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S104, Where is heaven baikunth in santwani ।। महर्षि मेंहीं अमृतवाणी ।। 02-03-1955 ई.

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 104

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर १०४वां, के बारे में। इसमें बताया गया है कि वेद-उपनिषद् और संतवाणी के अनुसार स्वर्ग बैकुंठ कहां है? सूक्ष्म लोक क्या है? 

इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि-  ved-upanishad aur santavaanee ka itihaas, ved-upanishad aur santavaanee kya kahatee hai? shraaddh kyon karate hain? shareer kitane prakaar ka hai? svarg baikunth kahaan hai? sookshm lok kya hai? maaya ka pasaar kya hai? santon ka gyaan kya hai?    इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- paramadhaam golok, saaket dhaam, baikunth ka paryaayavaachee, baikunth ka arth in hindi, brahmalok, golok dhaam kahaan hai,baikunth kahaan par hai,baikunth ka arth hindee mein, saaket lok kya hai, saat svarg, svarg svarg, svarg narak, svarg kya hai, svarg ka raasta, svarg kahaan hai aur kaisa hai?     इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें। 

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 103 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं। 


स्वर्ग  बैकुंठ कहां है? पर प्रवचन करते गुरुदेव
सर बैकुंठ क्या है? पर प्रवचन करते गुरुदेव

Where is heaven baikunth in santwani

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारे लोगो ! महात्मा बुद्ध से लेकर अब तक इस कलि काल में बहुत से साधु - संत हुए हैं । उन लोगों ने जो कुछ शिक्षा दी है , लोगों ने उसे ग्रंथों में रख दिया है । .....इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----History of Veda-Upanishad and Santvani, What does Veda-Upanishad and Santvani say? Why do Shradh? What type of body is it? Where is Swarga Baikunth? What is microcosm? What is the spread of Maya? What is the knowledge of saints?......आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें- 

१०४. नारदजी को बैकुण्ठ में मोह 

स्वर्ग में बैकुंठ कहां है?  पर प्रवचन करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

प्यारे लोगो ! 

     महात्मा बुद्ध से लेकर अब तक इस कलि काल में बहुत से साधु - संत हुए हैं । उन लोगों ने जो कुछ शिक्षा दी है , लोगों ने उसे ग्रंथों में रख दिया है । हाल के संतों ने अपने से लिख भी दिया है । संत दरिया साहब , भगवान बुद्ध , महावीर तीर्थंकर आदि ने अपने से लिखा नहीं , केवल कह दिया । बुद्ध , महावीर के बाद तुलसी साहब भी कुछ पढ़े - लखे थे , किंतु उन्होंने लिखा नहीं । लोगों के वचनों को सुनकर ग्रंथाकार किया । इसी तरह प्राचीन काल में ऋषि - मुनि हुए । उन्होंने भी लिखा नहीं , कहा । लोगों ने उसका संग्रह किया , वही उपनिषद् है।

     उपनिषद् वेद का ज्ञान मानी जाती है । उसमें कर्म और कर्मफल का वर्णन किया गया है , कर्म की विधियों का वर्णन किया गया है , जिससे इस लोक और परलोक में सुख की प्राप्ति लिखी है । उपासना काण्ड में भी दोनों लोकों के सुखों से हटने के लिए कहा और कहा कि ये दोनों बन्धन हैं । दोनों में से किसी में रहो तो आवागमन में पड़े रहोगे । दोनों के सुख क्षणभंगुर हैं , तृप्तिदायक नहीं हैं । जिसमें पूर्ण सुख - शान्ति मिलेगी , वह विषय सुख नहीं है अर्थात् इन्द्रियों से पाने योग्य नहीं है । अर्थात् इन्द्रियों और विषयों के संयोग से जो सुख होता है , वह तृप्तिदायक नहीं । संतों ने कहा कि इहलोक और परलोक दोनों का सुख अनित्य है । इससे परे का सुख नित्यानंद है । यह आत्मा से ग्रहण होने योग्य है । नित्यानंद वह है , जो सदा रह जाय । अनित्यानंद वह है , जो कुछ काल रहे , फिर नहीं रहे । इहलोक और परलोक- दोनों से चित्त हटा रहे , यही उपनिषद् और संतवाणियों में है। एहि तन कर फल विषय नभाई । स्वर्गउ स्वल्प अन्त दुखदाई ॥

     यह चौपाई भी यही बात कहती है । ' उस नित्यानंद के लिए कहाँ ठहराव होगा ? ' यदि यह पूछा जाय तो उत्तर होगा- किसी देश में नहीं , देश - काल के परे । किसी आधार पर आधेय बनकर रहना किसी लोक - लोकांतर में रहना है । आधेय बनकर रहना नित्यानन्द नहीं है । वह अपना आधार 
आप है । शरीरों से अलग हटा हुआ है , केवल आत्मस्वरूप में रहता है । उसके रहने के लिए स्थान की आवश्यकता नहीं है । वहाँ स्थान नहीं है तो काल भी नहीं । वह देश - काल से अतीत पद है । उसमें आरूढ़ होने के लिए पहुँचने के लिए संतों ने उपदेश दिया है । संतवाणी का निचोड़ यह है । इसके लिए मनुष्य पहले अपने को जाने । लोग ऐसा ख्याल करते हैं कि जैसे धरती पर रहना है , वैसे ही अन्य लोकों में जाकर सुख से रहना होगा । परन्तु इससे विशेष बात वह है , जिसको मैंने आपलोगों से कहा । चाहिए कि इसके लिए इच्छा उत्पन्न करे और इसको सोचे । 

     मनुष्य अपने को नहीं जानता है , अपने शरीर को अपने तई कहता है , तो गलत कहता है । शरीर मर जाता है , यह प्रत्यक्ष देखता है । फिर ख्याल होता है कि शरीर में रहनेवाला कहीं चला गया है । इसलिए वैदिक धर्म में हमलोगों के यहाँ जो पुराण में प्रचार है , उससे श्राद्ध - क्रिया करते हैं । शरीर मर गया , शरीर में रहनेवाला कहीं चला गया , उसकी शान्ति के लिए , सुख के लिए श्राद्ध - क्रिया करते हैं । श्राद्ध क्रिया यह ज्ञान देती है कि शरीर में रहनेवाला कोई था , वह चला गया । उसके लिए श्राद्ध - क्रिया होती है । इस श्राद्ध - क्रिया से शरीर और शरीरी का ज्ञान होता है । यह पूरा ज्ञान तो नहीं है ; किंतु आरम्भ का ज्ञान अवश्य है । जिस शरीर को लोग जला आते हैं , उसमें भी शरीर है । फिर उसमें भी शरीर है । एवम् प्रकार से चार जड़ - शरीर हैंस्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण । 

     मुंशी माखनलाल चले गए या और कोई कितने गए ; किंतु क्या केवल आत्मा गयी ? नहीं । स्थूल शरीर छोड़कर गयी और सूक्ष्म शरीर को साथ लेकर चली गयी । ऊपर का स्थूल शरीर छूट गया तो ऊपर में सूक्ष्म शरीर रहा । यह शरीर का पूरा ज्ञान हैइन सब शरीरों के बाद एक शरीर और है , जिसको ' चिदानन्दमय देह तुम्हारी ' कहते हैं । यह चेतन शरीर है । चेतन से भी परे स्वरूप आत्मा का है

     जैसे स्थूल शरीर में होने पर स्थूल जगत में रहना होता है , इसी प्रकार सूक्ष्म शरीर के लिए सूक्ष्म जगत होना चाहिए । इसी सूक्ष्म जगत में स्वर्ग - वैकुण्ठादि हैं । कितने लोग स्वर्गादि को नहीं मानते हैं । उस सूक्ष्म लोक और स्वर्गादि में यहाँ के सुख से विशेष सुख और विशेष दिनों तक रहना होता है । किंतु न यहाँ दुःख छोड़ता है और न वहाँ दुःख छोड़ता है । माया - मोह न यहाँ छोड़ता है और न वहाँ ।

     नारदजी वैकुण्ठ गए । वहाँ उनका मोह और बढ़ गया । गोलोक से श्रीदामाजी कंस के पास राक्षस बनकर आए । वहाँ विषय - सुख है और माया का पसार है । माया में जो होना चाहिए , सो होता है । इसलिए ‘ स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई ' - भगवान श्रीराम ने कहा ।

     संतों ने ज्ञान , योग और भक्ति ; तीनों को मिलाकर चलने को कहा । घी , मीठा और अन्न तीनों मिलाकर सुन्दर मिठाई होती है । इसी तरह ज्ञान , योग और भक्ति ; तीनों को मिलाकर संतों ने उपदेश दिया है । ० 


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 105 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि ved-upanishad aur santavaanee ke anusaar svarg baikunth kahaan hai? sookshm lok kya hai? maaya ka pasaar kya hai?shareer kitane prakaar ka hai? santon ka gyaan kya hai? इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।



सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S104, Where is heaven baikunth in santwani ।। महर्षि मेंहीं अमृतवाणी ।। 02-03-1955 ई. S104, Where is heaven baikunth in santwani ।। महर्षि मेंहीं अमृतवाणी ।। 02-03-1955 ई.  Reviewed by सत्संग ध्यान on 10/07/2020 Rating: 5

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