महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 55
प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 55 वां, को । इसमें बताया गया है मनुष्य शरीर में ही विश्व-ब्रह्मांड के दर्शन कैसे कर सकते हैं।
इसके साथ ही इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष ) में बताया गया है कि- गुरु की युक्ति द्वारा साधन करके मनुष्य शरीर में ही विश्व ब्रह्मांड के दर्शन सहित सभी देवी-देवताओं का दर्शन करना । ब्रह्मांड में सुक्ष्म रूप से विचरण कैसे कर सकते हैं? इत्यादि बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- मनुष्य शरीर में विश्व-ब्रह्मांड के दर्शन, ब्रह्माण्ड के रहस्य, सबसे बड़ी शक्ति कौन है, ब्रह्मांड से क्या तात्पर्य है, ब्रह्माण्ड का चित्र, ब्रह्मांड में कितने सूर्य हैं, ब्रह्मांड कितना बड़ा है, ब्रह्मांड के अनन्त रहस्य, ब्रह्मांड कितने हैं, विराट रूप दर्शन, मानव शरीर की रचना, मानव शरीर व शरीर रचना की व्याख्या, मानव शरीर रचना, मानव शरीर का निर्माण,मानव शरीर की संरचना, मनुष्य शरीर के विभिन्न अंग, शरीर रचना विज्ञान सवाल, इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए ! संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।
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Visions of the universe in the human body
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारे लोगो ! मनुष्य का शरीर अद्भुत है । अज्ञानी लोग ख्याल करते हैं कि यह शरीर केवल मांस , हड्डी , चर्म आदि का समूह है , परंतु विशेषज्ञ जानते हैं कि इतना ही नहीं है, .....इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव--Visions of the world-universe in human body, secrets of the universe, who is the greatest power, what is meant by the universe, picture of the universe, how many suns are there in the universe, how big is the universe, universe Human anatomy, interpretation of human body and anatomy, human anatomy, creation of human body, structure of human body, different parts of human body, anatomy question,......आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-
५५. मनुष्य शरीर में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है
प्यारे लोगो !
मनुष्य का शरीर अद्भुत है । अज्ञानी लोग ख्याल करते हैं कि यह शरीर केवल मांस , हड्डी , चर्म आदि का समूह है , परंतु विशेषज्ञ जानते हैं कि इतना ही नहीं है केवल स्थूल ज्ञान में रहनेवाले जो जानते हैं , वह तो प्रत्यक्ष है ; किन्तु इस प्रत्यक्ष के अन्दर अप्रत्यक्ष भी है , उसे विशेषज्ञ और सूक्ष्मदर्शी जानते हैं । स्थूलदर्शी दो तरह के होते हैं - एक विद्या - बुद्धि में बढ़े लोग और दूसरे विद्या - बुद्धि में कम और हीन । अच्छे अच्छे डॉक्टर शरीर के भीतर को जानते हैं , किन्तु उसके स्थूल अंशों को ही । इसके अतिरिक्त जो अधिक जाननेवाले हैं , वे जानते हैं कि शरीर के अन्दर स्थूल भाग के अतिरिक्त सूक्ष्म भाग भी है , जो डॉक्टरी यंत्र से नहीं जाना जाता । कोई दूसरे केवल पढ़ - सुनकर , समझकर जानते हैं , सुन - समझ और प्रत्यक्ष पाकर जानते हैं । उन लोगों के ज्ञानानुसार यह शरीर विचित्र है । विश्व ब्रह्माण्ड में जो सब तत्त्व हैं , शरीर में भी वे सब ही हैं । यदि अपने अन्दर सूक्ष्मतल पर कोई जाय , तो उसको सूक्ष्मतल पर का सब कुछ वैसा ही मालूम होगा , जैसा स्थूल तल पर रहने से उस तल का सब कुछ मालूम होता है । स्थूल तल पर आप दूर तक देखते हैं और विचरण करते हैं ; उसी प्रकार सूक्ष्मतल पर आरूढ़ हुआ दूर तक देख सकता और विचरण कर सकता है । स्थूल तल पर रहने से आपको मालूम होता है कि स्थूल शरीर में रहता हूँ और स्थूल संसार में काम करता हूँ । उसी प्रकार आप अपने सूक्ष्म तल पर रहें तो मालूम करेंगे कि सूक्ष्म शरीर में हूँ और सूक्ष्म संसार में विचरण करता हूँ , काम करता और देखता हूँ । ब्रह्माण्ड लक्षणं सर्व देहमध्ये व्यवस्थितम् । -ज्ञानसंकलिनीतंत्र
सकल दृश्य निज उदर मेलि सोवइ निद्रातजि योगी । -गोस्वामी तुलसीदासजी
जो जग घट घट माहिं समाना ।घटि घटि जगजीव माहि जहाना ।। पिण्ड माहिं ब्रह्माण्ड , ताहि पार पद तेहि लखा । तुलसी तेहि की लार , खोलि तीनिपट भिनि भई ।। -तुलसी साहब
सागरमहिं बुंद बुंदमहिसागरु , कवणुबुझै विधिजाण । उतभुज चलत आपि करि चीनै , आपे ततु पछाणै ।। -गुरुनानक साहब
बूँद समानी समुंद में , यह जानै सब कोय । समुंद समाना बूँद में , बूझै बिरला कोय ।। कबीर साहब
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शरीर में है और सब देवता भी इस शरीर के अंदर हैं । आँख में चन्द्रसूर्य का , कान में दशों दिशाओं का , नाक में अश्विनी कुमार का , मुँह में अग्निदेव का , जिभ्या में वरुण का , हाथ में इन्द्र का और पैर में उपेन्द्र ( वामन - वामन अवतार में श्रीविष्णुदेव ने उन्हीं के यहाँ अवतार लिया , जिनके यहाँ इन्द्र ने अवतार लिया था । इन्द्र पहले जन्मे थे और ये पीछे इसलिए उपेन्द्र कहलाए । ) का वासा है । पुनः मूलाधारचक्र ( गुदाचक्र ) में गणेश का , स्वा धिष्ठान ( लिंग ) चक्र में ब्रह्मा का , मणिपूरक ( नाभि ) चक्र में विष्णु - लक्ष्मी का , अनाहत ( हृदय ) चक्र में शिव - पार्वती का , विशुद्ध ( कण्ठ ) चक्र में सरस्वती का , षटचक्र ( आज्ञाचक्र ) में शिव का वासा है मण्डलान्तर्गत श्रीसंतमत और परमप्रभु परमात्मा भी इसी शरीर में विराजमान हैं , जो अन्दर के सब मायिक स्थानों के परे केवल चेतन आत्मा को प्रत्यक्ष ज्ञान में आने योग्य हैं । इस प्रकार का वर्णन संतवाणी में पाया जाता है । उपयुक्त वर्णनानुसार परमप्रभु परमात्मा के सहित सब देव अन्दर में हैं देहस्थाः सर्वविद्याश्च देहस्थाः सर्वदेवताः । देहस्थाः सर्वतीर्थानि गुरुवाक्येन लभ्यते ।। -ज्ञानसंकलिनी तंत्र ।
किन्तु इसको वही देखेगा , जो अपने अन्दर प्रवेश करेगा । भीतर जाने का मार्ग जानिए । यह कैसे जाना जाएगा ? गुरु उपदेश से । इसलिए गुरु की आवश्यकता है । गुरु मुँह से कहेंगे और देखेंगे तो साधना के द्वारा आप ही , जब गुरु के कहे अनुकूल साधन करेंगे । कोई कहे कि ये सब ख्याल - ही - ख्याल हैं , यथार्थ में नहीं , तो कहनेवाले कहते हैं कि तुम अभ्यास करके देख लो । अभ्यास करने पर तुमको मालूम नहीं हो , तब झूठा बनाओ । वैज्ञानिक ने कहा कि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन मिलाने से पानी होता है । कोई कहे - झूठा है , तो दोनों गैसों को मिलाकर देखो कि होता है कि नहीं । उसी प्रकार संतों की युक्ति के अनुकूल साधन करो - अवश्य देखा जाएगा । भीतर का काम , जो भीतर में होता है , वह दिखाया नहीं जा सकता । स्वयं करके देखा जाएगा । जो करने का काम है , उसे नहीं करते हैं और कहते हैं कि नहीं होता है । इस तरह कहना अयोग्य है । संतवाणी में जैसी युक्ति बताई गई है , उस युक्ति से करके देखिए , तब यदि देखने में नहीं आवे , तब झूठा कहिए । ०
इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 56 को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि गुरु की युक्ति द्वारा साधन करके मनुष्य शरीर में ही विश्व ब्रह्मांड के दर्शन सहित सभी देवी-देवताओं का दर्शन करना । ब्रह्मांड में सुक्ष्म रूप से विचरण कैसे कर सकते हैं? । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का संका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर |
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S55, Visions of the universe in the human body ।। महर्षि मेंहीं अमृतवाणी ।। 08-04-1953ई.
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
9/19/2020
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