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S108, काम करते हुए भी भजन करो ।। Samay ke Sadupayog se Laabh ।। दि.18-03-1955ई.

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / १०८

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 108 के बारे में। इसमें बताया गया है कि  अनंत जीवन में दुःखी न होओ , इसके लिए ईश्वर का नाम - भजन करो । आजकल करते हुए समय बर्बाद मत करो । बल्कि- "काल करै सो आज कर , आज करै से अब्च । पल में परलै होयगा , बहुरि करैगा कब्ब ॥" भर दिन , भर रात बैठकर भजन नहीं करने कहा जाता । समय बांध - बांधकर भजन करो । काम करते हुए भी भजन करो और काम छोड़- छोड़कर भी भजन करो ।

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समय के सदुपयोग पर चर्चा करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज और उनके भक्तगण
इहलोक और परलोक में सुख से रहने के उपाय पर चर्चा 

समय के सदुपयोग से लाभ ।। Benefit from good use of time

 इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि-  हमारा शरीर कैसे बना है? इस शरीर में कितने दिनों तक रह सकते हैं? जीवात्मा कब तक जीवित रहता हैं? मरने पर कौन शरीर छूटता है? मृत्यु होने पर जीवात्मा के साथ और कौन-कौन शरीर रह जाता है? स्वर्ग आदि परलोक में जीव किन शरीरों के साथ रहता है? जन्मने-मरने का चक्र कब तक लगा रहेगा? खेती व्यापार आदि क्यों करते हैं? मरने के बाद क्या होगा? मरने के बाद का जो जीवन है उसके लिए क्या करना चाहिए? किस बात से डरना चाहिए ? डरना क्यों जरूरी है? समय का सदुपयोग कैसे करें? सुमिरन भजन कब-कब करना चाहिए? नाम भजन क्या है? वर्णनात्मक और धनात्मक नाम भजन में क्या अंतर है? सदाचार पालन करने से क्या फायदा है? नशा कितने प्रकार का होता है? मांस-मछली क्यों नहीं खाना चाहिए? सच किस तरह से बोलना चाहिए? अपवित्र कौन होता है? इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- क्या सदाचार से ही सम्मान मिलता है? सदाचार से क्या आशय है? सदाचार का विकास कैसे होता है? सदाचारी व्यक्ति में कौन कौन से गुण होते हैं? सदाचार के नियम, सदाचार के लाभ, सदाचार का महत्व पर निबंध, सदाचार की बातें, सदाचार क्या है, सदाचार से क्या आशय है, सदाचार का महत्व पर 10 पंक्तियां, सदाचार के गुण, सदाचार के 10 नियम, सदाचार किसे कहते हैं, सदाचार का अर्थ, समय का सदुपयोग करने से क्या होता है? बेकार समय का सदुपयोग कैसे करना चाहिए? महापुरुषों ने समय का सदुपयोग कैसे किया? आप अपने समय का सदुपयोग कैसे करते हैं अपने शब्दों में लिखे? समय का सदुपयोग कैसे करना चाहिए Class 10, समय का सदुपयोग कैसे करें निबंध, खाली समय का सदुपयोग कैसे करे, समय का सदुपयोग कैसे करना चाहिए? महर्षि मेंहीं, समय का उपयोग, समय का सही उपयोग कैसे करें, समय का उपसंहार, समय का सदुपयोग उपसंहार, समय का उपयोग किस प्रकार करना चाहिए, समय का सदुपयोग से लाभ, समय का सदुपयोग 100 words, समय के लाभ, इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।

           १०८. काम करते हुए भी भजन करो

समय का सदुपयोग कैसे करें को समझाते हुए सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज और भक्त गण

बंदौं गुरु पद कंज, कृपा  सिंधु  नर  रूप  हरि । 
महा मोह तम पुंज, जासु बचन रबि कर निकर।

प्यारे लोगो !  

      शरीर में जीवात्मा का निवास है , इसीलिए शरीर जीवित मालूम होता है । शरीर जड़ है अर्थात् ज्ञानहीन पदार्थ है और जीवात्मा - चेतन अर्थात् ज्ञानमय पदार्थ है । दोनों का संग ऐसा है कि साधारणतः इसको कोई भिन्न नहीं कर सकता

     शरीर में रहनेे  का जीवन थोड़ा है और शरीर छोड़ने के बाद का जीवन अनंत है । क्योकि जीवात्मा अविनाशी है । अनंत जीवन बहुत जीवन है । एक शरीर का जीवन बहुत कम है । अवश्य ही वर्तमान शरीर के बाद के जीवन में स्थूल शरीर अनेक हो सकते हैं - शरीर बहुत हो सकते हैं । उन जन्म - मरणशील जीवन को जोड़ो तो बहुत हैं । इस शरीर से छूटने पर केवल जीवात्मा नहीं रहता । वह तीन जड़ शरीरों के अंदर रहता है । बारम्बार जनमने - मरने में केवल स्थूल शरीर छूटता है और तीन शरीर रह जाते हैं । इन तीनों शरीरों में रहने का जीवन बहुत है । इन्हीं शरीरों में रहते हुए स्वर्गादि परलोक का भोग होता है । वहाँ के भोग के समाप्त होने पर फिर कर्मानुसार किसी के यहाँ जन्म लेता है । लेकिन यह चक्र कबतक चलता रहेगा , कोई ठिकाना नहीं । इतना ठिकाना है कि जबतक शरीर और संसार से छुटकारा नहीं हो जाय - मुक्ति नहीं प्राप्त कर ले , तबतक लगा रहेगा । सबसे उत्तम जीवन यही है कि किसी शरीर में नहीं रहना ।  

     किसी शरीर में रहना , पुण्य के अनुकूल स्वर्गादि में रहो फिर वहाँ से नीचे गिरो , यह जीवन कोई अच्छा जीवन नहीं है । हमलोग वर्तमान शरीर में हैं , इसमें कितने दिन रहेंगे , ठिकाना नहींउस अनंत जीवन के समक्ष यह जीवन अत्यन्त स्वल्प है । लोग दुःख में एक सेकेण्ड के लिए लिए रहना नहीं चाहते । सुख की ओर दौड़ता हुआ , दुःख से भागता हुआ यह जीव चलता है । किंतु जो सुख यह चाहता है , वह कहीं नहीं मिलता । साधु - सन्त लोग कहते हैं कि थोड़े - से जीवन के लिए तुम दौडे-दौड़े फिरते हो और डरते हो कि आज यह काम नहीं किया जाएगा तो यह हानि होगी । डर के मारे ठीक - ठीक नौकरी , वाणिज्य व्यापार , खेती आदि करते रहते हो । ऐसा नहीं करो तो कोई हर्ज नहीं । बहुत धनी आदमी भी धन को सम्हालने और बढ़ाने में रहता है । धन के सम्हालने और बढ़ाने में भी कष्ट होता है । गरीब आदमी देखता है कि आज खाने के लिए हैै, कल के लिए यत््न नहीं करो तो क्या खाओगे ? उससे विशेष जो कृषक हैं , सोचते हैं कि इस साल के लिए खाने को है , आगे वर्ष क्या खाएँगे , इस डर के मारे खेती करते हैं । तो एक शरीर के जीवन के लिए डरते हो और काम करते हो । और इसके लिए नहीं डरते कि इस शरीर के जीवन के बाद का जो जीवन है उससे क्या होगा ? चाहिए कि ऐसा काम करो कि शरीर छोड़ने के बाद भी तुम सुखी रहो । इसके लिए क्या करना होगा ?

      ईश्वर का नाम जपो । इसी को कबीर साहब ने कहा है-

" निधड़क बैठा नाम बिनु , चेति न कर पुकार । यह तन जल का बुदबुदा , बिनसत नाहीं बार ।।"

 यदि समझ लो, तो फिर आज कल के लिए बहाना नहीं करो कि आज नहीं कल करूँगा । क्योंकि गुरु नानकदेवजी ने कहा है-
" नहँ बालक नहँ यौवने , नहिं बिरधी कछु बंध । वह औसर नहिं जानिये , जब आय पड़े जम फंद ।"

     अनंत जीवन में दुःखी न होओ , इसके लिए ईश्वर का नाम - भजन करो । आजकल करते हुए समय बर्बाद मत करो । बल्कि- 

"काल करै सो आज कर , आज करै से अब्च । पल में परलै होयगा , बहुरि करैगा कब्ब ॥"

 भर दिन , भर रात बैठकर भजन नहीं करने कहा जाता । समय बांध - बांधकर भजन करो काम करते हुए भी भजन करो और काम छोड़- छोड़कर भी भजन करो । ब्राह्ममुहूर्त में मुँह हाथ धोकर , निरालस होकर भजन करो । दिन में स्नान के बाद भजन किया करो । ' तन काम में मन राम में' हमारे यहाँ प्रसिद्ध है । इसको काम में लाओ । फिर सायंकाल भी बैठकर भजन करो । रात में सोते समय भजन करते हुए सोओ , तो खराब स्वप्न नहीं होगा । नाम - भजन को लोग जानते हैं कि गुरु ने जो मंत्र दिया है , वही नाम - भजन है । वह नाम - भजन है किंतु और भी नाम - भजन है । जो शब्द लोग बोल सकते हैं , सुन सकते हैं , वह वर्णात्मक नाम - भजन है । ध्वन्यात्मक नाम - भजन भी होता है । वह ध्वनि तुम्हारे अंदर है । उस ब्रह्म ध्वनि में जो अपने मन को लगाता है , तो वह शब्द से खींचकर ब्रह्म तक पहुँचा देता है । नाम का जप और नाम का ध्यान भी होता है । वर्णात्मक नाम का जप होता है । जिसकी युक्ति गुरु बताते हैं और ध्वन्यात्मक नाम का ध्यान होता है । इसकी भी युक्ति गुरु बताते हैं । 

     इस साधन के लिए भला चरित्र से रहना होगा । जिसका चरित्र भला नहीं है , जो सदाचार का अवलम्ब नहीं लेता है , वह विषयों में भोगों में बँधा रहता है । जब वह भजन करने लगता है तो उसका मन गिर - गिर जाता है । इसलिए अपने को पवित्र आचरण में रखो ।

" जाकी जिभ्या बंध नहीं , हिरदे नाहीं साँच । ताके संग न चालिये , घाले बटिया काँच ॥"

    जिभ्या पर खाने और बोलने का बंधन रखो । झूठ और कड़वा बोलना खराब है । झूठ बोलना सब पापों की जड़ है । कड़वा बोलना आपस में फूट पैदा करता है । इसलिए सत्य बोलो और नम्र होकर रहो।

 साधू सोई सराहिये , साँची कहै बनाय । कै टूटै कै फिर जुरै , कहे बिन भरम न जाय ।।

जो साँच बोलते हैं और कड़वा बोलते हैं तो उसको भी लोग सहन नहीं कर सकते । जो भोजन तुम्हारी बुद्धि को नीचा करे , शरीर में रोग पैदा करे , वह मत खाओ । इसके लिए संतों कहा-

 मांस मछरिया खात है , सुरा पान से हेत । सो नर जड़ से जाहिंगे , ज्यों मूरी की खेत ॥ यह कूकर को खान है , मानुष देह क्यों खाय । मुख में आमिख मेलता , नरक पड़े सो जाय ।।

मांस , मछली तथा नशा आदि खाने - पीने से पाशविक वृत्ति रहती है । इसमें राजस - तामस वृत्ति रहती है । सात्त्विक वृत्ति से भजन होता है । इस प्रकार के भोजन से सात्त्विक बुद्धि दमन हो जाती है और राजस - तामस की प्रधानता हो जाती है । जिससे भजन में चंचलता और आलस आता रहता  है । जो भोजन शीघ्र नहीं पचे , वह भोजन भी मत करो । क्योंकि यह भी भजन नहीं होने देता । जितने नशे हैं , यहाँ तक कि तम्बाकू तक लेने योग्य नहीं । इसलिए कबीर
संत कबीर साहब अपनी वाणी कहते हुए
संत कबीर साहब
 साहब ने कहा-

 भाँग तम्बाकू छूतरा , अफयूँ और शराब । कह कबीर इनको तजै , तब पावै दीदार ।।

 तम्बाकू को लोग साधारण समझते हैं , किंतु यह भी बहुत बुरी नशा है । नशाओं से , कुभोजन से , कडुवी बात से और असत्य भाषण से बचो । इन्द्रियों में संयम रखो और भजन करो तो भजन बनेगा । केवल भाँग , तम्बाकू ही नशा नहीं है , बल्कि

 मद तो बहुतक भाँति का , ताहि न जाने कोय । तन मद मन मद जाति मद , माया मद सब लोय ॥ विया मद और गुनहु मद , राजमह उनमह । इतने मद को रह करै , तब पावै अनहद्द ।।

     इन सब नशाओं को भी छोड़ना चाहिए । यही संतों का उपदेश है । जो संतों के उपदेश के अनुकूल रहते हैं , वे पवित्र हैं । जो संतों के उपदेश के अनुकूल नहीं चलते , वे किसी कारण पवित्र क्यों न कहे जाएँ , किंतु अपवित्र हैं । यथार्थ में हृदय पवित्र होना चाहिए । शरीर पवित्रता के लिए क्या  बात है ? शिवजी के रूप को देखिए , अमंगल वेष रहने से अपवित्र नहीं है । हृदय की पवित्रता चाहिए । इसका अर्थ यह नहीं कि स्नान नहीं करे , पवित्रता से नहीं रहे , शारीरिक पवित्रता भी चाहिए । झूठ सब पापों का झोरा है । सत्य बोलनेवाले का झूठ का झोरा जल जाता है । जो सत्य बोलता है , उससे से कोई पाप नहीं हो सकता है । साँच बोलने की वृत्ति, जिसकी प्रतिज्ञा रहेगी , वह चोरी नहीं करेगा , कोई  पाप वह नहीं करेगा । चोरी करने से झूठ बोलकर  छिपाता है । सत्य बोलो तो चोरी भी छूट जाएगी । । हिंसा मत करो । हिंसा करोगे तो क्या होगा ? संत कबीर साहब ने कहाा

 कहता हूँ कहि जात हूँ , कहा जो मान हमार । जाका गर तू काटिहौं , सो फिर काट तोहार ।

     कर्मफल किसी को नहीं छोड़ता । श्रीराम सीता वन गए । वे गंगा नदी के किनारे ठहरे । पत्तों के बिछौना पर श्रीसीता - राम लेटे थे और लक्ष्मण पहरा दे रहे थे । वहाँ गुहनिषाद भी बैठा और कहा कि कैकेयी ने इनको बहुत दुःख दिया । तब लक्ष्मणजी ने कहा कि

 काहून कोउ सुख दुख कर दाता । निज कृत कर्म भोग सुनु भ्राता ।।

 युधिष्ठिर को थोड़ा - सा झूठ बोलने का फल भी मिला ही । यद्यपि वह भगवान के समक्ष और उनकी प्रेरणा से बोला था । भगवान श्रीकृष्ण को भी व्याधा ने तीर से मारा । यह भी कर्मफल ही था । इसलिए हिंसा से बचो । व्यभिचार मत करो । पर पुरुषगामिनी स्त्री व्यभिचारिणी है और परस्त्रीगामी पुरुष व्यभिचारी है । इन पंच पापों से बचो । 

     एक ईश्वर पर विश्वास करो , उनका पूरा भरोसा करो । उनकी प्राप्ति पहले अपने अंदर होगी , फिर सर्वत्र । ध्यान करो , सत्संग करो और गुरु की सेवा करो । पहले कहे पंच निषेध कमों को नहीं करो और पीछे कहे पंच विधि कर्मों को करो

 यही' विधि निषेधमय कलिमल हरणी । करम कथा रविनन्दिनी बरनी ।। ' है ।

     इस तरह अपने जीवन को बिताने पर मुक्ति मिलेगी । मुक्ति होने से स्वयं मालूम होगा कि मुक्ति मेरी हो गई । जैसे भोजन करने से स्वयं मालूम होता है कि पेट भर गया । जो जीवन - मुक्ति प्राप्त कर लेता है , मरने पर उसे विदेह - मुक्ति हो जाती है । यदि मुक्ति नहीं हुई तो भगवान श्रीकृष्ण के कहे अनुकूल बहुत वर्षों तक स्वर्गादि का भोग करके इस संसार में किसी पवित्र श्रीमान् के घर में जन्म लेगा । अथवा योगियों के कुल में ही जन्म लेगा । इस प्रकार का जन्म इस लोक में बहुत दुर्लभ है । फिर वह पूर्व जन्म के संस्कार से प्रेरित होकर साधन - भजन करेगा और अनेक जन्मों के बाद मुक्ति को प्राप्त कर लेगा । यह कभी नहीं भूलना चाहिए , सदा याद रखना चाहिए कि सदाचार के धरातल पर भजन - रूप मकान बनता है ।

 ( यह प्रवचन रविदास सत्संगियों के संतमत सत्संग मंदिर , सिकन्दरपुर , भागलपुर में दिनांक १८.३.१६५५ ई के सत्संग में हुआ था । )

नोट-  इस प्रवचन में निम्नलिखित रंगानुसार और विषयानुसार ही  प्रवचन के लेख को रंगा गया या सजाया गया है। जैसे-  हेडलाइन की चर्चा,   सत्संग,   ध्यान,   सद्गगुरु  ईश्वर,   अध्यात्मिक विचार   एवं   अन्य विचार   । 


इसी प्रवचन को "महर्षि मेंही सत्संग सुधा सागर"  में प्रकाशित रूप में पढ़ें- 

Guru maharaj ka pravachan number 108 a

Guru maharaj ka pravachan number 108 b

गुरु महाराज का प्रवचन नंबर 108c


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 109 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


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सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S108, काम करते हुए भी भजन करो ।। Samay ke Sadupayog se Laabh ।। दि.18-03-1955ई. S108,  काम करते हुए भी भजन करो ।।  Samay ke Sadupayog se Laabh ।। दि.18-03-1955ई. Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/09/2020 Rating: 5

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