महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 105
प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर १०५वां, के बारे में। इसमें बताया गया है कि संतवाणी में पूर्व पश्चिम किसे कहते हैं?
इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष ) में पायेंगे कि- Manushy ka param kalyaan kaise hoga? naam-bhajan ya surat-shabd-yog kise kahate hain? naam-bhajan ke 5 shabd kya hai? guru granth kee mahima, santavaanee ka arth kaun kar sakata hai? santamat mein poorv pashchim kise kahate hain? gyaan vrddhi kaise hotee hai? amaavasya, pratipada aur poornima drshti kya hai? इत्यादि बातों के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- kabeer ke pad kee vyaakhya, kabeer ke pad arth sahit, kabeer ke dohe saakhee,disha kee paribhaasha kya hai, chaar dishaon ke madhy chaar konon ke naam, poorab aur uttar ke beech kee disha kise kahate hai, poorv disha kidhar hotee hai, poorv disha kidhar hai, poorv pashchim uttar dakshin, poorab disha kidhar hai,poorab, pashchim, poorab, pashchim, uttar dakshin kidhar hai, poorv disha kis taraph hotee hai, poorv pashchim uttar dakshin in hindee, utar poorv disha, इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए ! संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।
संतमत में पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा क्या है? |
What is East-West in Santwani
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारे लोगो ! मनुष्य अपने परम कल्याण के वास्ते भजन करें । भजन ऐसा करें कि ईश्वर को प्राप्त कर लें । ईश्वर को प्राप्त करने के लिए ऐसा विश्वास मत करो कि अभी कुछ जप ध्यान कर लो , मरने पर प्रभु मिलेंगे । .....इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----How will the ultimate welfare of man be? Who is called Naam-Bhajan or Surat-Shabd-Yog? What are 5 words of Naam-bhajan? Who can interpret Santwani, the glory of Guru Granth? What is East West in Santmat? How does knowledge increase? What is Amavasya, Pratipada and Poornima vision?......आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-
१०५. केवल विद्वता से संतवाणी नहीं समझ सकते
प्यारे लोगो !
मनुष्य अपने परम कल्याण के वास्ते भजन करें । भजन ऐसा करें कि ईश्वर को प्राप्त कर लें । ईश्वर को प्राप्त करने के लिए ऐसा विश्वास मत करो कि अभी कुछ जप ध्यान कर लो , मरने पर प्रभु मिलेंगे । भजन इस जन्म में पूरा नहीं होगा , तो दूसरे जीवन में या अनेक जन्मों के बाद किसी जीवन - काल में ही परमात्मा मिलते हैं ।
नाम - भजन सबसे श्रेष्ठ है । नाम - भजन दो तरह से होता है - जप और ध्यान । वर्णात्मक नाम का जप और ध्वन्यात्मक नाम का ध्यान करो । इसी ध्वन्यात्मक नाम के ध्यान को नाम - भजन और सुरत - शब्द - योग भी कहते हैं । इसको अंतर्मुख होकर करना पड़ेगा । यह शब्द मनुष्य का बनाया हुआ नहीं है । इसको कोई मनुष्य मुँह से उच्चरित करके किसी से कह भी नहीं सकता है । इसकी युक्ति जानो और ध्यान करो । ध्यान करने से आप - ही - आप यह नाद सुन पड़ेगा ।
संतों की वाणी में जो पाँच शब्द आते हैं , वे ये हैं कि परमात्मा से सृष्टि के लिए जो मौज होती है , उससे जो धारा प्रवाहित होती है , उससे पाँच मण्डल बनते हैं । उन्हीं पाँच मण्डलों के केन्द्रीय शब्दों को पाँच शब्द कहते हैं । कबीर साहब ने कहा है पाँचो नौबत बाजती , होत छतीसो राग । सो मंदिर खाली पड़ा , बैठन लागे काग ॥
और गुरु नानकदेवजी ने कहा है पंच सबदु धुनिकार धुन, तहँ बाजे सबदुनिसानु ।
जो अपने अंदर गहरा ध्यान करता है , उसको यह नाद मिलता है और उस नाद को गहण कर परमात्मा को पाता है । इससे सरल और सुलभ कोई मार्ग नहीं है ।
बाबा साहब ने यह नहीं कहा कि मैं एक पुस्तक बना देता हूँ , इसी को पढ़ो । बल्कि उन्होंने कहा कि दुनिया की सारी किताबों को पढ़ो जो संतों की बनाई हुई हैं । किसी एक कोठरी में अपने को बन्द करके मत रखो । सभी कोठरियाँ तुम्हारी हैं । ' गुरुग्रंथ साहब ' में कितने संतों के वचन । यह उदारता है । सभी संतों के ग्रंथों को पढ़ो । नानकपंथ के दसवें गुरु - गुरु गोविन्द सिंहजी ने कहा है बाजे परम तार तत हरिको , उपजै रागरसारं ।
यह नादानुसंधान है । नादानुसंधान सभी संतों के ग्रंथों में मिलता है । आजकल बड़े - बड़े विद्वान लोग संतों की वाणियों की खोज करते हैं और उससे वे बड़े - बड़े पुरस्कारों को प्राप्त करते हैं ; किंतु केवल विद्वता से कोई संतवाणी को नहीं समझ सकते हैं और ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है कि विद्या की आवश्यकता नहीं । बिना विद्या के शब्द का अर्थ नहीं जान सकते । जो बहुत पढ़े हैं , रायचन्द , प्रेमचन्द पास करते हैं उनके पास शब्दों का भण्डार हो जाता है । अगर वे साधन की क्रिया को जानते हैं , तो ठीक - ठीक अर्थ कर सकते हैं , समझ सकते हैं और समझा सकते हैं । यदि साधना की क्रिया नहीं जानते हैं , केवल पढ़ - लिखकर विद्वान हुए हैं , तो संतवाणी का ठीक ठीक अर्थ नहीं कर सकते हैं ।
सत्त पुरुष इक बसे पछिम दिसि तासों करो निहोर । संत कबीर साहब की इस पंक्ति का एक विद्वान ने अर्थ किया था कि कबीर साहब मुसलमान खानदान में पाले पोसे गए थे , इसलिए पश्चिम कहकर उन्होंने मक्का का संकेत किया है । विद्वानों को संतों की साधना जाननी चाहिए । साथ ही उसका अभ्यास करना चाहिए । अभ्यास के साथ- साथ सदाचारी भी बनना होगा तभी संतवाणी को ठीक - ठीक जान सकेंगे । आजकल विद्वानों में एक भ्रामक विचार फैल गया है कि संतों की साधना में कुछ करना नहीं पड़ता है । आँख भी बन्द नहीं करनी पड़ती । वे कबीर साहब की ये पक्तियाँ कहते हैं आँख न मूंदौं कान न रुुधौं , तनिक कष्ट नहिं धारौं । खुले नयन पहिचानौं हँसि - हँसि , सुन्दर रूप निहारौं ।
पूरा इस प्रकार है साधो सहज समाधि भली । गुरु प्रताप जा दिन से जागी , दिन दिन अधिक चली । जहँ जहँ डोलौं सो परिकरमा , जो कुछ करौं सो सेवा । जब सोवौं तब करौं दण्डवत , पूजौं और न देवा । कहौं सो नाम सुनौं सो सुमिरन , खाँव पियौं सो पूजा । गिरह उजाड़ एक सम लेखौं , भाव मिटावौं दूजा । आँख न मूंदों कान न रुुधों , तनिक कष्ट नहिं धारौं । खुले नयन पहिचानौं हँसि-हँसि, सुन्दर रूप निहारौं । शब्द निरंतर से मन लागा , मलिन वासना भागी । ऊठत बैठत कबहुँ न छूटै , ऐसी ताड़ी लागी ॥ कहै कबीर यह उनमुनि रहनी , सो परगट कर गाई । दुख सुख से कोइ परे परम पद , तेहि पद रहा समाई ।
संत कबीर साहब ने कहा - ' खाँव पिऊँ सो पूजा । श्रीरामकृष्ण परमहंस भी पीछे चलकर ऐसे ही हो गए थे कि कोई जो कुछ भी काली माई को चढ़ाते थे , वे अपने मुँह में ले लेते थे और खा जाते थे – ' कालिकाय्ये नम : ' कहकर खा जाते थे । केवल कहने से नहीं होगा । इसकी योग्यता होनी चाहिए । श्रीरामकृष्ण परमहंसजी को इसकी योग्यता हो गयी थी । गिरह उजाड़ एक सम लेखौं , भाव मिटावौं दूजा । इस कसौटी पर कसकर देख लीजिए कि उनमें द्वैत भाव है कि नहीं ।
आँख न मूंदों कान न सँधों , तनिक कष्ट नहिं धारौं । खुले नयन पहिचानौं हँसि - हँसि , सुन्दर रूप निहारौं । ऐसी स्थिति उनमें आ गई कि नहीं ?
शब्द निरंतर से मन लागा , मलिन वासना भागी । ऊठत बैठत कबहुँ न छूटै , ऐसी ताड़ी लागी ॥ आत्मस्वरूप के दर्शन में ही ' आँखि न मूंदौं कान न रूधौं ' होता है । साधनारम्भ में नहीं होता है ।
साधना के लिए तो कबीर साहब ने कहा है बंद कर दृष्टि को फेरि अंदर करै , घट का पाट गुरुदेव खोले । गुरुदेव बिन जीव की कल्पना ना मिटै , गुरुदेव बिन जीव का भला नाहीं । गुरुदेव बिन जीव का तिमिर नासे नहीं , समुझि विचारि ले मने माहिं ।। राह बारीक गुरुदेव ते पाइए , जनम अनेक की अटक खोले । कहै कबीर गुरुदेव पूरन मिले , जीव और सीव तब एक तोले ।। यह समाधि में होता है ।
बाबा नानक ने कहा तीनों बंद लगाय कर , सुन अनहद टंकोर । नानकशून्य समाधि में , नहिं साँझ नहिं भोर ।।
ये तीन बंद क्या है ? कबीर साहब ने कहा आँख कान मुख बंद कराओ , अनहद झींगाशब्द सुनाओ । दोनों तिल एक तार मिलाओ , तब देखो गुलजारा ।।
संतों के पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान बिना साधु - संतों का संग किए नहीं होता । पूर्व का अर्थ होता है जो पहले हो । इसलिए जो पहले हो , पूर्व है । इसका उलटा जो हो वह है पश्चिम । परम सहायक को दाहिना कहते हैं । गोस्वामीजी ने लिखा है - ' जे बिनु काज दाहिने बायें । '
जो उपकारक के विरुद्ध हो जाय , वह दाहिना नहीं है । दाहिना अर्थात् दक्षिण , जो बड़ा मददगार होता है । उत्तर यानी दक्षिण दिशा का उलटा । उत्तर सबसे परे होता है । नक्शे का उत्तर ऊपर होता है । इसलिए ' प्राणसंगली ' के पहले भाग में नक्शा है उसमें बताया है कि पूर्व अंधकार को कहते हैं प्रकाश को पश्चिम , शब्द को दक्षिण और नि : शब्द को उत्तर कहते हैं । संतों के पारिभाषिक शब्दों के ये अर्थ हैं । और विद्वानों को सूझ गया पश्चिम का अर्थ मक्का । विद्वता भी चाहिए और अच्छे साधु संत का संग भी ।
ज्ञान - वृद्धि के लिए एकाग्रता की जरूरत है । एकाग्रता में ज्ञान - वृद्धि होती है । ध्यान में एकाग्रता होती है । एकाग्रता में सिमटाव होता है सिमटाव होने पर ऊर्ध्वगति होती है । इससे परमात्मा तक पहुँच सकते हो । एकाग्रता जैसे हो , वैसे करो मण्डल ब्राह्मणोपनिषद् में तीन प्रकार से सिमटाव करना बतलाया है - अमावस्या, प्रतिपदा और पूर्णिमा से । आँख बन्दकर देखना अमादृष्टि है आधी आँख खोलकर देखना प्रतिपदा है और पूरी आँख खोलकर देखना पूर्णिमा है । उसका लक्ष्य नासाग्र होना चाहिए जिससे जो निभता है , करता है । करने दो । ध्यान में स्थूल , सूक्ष्म - दोनों भेदों को जानिए । सदाचारी बनकर रहिए और ध्यान कीजिए ।०
इसी प्रवचन को शांति संदेश में प्रकाशित किया गया है उसे पढ़ने के लिए यहां दवाएं।
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प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि kabeer ke pad kee vyaakhya, satsang santavaanee, santavaanee mein poorv pashchim kise kahate hain? amaavasya, pratipada aur poornima drshti kya hai? naam-bhajan ke 5 shabd kya hai? इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर |
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S105, (क) What is East-West in Santwani ।। महर्षि मेंहीं अमृतवाणी ।। 03-03-1955ई.
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
10/07/2020
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