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S77, (क) Sansaar Samudr se bachane ka Raasta ।। महर्षि मेंहीं अमृतवाणी ।। 16-04-1954 ई.

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 77

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है । आइए आज जानते हैं- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ७७ को । इसमें संसार समुद्र से कैसे बचें? हमारे शरीर और संसार में समानता है। इसको जानकर साधना के द्वारा शरीर के सभी तलों को पार करके संसार समुद्र से बचा जा सकता है। ऐसा बताया गया है। 

इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में पायेंगे कि- संसार समुद्र कैसा है? भक्त सूरदास जी के वचन में संसार समुद्र कैसा है? संसार समुद्र से कैसे बच सकते हैं? संसार समुद्र से बचने का रास्ता कैसा है? शरीर और संसार में क्या समानता है? सुक्ष्म रास्ता कैसा है? शरीर और संसार के कितने मंडल हैं? सक्षम रास्ता पर कैसे चलते हैं? मन बुद्धि कहां तक जाती है? साधना में उन्नति के लिए सदाचार पालन जरूरी क्यों है? अमीर और गरीब में किस बात की समानता है?    इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- समुद्र में रहने वाले जीव-जंतु, भारत में कितने समुद्र है, समुद्र में पाए जाने वाले जीव, समुद्र में लहरें क्यों उठती है, भारत के समुद्, समुद्र पर निबंध, समुद्र से क्या प्राप्त होता है, समुद्र का पानी कहां जाता है, समुद्र कैसे बना, समुद्री वनस्पति, समुद्र तल क्या होता है, गुरु पादुका अष्टक, गुरु स्तोत्रम्, गुरु स्तोत्रम् Pdf, नमो गुरुभ्यो,समुद्र क्या है?समुद्र कैसे बना?समुद्र का दूसरा नाम क्या है? सबसे गहरा समुद्र कौन सा है? ,  इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें। 

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 76 को पढ़ने के लिए  यहां दबाएं।

Sarir aur sansar mein Samanta per charcha karte hue Gurudev
शरीर और संसार में समानता पर प्रवचन करते गुरुदेव

Escape from the sea. संसार समुद्र से बचने का रास्ता

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! जो पाठ आपने अभी सुना है , वह उपनिषद् का पाठ हुआ था - मण्डलब्राह्मणोपनिषद् का । यह संसार महासमुद्र है । इसमें निद्रा , भय बड़े - बड़े जीव - जंतु हैं ।.....   इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----How is the world?  How is the world ocean in the word of devotee Surdas ji?  How can the world escape from the sea?  How is the world the way to escape from the sea?  What is the similarity between body and world?  How is the micro way?  How many circles of body and world are there?  How to walk the efficient way?  How far does the mind go?  Why is ethical practice necessary for advancement in spiritual practice?  What are the similarities between rich and poor?....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-

७७. अबके माधव मोहि उधारि 

संसार समुद्र से बचने के रास्ते पर विचार-विमर्श करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज एवं भक्तगण

धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! 

     जो पाठ आपने अभी सुना है , वह उपनिषद् का पाठ हुआ था - मण्डलब्राह्मणोपनिषद् का । यह संसार महासमुद्र है । इसमें निद्रा , भय बड़े - बड़े जीव - जंतु हैं । जो निद्रा के अंदर चले जाते हैं , तब मानो वे बड़े जीव के पेट में चले जाते हैं । उन्हें अपना कोई होश नहीं रहता । डर भी वह चीज है कि जहाँ आपको डर हो गया , वहाँ करने योग्य काम भी आप नहीं कर सकेंगे । दूसरे का अपकार करना , बुरा चिंतन करना - हिंसा है । वह उस समुद्र की लहर है । तृष्णा उसके भँवर हैं । फिर जल में पंक भी है । शरीर के जितने संबंधी हैं , उनकी ओर आसक्ति लगी रहती है ; यही पंक है

     सूरदासजी ने कहा है अबके माधव मोहि उधारि । मगन हौं भव अंबुनिधि में , कृपासिन्धु मुरारि ।। नीर अति गंभीर माया , लोभ लहरि तरंग । लिए जात अगाध जल में , गहे ग्राह अनंग ।। मीन इन्द्रिय अतिहि काटत , मोट अघ सिर भार । पगन इत उतधरन पावत , उरझि मोह सेंवार ।। कामक्रोध समेत तृष्णा , पवन अति झकझोर । नाहिं चितवन देत तिय सुत , नाक नौका ओर ।। थक्यो बीच बेहाल विहवल , सुनहु करुणा मूल । स्याम भुज गहि काढ़ि डारहु , ' सूर ' ब्रज के कूल ।। 

     इस संसार सागर को पार करो । अवश्य ही सांसारिक संबंध की ममता में लोग लगे रहते हैं । भजन के समय वे ही सब याद आते हैं , भजन बनता नहीं । इसलिए निद्रा , भय , तृष्णा आदि से बचो । मन में होता है कि बचना चाहिए ; किंतु बच नहीं सकते हैं । विचार के द्वारा बच नहीं सकते । इसके अतिरिक्त और कुछ होना चाहिए । पहले श्रवण ज्ञान , फिर मनन ज्ञान , निदिध्यासन ज्ञान और अनुभव ज्ञान ।

     केवल मनन या विचार ज्ञान से ही हम संसार की लसंग ( चिपकन ) से , भँवर से , जीव - जन्तु से , पंक से बचें , यह संभव नहीं है । विचार से बुद्धि में कुछ स्वच्छता आती है , किंतु फिर उसमें मैल जमती है । इसके लिए सूक्ष्ममार्ग का अवलंब करने के लिए कहा । बाबा गुरु नानकदेवजी ने कहा भगता की चाल निराली । चाल निराली भगता केरी विखम मारगि चलणा ।। लबुलोभ अहंकार तजि त्रिसनाबहुतुनाही बोलणा ।। खंनिअहुतीखी बालहु नीकी एतु मारगिजाणा ।। गुरपरसादी जिनि आपुतजियाहरि वासनासमाणी ।। कहै नानक चाल भगताह केरी जुगहु जुग निराली ।। 

     कबीर साहब से पूछते हैं तो वे कहते हैं गुरुदेव बिन जीव की कल्पना ना मिटै , गुरुदेव बिन जीव का भला नाहीं । गुरुदेव बिन जीव का तिमिर नासे नहीं , समुझि विचारि ले मने माहिं ।। राह बारीक गुरुदेव ते पाइए , जनम अनेक की अटक खोले । कहै कबीर गुरुदेव पूरन मिले , जीव और सीव तब एक तोलै ।। 

     यही सूक्ष्म मार्ग है । कितने जन्म हुए , कितने शरीर में अटके । यह शरीर भी चला जाएगा । हमलोगों के बहुत शरीर हुए । जबसे शरीर हुए , तबसे शरीर में अटके हुए हैं । आप ख्याल कीजिए कि कोई कैदी हो , तो उसका चित्त सदा लगा रहता है कि इस कैदखाने से निकल जाता । किंतु रास्ता मिलता नहीं । यदि पहरेदार या कोई उसे निकलने का रास्ता बता दे , तो वह उससे निकल जाय । लोग इस संसार से निकलने का रास्ता नहीं जानते । यदि कोई इस राह को बता दे तो वह कितना बड़ा उपकारी होगा । सूक्ष्ममार्ग पर चलने से आप संसार से निकल जाइएगा । अपने शरीर से भी निकल जाइएगा । यह संसार और आपका शरीर - दोनों एक ही तत्त्व से बने हैं । जितने तल आपके शरीर के हैं , संसार के भी उतने ही तल हैं । आपके शरीर और संसार में बहुत संबंध है ।  यदि आप शरीर से पार हो जाएँ , तो संसार से भी पार हो जाएंगे । 

     यह स्थूल मण्डल है , इससे महान सूक्ष्म मण्डल , इससे भी महान कारण मंडल और इससे भी महान महाकारण मंडल है । ये चार दर्जे ब्रह्माण्ड के हैं । आपके शरीर में चार दर्जे हैंअपने शरीर में जो स्थूल तल है और संसार में जो स्थूल तल हैं - दोनों में इतना संबंध है कि आप जाग्रत में शरीर के स्थूल तल पर रहते हैं , तो संसार के भी स्थूल तल पर रहते हैं । जब स्वप्न में आपको स्थूल शरीर का ज्ञान नहीं रहता , तो स्थूल संसार का भी ज्ञान नहीं रहता । इस नमूने से समझना चाहिए कि शरीर के जिस तल पर आप रहते हैं , संसार के भी उसी तल पर आप रहते हैं । शरीर के जिस तल को आप छोड़ते हैं , संसार के भी उस तल को आप छोड़ते हैं इस प्रकार यदि आप शरीर के सब तलों को पार करेंगे , तो संसार के भी सब तलों को पार कर जाएँगेजिसने पिण्ड को जीता , उसने ब्रह्माण्ड को जीता । इसको जीतने के लिए सूक्ष्ममार्ग का अवलंब करने कहा । संसार में रास्ता देखते हैं , तो पैर से चलते हैं । यहाँ देखने के लिए तीन दृष्टियों का वर्णन हुआ - एक अमा ,  दूसरी प्रतिपदा और तीसरी पूर्णिमा । कबीर साहब ने आँख बन्द करके दृष्टिसाधन करने कहा बंद कर दृष्टि को फेरि अंदर करै , घट का पाट गुरुदेव खोले । कहै कबीरतूदेख संसार में , गुरुदेव समान कोइ नाहिंतोले ।। - कबीर साहब

     गुरु नानकदेवजी भी तीन बन्द लगाकर ध्यान करने कहते हैं तीनों बंद लगाय के , सुन अनहद टंकोर । नानक सुन्न समाधि में , नहिं साँझ नहिं भोर ।। ' आँख कान मुख बंद कराओ , अनहद झींगाशब्द सुनाओ । दोनों तिल एक तार मिलाओ , तब देखो गुलजारा है ।। ' 

     आपसे जो हो सके , जो सरल मालूम हो , वह कीजिए । भगवान बुद्ध की प्रतिमा में देखिए , वे आँखें बन्द करके बैठे हुए ध्यान में मिलेंगे । व्यासदेवजी भी आँख बन्द करके बैठे हुए हैं और ध्यान कर रहे हैं । इस तरह यदि आप आसानी से सूक्ष्म मार्ग को पकड़ना चाहें तो अमादृष्टि से कीजिए । उस सूक्ष्ममार्ग पर पैर नहीं चल सकता । बिन पावन की राह है , बिन बस्तीका देश । बिना पिण्ड का पुरुष है , कहै कबीर संदेश । 

     देखत - देखते स्वयं उस पर चल पड़ेंगे । सिमटाव में ऊर्ध्वगति होती है । जो वस्तु जितनी सूक्ष्म होती है , उसके सिमटाव से उसकी उतनी अधिक ऊर्ध्वगति होती है । सुरत से कोई विशेष सूक्ष्म नहीं हो सकता । इसका सिमटाव होने से इसकी विशेष ऊर्ध्वगति होगी । इसके लिए किसी जानकार से जानकर भजन कीजिए । आँखें बंद करके ध्यान करने पर कहते हैं कि नींद आ जाती है , तो जो निशाना बताया गया है , उसको दृढ़ता से पकड़ो , नींद नहीं आएगी । यदि निशाना छूट जाय , मन बहक जाए , तो अवश्य ही नींद आ जाती है । 

     सतोगुण में वृत्ति रखने को कहा । इड़ा - पिंगला में तमोगुण - रजोगुण की प्रधानता रहती है । सुषुम्ना में सतोगुण की प्रधानता रहती है । बाबा नानक देवजी ने कहा सुखमन कै घरि राग सुनि सुन मंडल लिव लाइ । अकथ कथा वीचारीजै मनसा मनहिं समाइ ।। 

     एक बंगाली साधु ने कहा बायेंइड़ा नाड़ी दक्खिणे पिंगला , रजस्तमोगुणेकरितेछेखेला । मध्य सत्वगुणे सुषुम्ना विमला , धरा धरए तारे सादरे ।

     सुषुम्ना में अपने को स्थिर कीजिए । इस सूक्ष्म मार्ग पर पहले मन - सहित चेतन आत्मा चलती है । चलते - चलते मन आगे नहीं जा सकता । केवल चेतन आत्मा चलती है । संत तुलसी साहब ने कहा सहस कमलदल पार में मन बुद्धि हिराना हो । प्राण पुरुष आगे चले , सोइ करत बखाना हो ।

     सहस्रदल कमल के ऊपर त्रिकुटी का स्थान है । यह बाहर में नहीं अंतर में है । वहाँ जाकर मन - बुद्धि हेरा जाती हैं । इसके आगे प्राण पुरुष या चेतन आत्मा चलती है । सूक्ष्ममार्ग के द्वारा सबको संसार से पार होना चाहिए । संतों ने संसार से पार हो जाने के लिए कहा । यह संसार कैदखाना है । एक - एक पिण्ड एक - एक कोठरी है । जो कोठरी से छूटेगा , वह घेरे से भी छूटेगा । इसका अभ्यास अपने घर में करो या कहीं दूर देश में करो ; किंतु अपने को संयम में रखो । पंच पापों से बचते रहो । झूठ , चोरी , नशा , हिंसा और व्यभिचार नहीं करना चाहिए । गरीबी - अमीरी का ख्याल छोड़ दो सच्ची कमाई अपना गुजर - बसर करो । दरिया साहब ने भी सूक्ष्ममार्ग के लिए कहा जानि लेजानि ले सत्तपहचानिले , सुरति साँचीबसैदीददाना । खोलोकपाट यहबाट सहजैमिलैपलकपरवीन दिवदृष्टिताना ।। ऐन के भवन में बैन बोला करै चैन चंगा हुआ जीति दाना । मनी माथे बरै छत्र फीरा करै जागता जिन्द है देखुध्याना ।। पीरपंजा दियारसददाया कियामसत माता रहै आपुज्ञाना । हूआबेकैद यह और सभ कैद में झूमता दिव्य निशान बाना । गगनघहरानवाए जिन्दअमानहैजिन्हियहजगतसबरचाखाना । कहै दरिया सर्वज्ञ सबमाहिहै कफासबकाटि के कुफुरहाना ।। 

     अमीरी का लालच मत करो और गरीब होकर दुःखी न होओ । इन्द्रियों के भोग में पड़कर गरीब , अमीर - दोनों कैद में पड़े रहते हैं । जो अपने को इन्द्रियों के भोग से बचाकर रखते हैं , तो बहुत भले हैं गरीब भी अपने को इन्द्रियों के भोग से बचाकर रखते हैं , तो वे भी अच्छे हैं । इसमें दोनों बराबर । इसलिए अपने को विषयों से बचाकर भजन कीजिए ।० 


इसी प्रवचन को शांति संदेश में प्रकाशित किया गया है उसे पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


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प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि How to avoid the world sea?  There is a similarity between our body and the world.  Knowing this, the world can be saved from the sea by crossing all the floors of the body through spiritual practice.   इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का संका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने  इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S77, (क) Sansaar Samudr se bachane ka Raasta ।। महर्षि मेंहीं अमृतवाणी ।। 16-04-1954 ई. S77, (क) Sansaar Samudr se bachane ka Raasta ।। महर्षि मेंहीं अमृतवाणी ।। 16-04-1954 ई. Reviewed by सत्संग ध्यान on 10/29/2020 Rating: 5

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