S96, (क) The poignant meaning of the Kabir Nirguna Bhajan ।। महर्षि मेंहीं प्रवचन पीयूष

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 96

 प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ९६वां, को । इसमें कबीर साहब के निर्गुण भजन के मार्मिक अर्थ के बारे में विशेष रूप से बताया गया है।

इसके साथ ही इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि-  sant kabeer saahab ke gyaanee hone ka raaj, shreemadbhaagavat mein shoony dhyaan kee charcha, dhyaan kab karana chaahie, keval vidvata se santavaanee ka arth nahin ho sakata, kabeer baanee ka maarmik arth, kabeer vaanee mein janmana aur marana kya hai? bhajan karane kee anivaaryata, guru kee aavashyakata,    इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- kabeer saahab ke nirgun bhajan, nirgun bhajan hindee, kabeer saahab ke nirgunee bhajan, kabeer saaheb ke bhajan, kabeeradaas ke nirgunee bhajan, niragun bhajan, kabeer daas ke bhajan, kabeer bhajan, kabeer saahab ka bhajan, kabeer nirgun bhajan, kabeer bhajan maala, kabeerapanthee bhajan,kabeer saahab ke nirgun bhajan ka marm, kabeer nirgun bhajan ka maarmik arth   इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें। 

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 95 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।

कबीर साहब के निर्गुण भजन पर प्रवचन करते हुए गुरुदेव
कबीर निर्गुण भजन पर चर्चा करते हुए गुरु महाराज

Kabeer Nirgun Bhajan ka Maarmik Arth

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारे लोगो ! कबीर साहब की निस्बत विद्वान लोग कहते हैं कि वे बहुश्रुत थे । इससे वे ज्ञान - ध्यान की बात बहुत जानते थे । .....इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----The secret of Saint Kabir's knowledge, the discussion of zero meditation in Srimad Bhagwat, when should one meditate, only scholarly meaning cannot mean Santwani, what is the poignant meaning of Kabir Bani, what is the birth and death in Kabir Vani? Essentials of Bhajan, need of Guru,......आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-

९६ . कबीर साहब के निर्गुण भजन का मर्म


कबीर साहब के निर्गुण भजन पर विशेष चर्चा करते गुरुदेव

प्यारे लोगो !

      कबीर साहब की निस्बत विद्वान लोग कहते हैं कि वे बहुश्रुत थे । इससे वे ज्ञान - ध्यान की बात बहुत जानते थे । किंतु कबीर साहब स्वयं कहते हैं मैं मरजीवा समुंद का , डुबकी मारी एक । मुट्ठी लाया ज्ञान की , जामें वस्तु अनेक ।।

     इसमें संशय नहीं कि कबीर साहब बहुश्रुत थे , किंतु उन्होंने साधन भी किया था और तब वे ज्ञानी हुए थे । जैसा कि उनके उपर्युक्त वचन से पता चलता है । वे कहते हैं डुबकी मारी समुंद में , निकसा जाय अकाश । गगन मंडल में घर किया , हीरा पाया दास ॥ 

     दूसरी जगह वे कहते हैं - ' शून्य ध्यान सबके मन माना । ' शून्य ध्यान कैसे होगा , इसका पता अभ्यासी को मालूम होता है । शून्य ध्यान भगवान श्रीकृष्ण को भी पसंद था । श्रीमद्भागवत में आया है - उद्धव से भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- ' पहले तुम मेरे सम्पूर्ण शरीर का ध्यान करो , फिर चेहरे का और इन दोनों में दृढ़ हो जाने पर शून्य में ध्यान करो । ' यथा इन्द्रियाणीन्द्रियार्येभ्यो मनसाऽऽकृष्य तन्मनः । बुद्ध्या सारथिना धीरः प्रणयेन्मयि सर्वतः ।। तत्सर्वव्यापकं चित्तमाकृष्यैकत्र धारयेत् । नान्यानिचिन्तयेद्भूयः सुस्मितं भावयेन्मुखम् ॥ तत्र लब्ध पदं चित्तमाकृष्य व्योम्नि धारयेत् । -श्रीमद्भागवत , स्कन्ध ११ , अध्याय १४ 

     अर्थात् बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि मन के द्वारा इन्द्रियों को उनके विषयों से खींचकर उस मन को बुद्धि रूपी सारथी की सहायता से सर्वांगयुक्त मुझमें ही लगा दे । सब ओर से फैले हुए चित्त को खींचकर एक स्थान में स्थिर करे और फिर अन्य अंगों का चिंतन न करता हुआ केवल मेरे मुस्कानयुक्त मुख का ही ध्यान करे । मुखारविन्द में चित्त के स्थिर हो जाने पर उसे वहाँ से हटाकर आकाश में स्थिर करे ।

     भगवान श्रीकृष्ण स्वयं संध्या करते थे । वे बाह्ममुहूर्त में संध्या करते थे । हर संध्या के समय करते होंगे ; किंतु एक विद्वान ने लिख दिया कि महाभारत के मैदान में संध्या के समय अन्य लोग संध्या करते थे और भगवान श्रीकृष्ण घोड़े की परिचर्या करते थे । संत कबीर साहब की वाणी - ' झीनी झीनी बीनी चदरिया ।'- पर उन्होंने यह लिखा है कि कबीर चादर बिनता जाता था और यह पद ' झीनी झीनी बीनी चदरिया । ' गाता जाता था । मानो परमात्मा को ओढ़ाने के लिए वह चादर बिनता हो । लेकिन उनके सम्पूर्ण पद्य को सुनिए झीनी झीनी बीनी चदरिया।।टेक ।। काहे कै ताना काहे कै भरनी , कौने तार से बीनी चदरिया ।।  इंगला पिंगला ताना भरनी , सुषमन तार से बीनी चदरिया ।। आठ कँवल दल चरखा डोले , पाँच तत्त गुन तीनी चदरिया ।। साई को सियत मास दस लागै , ठोक ठोक के बीनी चदरिया ।। सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी , ओढ़िके मैली कीन्हीं चदरिया ।। दास कबीर जतन से ओढ़ी , ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया ।।

     एक विद्वान ने - ' सतपुरुष इक बसे पछिम दिसि , तासों करो निहोर ' का अर्थ किया था कि ' कबीर मुसलमान खानदान के थे । इसलिए उन्होंने मक्का का संकेत किया ' किंतु वे इसका क्या अर्थ करेंगे जब कबीर साहब ने चारो दिशाओं का हाल कहा है जानता कोई ख्याल ऐसा ।. पूरख सोधि पछिम दिस लावै , अर्ध उर्ध के भेद बतावै । सिला नावि दक्खिन को धाओ , उत्तर दिसा को सुमिरन चाखो । चारो दिसा का हाल ऐसा .॥ 

     केवल विद्या - बुद्धि से ही संतवाणी का अर्थ नहीं हो सकता । इसके लिए युक्ति जाननी चाहिए और अभ्यास भी करना चाहिए , तभी संतवाणी का ठीक - ठीक अर्थ हो सकेगा । स्थूल से सूक्ष्म में प्रवेश करना मरना है । कबीर साहब ने कहा है मरिये तो मरि जाइये , छूटि पड़े जंजार । ऐसी मरनी को मरे , दिन में सौ सौ बार ।। 

     यहाँ दिन का अर्थ समय से है । समय में ही रहकर लोग जनमते - मरते हैं । लेकिन जबतक जन्म का कारण जो है , उसके पार न हो जाय , तबतक यह छूट नहीं सकता । स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महा कारण ; इन सब शरीरों को जो पार कर जाएगा , तब जो उसका मरना होगा , तो फिर जनमना - मरना नहीं होगा । ऐसा जिस जन्म में होगा , उसके बाद फिर उसका जन्म नहीं होगा । इसलिए बहुत भजन करना है।

     एक गरीब का बच्चा हो या अमीर का , दुःख सबको होता है । बचपन में मलमूत्र पर पड़े रहना , जवानी में विकारों में फँसना , इसी दु : ख में लगे रहना बुद्धिमत्ता नहीं है । इससे छूटने के लिए भजन करना चाहिए । ऐसा विश्वास है कि अभी कुछ जपते हैं , प्राणायाम करते हैं , इससे ही हमारी मुक्ति हो जाएगी , इसका विश्वास नहीं करना चाहिए । यह तो उतना ही है जहाँ से योग का आरंभ किया जाता है । किंतु इस विन्दु के बिना काम नहीं चलता और केवल इसी में लगे रहने से भी काम नहीं चलता । इससे आगे बढ़ने के लिए किसी जानकार गुरु को धारण करो । योगशिखोपनिषद् में गुरु को कर्णधार कहा है कर्णधारं गुरुं प्राप्य तद्ववाक्यं प्लवव दृढम् । अभ्यासवासनाशक्त्या तरन्ति भवसागरम् ।। 

     अर्थात् गुरु को कर्णधार ( मल्लाह ) पाकर और उनके वाक्य को दृढ़ नौका पाकर अभ्यास ( करने की ) वासना की शक्ति से भवसागर को लोग पार करते हैं ।०

 
इसी प्रवचन को शांति संदेश में प्रकाशित किया गया है उसे पढ़ने के लिए   यहां दबाएं। 


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि संत कबीर साहब के ज्ञानी होने का राज, श्रीमद्भागवत में शून्य ध्यान की चर्चा, ध्यान कब करना चाहिए, केवल विद्वता से संतवाणी का अर्थ नहीं हो सकता, कबीर बानी का मार्मिक अर्थ, कबीर वाणी में जन्मना और मरना क्या है? भजन करने की अनिवार्यता, गुरु की आवश्यकता,  इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने  इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है। 




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S96, (क) The poignant meaning of the Kabir Nirguna Bhajan ।। महर्षि मेंहीं प्रवचन पीयूष S96, (क) The poignant meaning of the Kabir Nirguna Bhajan ।। महर्षि मेंहीं प्रवचन पीयूष Reviewed by सत्संग ध्यान on 9/29/2020 Rating: 5

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