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S83, Vairaagy Bhaavana Prabal kaise hotee hai ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 06-05-1954ई.

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 83

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ८३ के बारे में। इसमें बताया गया है कि  भगवान बुध की विरक्ति और साधनाएं? बलख बुखारे का बादशाह और संत कबीर साहब की मौत और विरक्ति की कथा,आसक्ति से विरक्ति कैसे होती है?

इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि-  बैराग की भावना प्रबल कब होती है? बलख बुखारे का बादशाह कैसा था? लोग संन्यासी - फकीर क्यों बनते हैं? 
बालक बुखारे और फकीरों के कैद की कथा, मौत को सही-सही कौन जानता है? संसार से विरक्ति कैसे होती है? मनुष्य का शरीर कैसा है? भगवान बुद्ध ने कितने जन्मों में सिद्धि प्राप्त की? संसार में कैसा दुख है? उपनिषद् का ज्ञान क्या है? उपनिषद् क्या कहती है? भगवान बुद्ध ने कैसे तपस्या की थी? गुरु युक्ति से क्या लाभ होता है? अनेक उपासनाओं का उद्देश्य क्या है? परमात्मा को लोग क्या-क्या कहते हैं? आत्मा से लोग क्या समझते हैं? संप्रदाय विशेष का प्रचार कैसे होता है? शिव का अर्थ क्या है?    इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- संसार से विरक्ति कैसे होती है, विरक्ति का अर्थ क्या होता है, विरक्त का पर्यायवाची, विरक्त meaning in हिंदी, विरक्त का विलोम, सुभक्त का अर्थ, विरक्ति का अर्थ, वैराग्य कैसे प्राप्त हो, वैराग्य की परिभाषा, अभ्यास और वैराग्य क्या है, वैराग्य के प्रकार, वैरागी कैसे बने, वैराग्य विचार, वैराग्य का अर्थ in Hindi, विरक्ति क्या है ये कैसे प्राप्त होती, वैराग्य क्या है और कैसे हो,आसक्ति से विरक्ति की ओर,वैराग्य क्या है? विरक्त होकर ही छूट सकते हैं संसार से,वे 4 घटनाएं जिनसे बदल गया गौतम,Here is the quietness,  इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 82 को पढ़ने के लिए   यहां दवाएं।


बैरागी कैसे होते हैं? इसे बतलाते हुए सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज
बैरागी होने के कारण को बतलाते हुए गुरुदेव

How does quiet feeling prevail? वैराग्य भावना प्रबल कैसे होती है?

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! इस समय आपलोगों के सामने ईश्वर की भक्ति पर कहना है । ईश्वर - स्वरूप का जब निर्णय हो जाता है , तब समझ में आने लगता है कि ईश्वर की भक्ति कैसे हो ?.....   इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----When does the spirit of Bairaga prevail?  How was the emperor of Balakh Bukhara?  Why do people become monks - fakirs? Who knows the story of captivity of boy bukhara and fakirs, death?  How does the world get disinterested? How is human body?  How many births did Lord Buddha achieve?  What is the misery in the world?  What is the knowledge of the Upanishads?  What does the Upanishads say?  How did Lord Buddha do penance?  What are the benefits of Guru Yaksha?  What is the purpose of many worships?  What do people call the divine?  What do people understand by spirit?  How is a particular sect promoted?  What is the meaning of Shiva?.....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-

८३. मौत को कौन नहीं जानता है ? 


बैरागी की प्रबल भावना कैसे होती है? इस पर प्रवचन करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

धर्मानुरागी प्यारे महाशयो ! 

     यह बात कहने की आवश्यकता नहीं कि बुढ़ापा आता है , मृत्यु होती है । लोग बराबर इसको देखते ही हैं , फिर भी स्मरण के लिए संतलोग कहते हैं । जिस समय मृतक को उठाकर कोई श्मशान ले जाता है , उस समय का ज्ञान और उसके बाद का ज्ञान कैसा होता है ? पहलेवाला ज्ञान पीछे भूल - सा जाता है । जब वह कंधे पर मृतक को जलाने के लिए चलता है , तब उसके मन में विराग रहता है कि मेरी भी एक दिन यही हालत होगी ।

      बलख बुखारे का बादशाह बहुत विलासी था , परंतु सत्य का अन्वेषण करता रहता था । वह यह नहीं समझता था कि साधु लोग संसार से विमुख क्यों होते हैं , लोग संन्यासी - फकीर क्यों बनते हैं ? जो साधु उसके दरबार के सामने जाता , उससे वह पूछता कि तुम फकीर क्यों हुए ? जो साधु ठीक ठीक नहीं समझा सकता था , उसको कैद कर लेता था । उस देश के बहुत फकीर कैद हो गए । भारत के भी बहुत फकीर वहाँ जा - जाकर कैद हुए । यह खबर रामानंद स्वामी के पास पहुँची । उन्होंने अपनी शिष्य - मण्डली से कहा कि कोई वहाँ जाकर राजा को समझा सकता है और फकीरों को छुड़ा सकता है ? कबीर साहब ने इसका बीड़ा उठाया और वहाँ जाकर बोले - ' मैंने भी घर छोड़ दिया है , मुझे कुछ खिलाओ । ' बादशाह ने उनसे पूछा कि तुम संन्यासी फकीर क्यों हुए ? उन्होंने कहा कि यदि मैं अपने फकीर होने का कारण कहूँ तो तुम भी फकीर हो जाओगे । बादशाह ने कहा - ' कहो । ' संत कबीर साहब ने कहा - ' मैंने मौत को पहचाना है । ' बादशाह के वजीरेआजम ने कहा - ' मौत को कौन नहीं जानता है ? सबलोग जानते ही हैं कि एक दिन मरेंगे ही , फिर भय कैसा ? ' बादशाह ने आदेश दिया - ' यह फकीर बात बनाता है । इसको भी कैद कर लो । ' कबीर साहब को जेल ले जाया जाने लगा तो उन्होंने बादशाह के कान में कहा - ' यदि आप ठीक ही मौत को जानना चाहते हैं तो आज यह आदेश पारित करवा दीजिए कि आज से सातवें दिन वजीरेआजम को फांसी की सजा होगी । फाँसी होगी नहीं । ' बादशाह ने आदेश पारित कर दिया । अब वजीरेआजम को काटो तो खून नहीं । अब तो मृत्यु उनके सामने नृत्य करने लगी । उनको मौत ही मौत सूझने लगी । न खाना अच्छा लगता था और न कुछ । सातवें रोज फाँसी का सब साज सामान इकट्ठा किया गया और वजीर साहब को फाँसी के लिए तैयार कर खड़ा कर दिया गया । कबीर साहब को भी बुला लिया गया । कबीर साहब पूछते हैं - ' वजीर साहब ! आप अपनी घोड़ी पर सैर कर आइए । ' वजीर ने कहा - ' मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता । ' तब कबीर साहब ने कहा ' अच्छा , अब तो आपकी मृत्यु होगी ही । मृत्यु के पहले अपनी प्यारी बच्ची को थोड़ा प्यार से खिला लें । वजीर ने कहा - ' मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है । ' कबीर साहब ने पूछा- क्या अच्छा लगता है ? ' वजीर ने कहा - ' मुझे तो बस मौत - ही मौत दिखायी देती है और कुछ नहीं । ' कबीर साहब ने कहा - ' मौत को तो आप आज से सात रोज पहले भी , जब मैं दरबार में यहाँ आया था , देख रहे थे , फिर आज क्या हुआ ? आप उस दिन तो इतने दु : खी और उदास नहीं थे ? ' वजीर ने कहा ' उस दिन तो केवल सुनी - सुनाई बात ही कही थी । वास्तव में मौत को आज मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूँ । ' 

     जो मौत को इस तरह देखता है कि अब कुछ ही क्षण में मैं मर जाऊँगा , तो उसका मन संसार से विरक्त हो जाता है । मौत को जानने से सभी विलास छूट जाते हैं । मौत को ठीक - ठीक जानने से संसार छोड़ सकते हो । साधु - संत लोग कहते हैं तो कुछ - कुछ ख्याल आता है और जब किसी मृतक को जलाने जाते हैं , तब ख्याल आता है जन्म होने पर और उससे बढ़ते जाने पर मालूम होता है कि अच्छा होता है , किंतु उसकी आयु क्षीण होती जाती है । रोग सताने पर भी शरीर क्षीण होता है बुढ़ापा होने पर भी शरीर क्षीण होता है और अंत में ' रामनाम सत्त ' हो जाता है

      ५५० जन्मों में भगवान बुद्ध ने सिद्धि प्राप्त की । साधना के जन्म ५५० हुए । ५५० जन्म तक साधन - भजन किया और दृढ़ता से कहा कि अब शरीर का कर्ता इस शरीर को बना नहीं सकता अर्थात् मैं इस संसार में फिर नहीं आऊँगा और जो संसार में आने से दुःख होता है , वह नहीं भोगूंगा । संसार में दुःख - ही - दुःख है । जनमने से पहले माता के गर्भ में उलटे लटके हुए रहते हो , जन्मभर कष्ट होता है । मरने पर स्वर्ग - नरकादि जाते हो । कोई भी केवल नरक या कोई स्वर्ग ही नहीं जाता । सबसे कुछ - न - कुछ पाप - पुण्य होता है , जैसे युधिष्ठिर को थोड़े पाप के कारण नरक देखना पड़ा । उपनिषद् कहती है कि मरने के समय जो - जो भावना करोगे , वही - वही होगा । इसलिए ऐसा यत्न करो कि फिर जन्म लेना न पड़े ।

     भगवान बुद्ध ने अपना रास्ता आप निकाला । उनको बहुत कष्ट हुए । छह वर्षों तक इतना तप किया कि एक आसन से उठे ही नहीं , किंतु उनके ही शिष्यों ने उनके समय में उनकी सहायता से उतना कष्ट भोगे बिना ही सिद्धि प्राप्त की । सारिपुत्र और मोदगल्यायन बुद्ध के बड़े साहसी और बड़े भजनीक भक्त थे । उपालि नाइक भगवान बुद्ध के यहाँ गए , उनसे शिक्षा दीक्षा ली और वे बहुत बड़े महात्मा हुए । आनंद , महाकश्यप आदि बहुत बड़े - बड़े महात्मा हुए । उनको रास्ता खोजना नहीं पड़ाउनके गुरु रास्ता बतलानेवाले हुएसंतों के ग्रंथों में उस रास्ते का भेद बतलाया गया , किंतु उसे बिना गुरु के जान नहीं सकते । हमलोगों के समय में हमलोगों को अवश्य ही अच्छे गुरु मिले , जिस कारण भगवान बुद्ध , गुरु नानक , कबीर साहब आदि किन्हीं संत की वाणी को पढ़ते हैं तो वही ज्ञान मालूम होता है ।

      सबकी लाठी एक - सी नहीं होती । लाठी सहारा होती है । टेढ़ी - सीधी सभी लाठियाँ सहारे हैं । इसी तरह से जो लोग उपासनाओं के लिए कहते हैं कि उनकी उपासना वह है और उनकी वह है, तो ये सब सहारे हैं । सबसे एक ही काम होता है । शैव , शाक्त , वैष्णव आदि अनेक उपासक होते हुए भी काम एक ही होता हैइस तरह यदि समझ जाओ तो स्पष्ट होगा कि अनेक उपासनाएँ लिए जो अनेक सम्प्रदाय हैं , उनमें एक ही काम होता है । जानने के बाद भेद भाव नहीं रहता , परंतु यह क्यों जानना चाहिए ? इसलिए कि इस संसार में आने - जाने से छूट जाएँ ।

      जिस केन्द्र पर पहुँचने पर संसार से छूटना होता है , वह केन्द्र परमात्मा है । उसके अनेक नाम हैं- कोई ईश्वर , कोई अल्लाह , कोई गॉड कहते हैं । कोई कहते हैं कि वह केन्द्र आत्मतत्त्व है । आत्मतत्त्व कहो , परमात्मा कहो - एक ही बात है । जैसे आकाश कहने से मठाकाश और महदाकाश - दोनों का ज्ञान होता है , वैसे ही ' आत्मा ' कहने से जीवात्मा और परमात्मा- दोनों का ज्ञान होता है । 

     हाँ , यह अवश्य है कि हमारे यहाँ कितने ही वाद हैं - अद्वैत , द्वैत , त्रैत आदि ; किंतु सबका केन्द्र परमात्मा है । असीम अनंत तत्त्व जो महान है , वह दो नहीं हो सकता । एक ही एक है । दो कहने से दोनों जहाँ मिलेंगे , वहाँ सीमा हो जाएगी । इसलिए अनादि अनंत तत्त्व एक ही होगा । जिस समय जिस वाद के प्रवर्तक और उसके माननेवाले विशेषरूप से होते हैं , उस वाद का प्रचार उस समय विशेष रूप से होता है । कभी अद्वैतवाद का डंका बजता है , तो कभी द्वैत का । शंकराचार्य ने अद्वैत का डंका बजाया । 
     एक परमात्मा है । एकान्त होकर अपने अंदर प्रवेश करो । इसमें शिव - शक्ति का दर्शन कर सकते हो । इसका यत्न सत्संग से , सद्गुरु से प्राप्त करो । दर्शन करके कृतकृत्य हो जाओगे । इसी का यत्न सभी संत बताते हैं , इसका यत्न जानो और कोशिश करके अपने अंदर की शिव - शक्ति का दर्शन करो । सब दुःखों से छूट जाओगे । ' शिव ' का अर्थ ही कल्याण है । तुम करोगे , तुम्हारा कल्याण होगा और जो सब कोई करेंगे , उन सबका कल्याण होगा । इसलिए तो सबको इसका अभ्यास करना चाहिए ।०


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 84 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि How does quiet feeling prevail?  Disobedience and practices of Lord Mercury?  Balakh Bukhare's emperor and sage Kabir saheb's death and the story of detachment, how is attachment detached? इत्यादि बातें।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S83, Vairaagy Bhaavana Prabal kaise hotee hai ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 06-05-1954ई. S83, Vairaagy Bhaavana Prabal kaise hotee hai ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 06-05-1954ई. Reviewed by सत्संग ध्यान on 10/26/2020 Rating: 5

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