म , स्वभाव , गुण के घेरे में पड़कर सदा अविनाशी जीव घूमा करता है । मनुष्य ८४ लाख योनियों को भोगते हुए आया है । इसलिए इससे छूटने का उपाय करो । इससे छूटने का उपाय है - वायु , नाव और मल्लाह । ईश्वर की कृपा ' सन्मुख मरुत ' या अनुकूल पवन है । अनुकूल इसलिए कि नाव को पश्चिम जाना चाहिए , किंतु नदी का बहाव पूरब की ओर ले जाता है । यदि पुरबैया हवा चल पड़े तो वह हवा उसको पूरब की ओर जाने से रोकती है । उस नाव पर मल्लाह पाल टाँग देता है , तब नाव भाठे से सिरे की ओर चली जाती है । मनुष्य शरीर नाव है , ईश्वर की कृपा अनुकूल वायु है और सद्गुरु मल्लाह हैं ।
18. सद्गुरु वह है , जो सद्ज्ञान में बरते , जो दूसरों को सद्ज्ञान देता हो, सत्स्वरूप परमेश्वर का भजन करता हो और दूसरों को भजन करने का प्रेरण देता है ।
19. सद्गुरु मल्लाह हैं । जो इन साज - सामानों को पाकर अपना कल्याण नहीं कर लेते हैं , वे कृत निन्दक , मंदमति और आत्महत्या के दोष को पाते हैं । इसलिए लोगों को चाहिए कि भगवान श्रीराम के उपदेश को माने और विषय को छोड़कर निर्विषय की ओर चलें । जैसे दवाई की मात्रा के अनुसार दवाई - सेवन करते हैं , इसी तरह संसार में रहने के लिए दवाई के रूप में विषयों का उपभोग कीजिए , उसमें आसक्त नहीं होइए । .....
क्रमशः
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महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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