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S37, Mumukshu Stree ko Pativrat se Moksh nahin । महर्षि मेंहीं प्रवचन ६.१२.१६५२ई. सैदाबाद, अररिया, बिहार

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" / 37

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान् प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर" जिसमें सद्गुरु महाराज के विविध विषयों पर, विविध समय एवं स्थानों पर दिए गए प्रवचनों का वृहद संग्रह है। इस संग्रहनीय पुस्तक के 37वें नंबर के प्रवचन के बारे में।

इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी )  में बताया गया है कि- मुमुक्षु स्त्रियों को पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए, ईश्वर-भक्ति करनी होगी, तभी सभी दुखों से छुटकारा हो सकता है।    इन बातों की जानकारी  के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- Pativrat se moksh nahin,Pativrata in Hindi, PatiVrata Nari, Pativrata dharma in Hindi, Pativrata rules,Pativrata meaning, Pativrata stri names, Pativrata nari in Hindi, Pativrata Nari meaning, Pativrata meaning in Hindi, PatiVrata Stri ki pehchan, Pativrata nari ke naam, PatiVrata Nari Ke Gun,  आदि। इन बातों को जानने के पहले, आइए !  संत सदगुरु बाबा महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें। 

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नं 36 को  पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।

केवल पतिव्रत धर्म से मोक्ष नहीं मिल सकता। इस विषय में प्रवचन करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज।
केवल पतिव्रत धर्म के पालन से मोक्ष नहीं मिल सकता

Mumukshu Stree ko Pativrat se Moksh nahin

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि-   प्यारे लागो ! इतिहास भी कुछ - कुछ सुनना चाहिए । इसलिए कि जो कोई अच्छे - अच्छे कर्म किए हैं , उनके कर्मों का इतिहास सुनकर अच्छे - अच्छे कर्म करने की इच्छा होती है और इतिहास में ऐसी भी बातें होती हैं कि बुरे - बुरे कर्म करनेवाले भी लोग हुए हैं । उनका परिणाम जो दुःख होता है , उसे सुनकर लोग ......  "   इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस प्रवचन को समझते हुए पढ़ें-

३७. धर्म से विराग होता है।


 प्यारे लागो !

      इतिहास भी कुछ - कुछ सुनना चाहिए । इसलिए कि जो कोई अच्छे - अच्छे कर्म किए हैं , उनके कर्मों का इतिहास सुनकर अच्छे - अच्छे कर्म करने की इच्छा होती है और इतिहास में ऐसी भी बातें होती हैं कि बुरे - बुरे कर्म करनेवाले भी लोग हुए हैं । उनका परिणाम जो दुःख होता है , उसे सुनकर लोग बुरे कर्म नहीं करेंगे । 

      स्त्री को पातिव्रत्य - धर्म का पालन करना चाहिए । वह लोक में भी यश पाती है और परलोक में भी सुखी रहती है । विपरीत चलनेवाली को दुःख और नरक होता है । पातिव्रत्य - धर्म से मोक्ष नहीं मिलता । मोक्ष तो ईश्वर की भक्ति से होता है , किंतु पातिव्रत्य - धर्म का पालन करने से इहलोक और परलोक दोनों में सुखी रहती है ।

      मैं और मेरा दोनों माया है । माया दो हैं - विद्या और अविद्या । अविद्या माया अंधी है , अपने को भी नहीं देखती । यह दुष्ट माया है । इसके बाद विद्या माया है । दान , पुण्य , सत्संग विद्या माया है । अपने को जो नहीं पहचानता , ब्रह्म को नहीं पहचानता , माया को नहीं पहचानता , वह जीव है । ईश्वर वह है , जो माया को अपने अधीन रखता है , जीव को बंधन और मुक्ति दोनों दे सकता है ।

      ज्ञान किसको कहते हैं ? जो सबमें एक ईश्वर को देखता है । विराग वह है , जो त्रयगुण ( ब्रह्मा , विष्णु , महेश ) की शक्ति को तुच्छ समझता है । उसमें जो आसक्त नहीं है , विरक्त वही है । ज्ञान से मुक्ति , योग से ज्ञान और धर्म से विराग होता है । दान - पुण्य भी धर्म है । धर्म - कर्म करनेवाले की आसक्ति धन से छूटती है । ध्यान करने में उसका मन लगता है , उसको पहले से ही विरक्ति है ।

      तुम्हारा शरीर समुद्र है । लंबा साढ़े तीन हाथ , चौड़ा एक हाथ देखने में आता है । किंतु यह समुद्र है । इसका अंत नहीं मिलता । संत इसका अंत करते हैं । शरीर का अंत पाकर ही कोई संत होते हैं । मृतक होकर रहना - इन्द्रियाँ मृतक देह में निश्चेष्ट रहती हैं । इसी प्रकार साधना में जिसकी इन्द्रियाँ निश्चेष्ट हैं , वह मृतकवत् है । जो मृतक है , वही इस शरीररूपी समुद्र में डुबकी लगा सकता है । कबीर साहब कहते हैं-
संत कबीर साहब अपनी वाणी का उच्चारण करते हुए।
संत-कबीर-साहब

 मैं मरजीवा समुंद का , डुबकी मारी एक । मुट्ठी लाया ग्यान की , जामें वस्तु अनेक ।।

      कबीर साहब कहते हैं - जो शरीर समुद्र के समान गहरा है , मैंने उसमें ध्यान द्वारा डुबकी लगायी । अर्थात् इस शरीर के अंतर में प्रवेश किया तो वह वस्तु ( परमात्मा ) प्राप्त हुई , जिसमें अनेक प्रकार की चीजें भरपूर हैं । फिर कहते हैं अपने

 डुबकी मारी समुंद में , निकसा जाय अकाशा पहचानता , गगन मण्डल में घर किया , हीरा पाया दास ।।

      वह अर्थात् डुबकी शरीररूपी समुद्र में मारते हैं और आकाश में निकलते हैं । यह तो भजन करने से मालूम होगा ।

      भक्त वह है जो ईश्वर को पाने का यत्न है , उसको करता है । जो कोई अपने अंदर में अच्छी तरह से ध्यान करता है , उसी को ईश्वर मिलता है । एक बार ईश्वर मिलने से फिर हेराता नहीं है । और चीजें मिलकर हेरा जाती हैं ; किंतु यह हेराता नहीं है । इसलिए नित्य ध्यानाभ्यास करना चाहिए , सत्संग करना चाहिए । इसमें गफलत नहीं करनी चाहिए ।

      जिस प्रकार पत्नी के लिए एक पातिव्रत्यधर्म है , उसी प्रकार पुरुष को भी एक पत्नीव्रतधर्म का पालन करना चाहिए । श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार थे । वे चक्रवर्ती राजा थे । वे जितनी शादी करना चाहते , कर सकते थे , किंतु एक सीता ही उनकी पत्नी थी ।

      पुरुष एक पत्नीव्रत धर्म का पालन करे और स्त्री एक पातिव्रत्य - धर्म का पालन करे , साथ ही भजन - अभ्यास करे , इससे स्वर्ग को कौन कहे , मोक्ष भी मिल जाएगा । ज्ञान - प्राप्ति के लिए सत्संग कीजिए और ध्यानाभ्यास नित्य कीजिए । इति।।


इस प्रवचन के बाद  वाले प्रवचन नं 38 को  पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर" के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  मुमुक्षु स्त्रियों को पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए, ईश्वर-भक्ति करनी होगी, तभी सभी दुखों से छुटकारा हो सकता है।इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने।  इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त प्रवचन का पाठ करके सुनाया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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