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S81, Rahasyamee Akoot Khajaane ka Raaj ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 24-04-1954ई.

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 81

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर  के बारे में। इसमें बताया गया है कि  ध्वन्यात्मक नाम का भजन, हमारे शरीर रूपी गुफा में अकूत खजाने के रूप में है। जिससे ज्ञान, बुद्धि, बल, विवेक आदि  के सहित परम प्रभु परमात्मा की प्राप्ति होती है। 

इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि-  संसार कैसा है? संसार की स्थिति और स्वभाव कैसा है? शब्द कैसा होता है? ईश्वर का नाम कैसा है? आदि शब्द अखंड क्यों है? आदि शब्द से क्या-क्या होता है? शब्द कितने प्रकार का होता है? अखण्ड साहिब का नाम किसे कहते हैं? ध्वन्यात्मक नाम भजन कैसे होता है? पवित्र गंगा की धारा कहां है? आंतरिक भंडार क्या है? उससे क्या-क्या निकलता है? सत्संग करने से क्या होता है? सत्संग किस समय करना चाहिए?  इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- शरीर रूपी गुफा में अद्भुत खजाना, गुप्त खजाना, भारत के लुप्त खजाने, खजाने का नक्शा, मानवों का खजाना, खजाना खजाना, खजाना कहां है, खेत का खजाना, खजाने का रहस्य, खजाना पिक्चर, मटका खजाना, खजाने की खोज कहानी, खजाना मिला, शब्द भंडार, भंडार का अर्थ, गुप्त खजाना,खजाना रखने का घर का पर्यायवाची,रहस्यमई अकूत खजाने का राज  इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।  

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 80 को पढ़ने के लिए   यहां दवाएं।

ऋषि-मुनियों के गुप्त खजाने की चर्चा करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज
ऋषियों के गुप्त खजाने की चर्चा करते गुरुदेव

Secret of the mysterious treasures. रहस्यमई अकूत खजाने का राज

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! इस समय आपलोगों के सामने ईश्वर की भक्ति पर कहना है । ईश्वर - स्वरूप का जब निर्णय हो जाता है , तब समझ में आने लगता है कि ईश्वर की भक्ति कैसे हो ?.....   इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----How is the world  What is the state and nature of the world?  What is the word like  How is God's name?  Why is the word Adi unbroken?  What happens with the word Adi?  What type of word is there?  Who is the name of Akhand Sahib?  How is a phonetic name a hymn?  Where is the holy Ganges stream?  What is internal storage?  What does that bring out?  What happens with satsang?  At what time should one perform satsang?.....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-

८१. बिना शब्द के सृष्टि नहीं हो सकती 

रहस्यमई गुप्त खजाने पर चर्चा करते महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! 

     संसार परिवर्तनशील और नाशवान है । जहाँ लोग बसते थे , वहाँ आज गंगाजल का प्रवाह होता है और जहाँ गंगाजल का प्रवाह था , वहाँ लोग बसते हैं । यहाँ पहले क्षत्रिय का राज्य था । हजार वर्ष तक वह रहा । भगवान श्रीराम जिस वंश में हुए , वह वंश भी रहने नहीं पाया । मुसलमान लोग आए , उन्होंने राज्य किया । फिर उनलोगों का राज्य चला गया । अंग्रेज आए , उन लोगों का भी राज्य चला गया । अपने शरीर को सोचो । बच्चा , जवान और बूढ़ा होकर फिर लापता हो जाता है अपने शरीर में भी अनेक टुकड़ों के मिलने से एक होता है । यह संसार भी कण - कण से बना हुआ है । इसलिए खण्डणीय है । संसार में कोई पदार्थ नहीं जो अखण्ड हो ।

      हमलोग शब्द सुनते हैं । इसका भी खण्ड होता है । प्रत्येक अक्षर पर खण्ड होता है । शब्दों में भी जिसको एकाक्षर ब्रह्म कहते हैं , उसका भी पसार करने से - अ , उ , म् हो जाते हैं । बाजे - गाजे के जितने शब्द हैं , सबके खण्ड होते हैं । संसार का कोई पदार्थ अखण्ड नहीं । संतलोग कहते हैं - ईश्वर का नाम अखंड है , किंतु जिस शब्द का उच्चारण हम मुँह से करते हैं , जो परमात्मवाची है , वह भी अखण्ड नाम नहीं है । संत कबीर साहब ने कहा ' अखण्ड साहिब का नाम और सब खण्ड है । ' तथा आदि नाम पारस अहै , मन है मैला लोह । परसत ही कंचन भया , छूटा बंधन मोह ॥ 

     यह अखण्ड नाम है - आदिशब्द , जिससे सृष्टि हुई । बिना शब्द के सृष्टि नहीं हो सकती । शब्द हुआ , कम्पन हुआ । आदि सृष्टि में आदि कम्प हुआ । वह शब्द ईश्वर से लगा हुआ है । उस शब्द को जो पकड़ेगा , वह खींचकर ईश्वर तक चला जाएगा । वह शब्द अक्षरों में लिखा नहीं जा सकता , मुँह से बोला नहीं जा सकता । अघोषम् अव्यंजनम् अस्वरंच अतालुकण्ठोष्ठमनासिकंच । अरेफ जातं उभयोष्ठ वर्जितं यदक्षरं न क्षरते कदाचित् ॥ 

      उसको चेतन आत्मा जानती है । उस शब्द को जो पकड़ता है , तो वह उसी तरह हो जाता है , जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सोना हो जाता है , इस शब्द को पकड़ने से बंधनमुक्त हो जाता है । यह अखण्डनीय है । श्रीमद्भागवत पढ़ो , उसमें लिखा है - शब्द तीन प्रकार के होते हैं - प्राणमय , मनोमय और इन्द्रियमयशब्दब्रह्म सुदुर्बोधं प्राणेन्द्रिय मनोमयम् । अनन्त पारंगम्भीरंदुर्विगाह्यं समुद्रवत् ॥ 

     प्राणमय शब्द चेतनधारा को कहते हैं । ईश्वर का नाम प्राणमय शब्द है । उसको जपने की जरूरत नहीं , ध्यान में जाना जाता है , उसको पकड़ो । उसको क्या पकड़ोगे , वही तुमको पकड़ लेगा । वही अखण्ड साहिब का नाम है । संतों के ग्रंथों को पढ़ो । बराबर सत्संग करते रहो , तो इसको अनपढ़ लोग भी जान सकते हो । 

     सन् १९२२ ई० में छपरा में मैं एक महीने ठहरा हुआ था , वहाँ एक सत्संगी था । वह पढ़ा लिखा नहीं था , किंतु सत्संग सुना था । शब्द के बारे में चर्चा होने पर उसने कहा - एक शब्द और होता है , जिसको श्रुतात्मक शब्द कहते हैं । उस सत्संगी का नाम था - तहबल दास । जाति का वह मेहतर था , लेकिन सत्संग के प्रभाव से वह इस बात को जानता था । आपलोग भी सत्संग कीजिए । आपलोग भी बहुत बात समझिएगा । 

     नाम - भजन की बड़ी महिमा है । यह नाम - भजन ध्वन्यात्मक शब्द का होता है । ध्यान में डूबनेवाला ही उस ध्वन्यात्मक नाम को पकड़ सकता है । इसके लिए संत कबीर साहब ने बताया कि चंचल मन थिर राखु जबै भल रंग है । तेरे निकट उलटि भरि पीव सो अमृत गंग है ।

     अपने को उस अमृत को पाने के लिए उलटाओ अर्थात् बहिर्मुख से अंतर्मुख करो । बहती हुई पवित्र धारा को गंगा कहते हैं । आपके अंदर बहती हुई चेतन - धारा पवित्र गंगा है । अपने अंदर जो उलटेगा , वही इस गंगा को पावेगा और उस शब्द को भी पावेगा । यह जानकर भजन कीजिए । अपने अंदर में खोजिए । आपके अंदर ऐसा भण्डार है , कितना भी खर्च कीजिए , कमने को नहीं है । 

     इस शरीर रूपी गुफा के अंदर परमात्मा रहते हैं । इस शरीर में बुद्धि है । आजकल के वैज्ञानिकों ने भी माना है कि बुद्धि से क्या - क्या चीजें निकलती रहती हैं । कितनी चीजें , कितनी बातें और निकलेंगी , ठिकाना नहीं । पता लगाइए कि विज्ञान का छोर किधर है ? अपने अंदर है । भगवान श्रीराम का राज्य किधर है , आपके अंदर है । उस रामप्रताप - रूपी सूर्य के दर्शन से अज्ञानता जाती रहती है । काम , क्रोधादिक विकार दमित होते हैं । संतोष , विराग , विवेक आदि बढ़ जाते हैं । 

     संत लोग कहते हैं - परमात्मा पर विश्वास करो । उस परमात्मा को पाने का यत्न अपने अंदर करो । गुरु के बताए अनुकूल यत्न करने के लिए सत्संग प्रेरण करता है । इसलिए सत्संग करो । बिना सत्संग के लोग मार्ग से गिर जाते हैं । आपलोग नित्य प्रति प्रात : सायंकालीन सत्संग कीजिए नित्य सद्ग्रंथों का पाठ कीजिए । जो समझ में नहीं आवे , वह बात अपने से विशेष जानकार से समझ लीजिए । कभी - कभी मेरे पास आकर भी समझिए । एक आदमी सब आदमी के पास नहीं जा सकता , लेकिन सब आदमी एक आदमी के पास जा सकते हैं ।

     इन बातों को समझाने के लिए मासिक पत्र ' शान्ति सदेश ' महीने - महीने निकलता है , उसको पढ़िये । इससे मेरा विचार आपलोगों को मालूम होता रहेगा । रविवार को दिन में सत्संग किया कीजिए । जो सत्संग नहीं करते हैं , उनका ख्याल पाप में गिर जाता है । सत्संग करते रहने से , पाप - कर्म करने से मन रुकता है । कटिहार शहर के सत्संग मंदिर में दिन को , सुबह में और शाम में भी सत्संग होता है । आपलोग भी नित्य सत्संग किया कीजिए । सत्संग नहीं करने से वह समय फजूल-फजूल बातों में लग जाता है । इसलिए नित्य प्रातः और सायंकाल सत्संग कीजिए । रविवार को दिन के अपराह्नकाल में भी सत्संग कीजिए ।० 


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 82 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि ध्वन्यात्मक नाम का भजन, हमारे शरीर रूपी गुफा में अकूत खजाने के रूप में है। जिससे ज्ञान, बुद्धि, बल, विवेक आदि  के सहित परम प्रभु परमात्मा की प्राप्ति होती है। Dhvanyaatmak naam ka bhajan, hamaare shareer roopee gupha mein akoot khajaane ke roop mein hai. jisase gyaan, buddhi, bal, vivek aadi  ke sahit param prabhu paramaatma kee praapti hotee hai.  इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S81, Rahasyamee Akoot Khajaane ka Raaj ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 24-04-1954ई. S81, Rahasyamee Akoot Khajaane ka Raaj ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 24-04-1954ई. Reviewed by सत्संग ध्यान on 10/25/2020 Rating: 5

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