महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 39
प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 39वां, को । इसमें निर्गुण स्वरूप परमात्मा ने पहले नाद उत्पन्न किया, नाद से बिंदु और बिंदु से सारी सृष्टि हुई। ऐसा बताया गया है।
इसके साथ ही इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष ) में बताया गया है कि- नाद का अर्थ, विंदु का अर्थ, धनात्मक शब्द, वर्णनात्मक शब्द, ईश्वर के निर्गुण और सगुण स्वरूप, इंद्रियों के कार्य, शरीर की संरचना, नाद और बिंदु के भेद, नाद की संरचना, इत्यादि बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- नादयोग, नाद का पर्यायवाची, अनहद नाद का अर्थ, नाद meaning in हिन्दी, निनाद का अर्थ, नाद योग के लाभ, नाद योग की साधना और सिद्धि, नाद के गुण, नाद बिंदु क्या है? नादानुसंधान का पहला चरण,नाद का शाब्दिक अर्थ,नाद किसे कहते हैं? नाद के गुण, नाद की परिभाषा क्या है? नाद की विशेषताएं,नद का अर्थ,अनहद का अर्थ, नाद स्वर, नाद के प्रकार है, इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए ! संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।
इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 38 को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारे लोगो ! नाद का अर्थ है शब्द और विन्दु का अर्थ है छोटे से - छोटा चिह्न । पाठशाला में पढ़नेवाले विद्यार्थी पढ़ते हैं कि जिसका स्थान है परिमाण नहीं , वह विन्दु है । .....इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव--Eeshvar ke bhakt eeshvar ko nirgun aur sagun do roopon mein maanate hain . nirgun svaroop paramaatma ne pahale naath utpann kiya naad se bindu aur bindu se saaree srshti huee. naad ka arth, vindu ka arth, dhanaatmak shabd, varnanaatmak shabd, eeshvar ke nirgun aur sagun svaroop, indriyon ke kaary, shareer kee sanrachana, naad aur bindu ke bhed, naad kee sanrachana,,,.....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-
३९ . दृश्य जगत का मूल विन्दु है
प्यारे लोगो !
नाद का अर्थ है शब्द और विन्दु का अर्थ है छोटे-से-छोटा चिह्न । पाठशाला में पढ़नेवाले विद्यार्थी पढ़ते हैं कि जिसका स्थान है परिमाण नहीं , वह विन्दु है । वह इतना छोटा है कि उसका बाँट नहीं हो सकता ।
नाद ध्वन्यात्मक शब्द है , हमलोग जो बोलते हैं , वह वर्णात्मक है । बाजों का शब्द ध्वन्यात्मक आहत नाद है । परंतु जिस नाद का अभी वर्णन किया जा रहा है , वह आंतरिक अनाहत ध्वन्यात्मक नाद है ।
जो ईश्वर को माननेवाले हैं , वे ईश्वर को सबसे पूर्व का मानते हैं । ईश्वर के पहले कुछ और था माना नहीं जा सकता । ईश्वर किसी शरीर को धारण किए हुए हैं एक ख्याल है । दूसरा ख्याल यह है कि ईश्वर है , किंतु उनको शरीर नहीं है । रंगरूप माननेवाला भी उस रंग - रूप के अंदर ईश्वर को शरीर रहित मानते हैं । पहला शरीर - रहित स्वरूप है या जो शरीरवाला है , वह दोनों में पहले से कौन है ? जो हाथ - पैर आदि इन्द्रियों से युक्त तथा गोचर है वह कैसा है ? तथा आपकी इन्द्रियाँ कैसी हैं ? बनती हैं , ठहरती हैं और बिगड़ती हैं । रजोगुण , सतोगुण और तमोगुण ; त्रैगुणों से निर्मित इन्द्रियाँ हैं । इन्हीं ( रजोगुण , सतोगुण और तमोगुण ) तीनों गुणों को त्रिगुण कहते हैं । त्रिगुण से बनी हुई इन्द्रियाँ त्रिगुण से रहित पदार्थ को पकड़े कैसे संभव है ? शरीर त्रिगुण निर्मित है , इसके सहित रहनेवाले को सगुण कहते हैं । शरीरधारी सगुण है । सगुण कहने से दो पदार्थों का बोध होता है । एक वह जो धारण करता है । और दूसरा वह जिसे वह धारण करता है । जो त्रिगुण को धारण करता है , वह त्रिगुण नहीं है ; वह निर्गुण है , वह गुणातीत है । असल में मूल स्वरूप निर्गुण है । अगुन अखंड अलख अज जोई । भगतप्रेमवस सगुण सोहोई ।। -गोस्वामी तुलसीदास
यह चौपाई विदित करती है कि पहले अगुण = गुण रहित , अखण्ड - खण्डरहित , अलख- जो नेत्र के ज्ञान से बाहर है , अज - जो कभी जन्मा नहीं है ; जो हई है । वही भक्त के प्रेमवश सगुण होता है । यानी वे गुण को धारण करता है । ( गोगोचर जहँ लगि मन जाई।सोसब मायाजानहु भाई ।। इस सिद्धांत से कोई भी इन्द्रिय - गोचर रूप मायिक होगा । चाहे वह दिव्य ही क्यों न कहलावै । चाहे उसका स्थूल इन्द्रियों से दर्शन हो अथवा सूक्ष्म या दिव्य - दृष्टि से दर्शन हो । इस तरह के मायिक दर्शन को निर्गुण निर्मायिक स्वरूप का दर्शन कहा नहीं जा सकता । ) यह तुलसीदासजी का विचार है । मूल स्वरूप परमात्मा का निर्गुण है । वहाँ पर रूप या दृश्य नहीं है ।
निर्गुण अरूप ईश्वर पहले पहल क्या बनावेगा नाद को अथवा विन्दु को ? पहले रूप को या अरूप को ? अरूप रूप से सूक्ष्म है । रूप स्थूल है और अरूप सूक्ष्म है । पानी देखने में आता है और हवा देखने में नहीं आती । पानी स्थूल है और हवा उससे सूक्ष्म है । यह जगत जो पंचभौतिक है , आकाश सबका मूल है । पहले आकाश है , तब वायु । आकाश अदृश्य है , इससे उत्पन्न वायु भी अदृश्य है । फिर वायु से अग्नि , अग्नि से जल और जल से पृथ्वी ऐसे क्रमश : पाँचों तत्त्व बने हैं । पृथ्वी से जल , जल से अग्नि और अग्नि से हवा सूक्ष्म है । पृथ्वी , जल और अग्नि दृश्य है , हवा और आकाश अदृश्य है । आकाश से वायु उत्पन्न हुआ वह आकाश अदृश्य और हवा भी अदृश्य है । तात्पर्य यह कि अदृश्य से अदृश्य उत्पन्न हुआ , परंतु कुछ भेद सहित । भेद यह कि आकाश स्पर्श रहित और हवा स्पर्श सहित । अतएव आकाश सूक्ष्म और हवा स्थूल है इसी प्रकार निर्गुण , अलख ईश्वर से सृष्टि की आदि में जो उत्पन्न हुआ वह ईश्वर की सूक्ष्मता से न्यून सूक्ष्मता रूप अदृश्य ध्वन्यात्मक नाद हुआ । उसके बाद रूप अर्थात् सब रूपों का बीज विन्दु उस नाद से उत्पन्न हुआ । विन्दु दृश्य जगत का उपादान कारण हुआ और अदृश्य जगत नादात्मक हुआ । जहाँ नाद और दृश्य दोनों हैं , वह दृश्य जगत है । दृश्य जगत का मूल विन्दु है । कुछ नक्शा बनाने में पहले विन्दु होगा । दृश्य जगत का जहाँ अंत होगा , वह भी एक विन्दु पर होगा । नाद तो वह चीज है , जिसे सृष्टि की आदि में परमात्मा ने सृजन किया । एकविन्दुत प्राप्त होने अर्थात् विन्दु पर आरूढ़ हो जाने दृश्य जगत के अंत तक आ जाओगे । विन्दु ध्यान से दृश्य जगत से छूट जाओगे । दृश्य के आवरण छूट गया ।
नाद - ध्यान से क्या होता है , सो सुनो । नाद में अपने उद्गम स्थान पर खींच लाने का गुण है । इसका उद्गम स्थान स्वयं परमात्मा है , इसलिए इसके ध्यान से खींचकर उस परमात्मा तक पहुँच जाओगे । हमलोग जो प्रतिदिन संत - स्तुति में ' विन्दु ध्यान विधि नाद ध्यान विधि , सरल सरल जग में परचारी । ' गाते हैं , सो विन्दु और नाद - ध्यान की यही महिमा है । ०
इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 40 को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि निर्गुण स्वरूप परमात्मा ने पहले नाद उत्पन्न किया नाद से बिंदु और बिंदु से सारी सृष्टि हुई। नाद का अर्थ, विंदु का अर्थ, धनात्मक शब्द, वर्णनात्मक शब्द, ईश्वर के निर्गुण और सगुण स्वरूप, इंद्रियों के कार्य, शरीर की संरचना, नाद और बिंदु के भेद, नाद की संरचना । इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर |
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S39, What is the property and point of nad ।। महर्षि मेंहीं प्रवचन पीयूष ।। दि.30-12-1952ई.,
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
9/22/2020
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