S82, Muktikopanishad mein Mukti aur usake bhed ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 01-05-1954ई.

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 82

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ८२ के बारे में। इसमें बताया गया है कि  सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य, सायुज्य  ब्रह्मनिर्वाण, जीवन - मुक्त और  विदेह - मुक्ति क्या है?

इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि-  मुक्ति कितने प्रकार की होती है? मुक्ति के भेदों का वर्णन, चित्र का स्वभाव कैसा है? जीवन मुक्ति और विदेश मुक्ति में क्या अंतर है? मुक्तिकोपनिषद् में किन मुक्तियों का वर्णन हूआ है? ब्रह्म निर्वाण किसे कहते हैं? भगवान श्री राम ने हनुमान जी महाराज को किस मुक्ति के लिए कहा है? ब्राह्मण निर्माण का मतलब क्या है?   इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- मुक्ति और उसके भेद, मुक्तिकोपनिषद् में मुक्ति और उसके भेद, Freedom, Salvation, मुक्ति के प्रकार, मोक्ष कितने प्रकार के होते हैं, मुक्ति और मोक्ष में क्या अंतर है, मुक्ति क्या है, मोक्ष की परिभाषा, मोक्ष की परिभाषा, मोक्ष नाम का अर्थ, मुक्ति का अर्थ, मोक्ष प्राप्ति, मोक्ष की प्राप्ति, मोक्ष क्या है गीता, मोक्ष प्राप्ति के साधन, मोक्ष प्राप्ति के उपाय,   इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 81 को पढ़ने के लिए   यहां दवाएं।

मुक्ति के भेदों को बतलाते हुए सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज
मुक्ति, मोक्ष और बंधन क्या है? समझाते हुए गुरुदेव

Liberation and its differences in Muktikopanishad. मुक्तिकोपनिषद् में मुक्ति और उसके भेद

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! इस समय आपलोगों के सामने ईश्वर की भक्ति पर कहना है । ईश्वर - स्वरूप का जब निर्णय हो जाता है , तब समझ में आने लगता है कि ईश्वर की भक्ति कैसे हो ?.....   इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----What type of freedom is there?  Describe the secrets of liberation, how is the nature of the picture?  What is the difference between liberation of life and liberation abroad?  Which freedoms have been described in Muktikopanishad?  What is Brahma Nirvana?  Lord Sri Rama has asked Hanumanji Maharaj for which salvation?  What is the meaning of Brahmin creation?.....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-

८२. पाँच किस्म की मुक्ति 

मुक्ति और उसके भेद के बारे में चर्चा करते हुए सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

प्यारे लोगो ! 

     हमलोग अभी जिस हालत में हैं , यह बंध दशा है । हमलोग शरीर और संसार में बंधे हुए हैं । जितने संत - महात्मा हो गए हैं , सभी ने इस बंधन से छूटने के लिए कहा है । इस बंध दशा से छूट जाने को मुक्ति कहते हैं । अपने यहाँ पुराणों और अध्यात्म ग्रंथों में मुक्ति के भिन्न - भिन्न नाम कहे गए हैं - सालोक्य , सामीप्य , सारूप्य , सायुज्य और ब्रह्मनिर्वाण । ये पाँच किस्म की मुक्ति हैं । मुक्तिको पनिषद् में भगवान श्रीराम ने श्रीहनुमानजी को उपदेश देते हुए बताया है चतुर्विधातु या मुक्तिर्मदुपासनया भवेत् ।।

     ( सालोक्य - उपास्यदेव के लोक की प्राप्ति , सामीप्य उपास्यदेव की समीपता प्राप्त करनी , सारूप्य - उपास्यदेव के शरीर सदृश रूप प्राप्त करना , सायुज्य -  उपास्यदेव के साथ युक्त होना अर्थात् उपास्यदेव के शरीर से भिन्न अपना दूसरा शरीर न रखना । ) इन चार प्रकार की मुक्तियों का वर्णन हुआ , ये मेरी उपासना से होती हैं । 

     इन चारों प्रकार की मुक्तियों में देह का रहना कहा गया है । सायुज्य मुक्ति में ऐसा कि अपना स्थूल शरीर नहीं रहा । इष्ट की देह में रहा , किंतु देहसहित रहा । ब्रह्मनिर्वाण में इष्टदेव का रूप - रंग नहीं रहता और भक्त का भी रूप - रंग नहीं रहता । वहाँ कोई लोक नहीं , स्थान और समय नहीं ; देश और काल से घिरा हुआ नहीं । उस दशा को जो प्राप्त करता है , वह हुआ ब्रह्मनिर्वाण । सकल दृस्य निज उदर मेलि , सोवइ निद्रा तजि जोगी । सोइ हरिपद अनुभवइ परम सुख , अतिसय बैत वियोगी ॥ सोक मोह भय हरष दिवस निसि , देस काल तहँ नाहीं । तुलसिदास एहि दसा - हीन , संसय निर्मूल न जाहीं ॥ गोस्वामी तुलसीदासजी 

     यह है ब्रह्मनिर्वाण - विदेह मुक्ति । मुक्तिको पनिषद् में श्रीराम ने हनुमानजी को यही उपदेश दिया था । इसमें कहा गया कि जबतक चित्त का स्वभाव होता रहता है , तबतक बंध दशा है । चित्त का स्वभाव है - मैं कर्ता , भोक्ता , सुखी और दुःखी हूँ । इस तरह की उपज जबतक होती रहती है , तबतक जीव बंधन में रहता है कर्ता , भोक्ता , सुखी , दुःखी होने के भाव से जब वह मुक्त होता है , गोया ऐसा भाव उठता नहीं , तब जबतक उसका शरीर रहता है , वह जीवन - मुक्त कहलाता है और जब शरीर छूट जाता है , तब विदेह - मुक्ति होती है । जैसे घड़े की दीवार फूट जाने से वह घटाकाश घट से मुक्त हो गया , उसी तरह जब साधक का शरीर नहीं रहा , प्रारब्ध नाश हो गया , तब वह विदेह - मुक्त हो गया । वहाँ भी भगवान श्रीराम के कथानुकूल विदेह - मुक्ति को श्रेष्ठ बतलाया । तुलसीकृत रामायण में भी भगवान श्रीराम का उपदेश है जीवन मुक्त ब्रह्म पर , चरित सुनहिं तजि ध्यान । हरि कथा न करहिं रति , तिन्हके हिय पाषान ।।

     मुक्तिकोपनिषद् में जिन चार प्रकार की मुक्तियों का वर्णन हुआ , उन मुक्तियों से विदेह मुक्ति नहीं होती है । ये चार प्रकार की मुक्तियाँ शरीर छूटने पर मिलती है ; किंतु ब्रह्मनिर्वाण या जीवन - मुक्त ऐसा नहीं । जीवन - काल में जीवन मुक्त होता है और शरीर छूटने पर विदेहमुक्त होता है । कुम्भकर्ण के मरने पर उनके मुँह से एक तेज निकला । वह तेज श्रीराम के मुँह में प्रवेश किया । रामचरितमानस में लिखा है तासुतेजप्रभुबदन समाना । सुर मुनि सबहिं अचम्भव माना ।। 

     चार प्रकार की मुक्तियों में ऐसा होता है , उसमें स्थूल आवरण से छूट जाता है । भीष्म अष्ट वसुओं में से थे । मरने पर उसकी सायुज्यता वसु में हो गई । युधिष्ठिर की सायुज्यता धर्मराज में और श्रीकृष्ण की सायुज्यता सनातन नारायण में हुई । विदेह - मुक्ति वह है , जिसमें कोई शरीर नहीं रहता । देश - काल के घेरे में जो नहीं रहता , वह ब्रह्मनिर्वाण है । गुरु नानकदेवजी ने कहा है जल तरंग जिउ जलहि समाइआ । तिउ जोती संगि जोति मिलाइआ ।। कहु नानक भ्रम कटे किवाड़ा , बहुरिन होइजैजउला जीउ

      जल तरंग की तरह जीव ब्रह्म लीन हो जाता है । जिस मुक्ति के लिए संतलोग कहते हैं , वह ब्रह्मनिर्वाण है । वह ऐसा सायुज्य है जहाँ कोई शरीर नहीं । किसी शरीर में नहीं समाया , निर्गुण निराकार में या उससे भी परे जाकर समाया । इसी मुक्ति के लिए भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को उपदेश दिया ।

      इसके लिए अध्यात्म - विद्या की शिक्षा , साधु संग , वासना - परित्याग और प्राणस्पंदन - निरोध करने के लिए भगवान श्रीराम ने बतलाया । प्राणायाम के द्वारा प्राण - निरोध होता है । वासना - परित्याग या प्राणायाम करने से प्राणस्पन्दन - निरोध होता है । 

     उपर्युक्त चारों कामों को करो । ध्यान अभ्यास से प्राण - स्पन्दन - निरोध और वासना - परित्याग होता है । साधु - संग से अध्यात्म - विद्या की शिक्षा मिलती है । इन चारों में दो बातों की मुख्यता हुई - साधु संग और ध्यान । जब अहंकार वृत्ति ब्रह्माकार होकर रहे , तब सम्प्रज्ञात समाधि है । जाग्रत और स्वप्न में अहंकारवृत्ति रहती है । गहरी नींद में मैं हूँ या नहीं हूँ , कुछ भी नहीं रहता , अचेतपन रहता है । अहंकारवृत्ति में पृथक्त्व रहता है । अहंकारवृत्ति ब्रह्माकार होकर रहने से ' सोऽहमस्मि इति वृत्ति अखण्डा ' होती है । जब यह वृत्ति भी नहीं रहती , तब असम्प्रज्ञात समाधि होती है । अहं ब्रह्मास्मि में द्वैत रहता है । ब्रह्मनिर्वाण में अहं ब्रह्मास्मि कहनेवाला कोई नहीं रहता । वह वही रूप होकर रहता है । रामचरितमानस में ' एहि तन कर फल विषय न भाई ' कहा गया है । यह चौपाई भी ब्रह्मनिर्वाण की ओर संकेत करती है । इसी ब्रह्मनिर्वाण के लिए भजन है और सदाचार का पालन है । ब्रह्मनिर्वाण का अर्थ है - ब्रह्म प्राप्ति संबंधी मोक्ष । साधक को उस ओर चलने से उसका जीवन पवित्र होता है । पवित्र जीवन से संसार में मर्यादा भी होती है । इसके द्वारा दूसरे को भी लाभ पहुँचता है ।०


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 83 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


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सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S82, Muktikopanishad mein Mukti aur usake bhed ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 01-05-1954ई. S82, Muktikopanishad mein Mukti aur usake bhed ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 01-05-1954ई. Reviewed by सत्संग ध्यान on 10/25/2020 Rating: 5

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