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S79, Eeshvar ko nahin maanane vaala bhool mein ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 24-04-1954ई.

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 79

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ७९ के बारे में। इसमें बताया गया है कि  ऋषि, मुनियों और संतों की वाणी में ईश्वर की स्थिति का मजबूती से विश्वास कराया गया है और बताया गया है कि उनकी भक्ति करने से सभी तरह के दुख दूर होते हैं। 

इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि-  किसी वस्तु की पहचान कैसे करते हैं? इंद्रियां कैसे काम करती है? ईश्वर तत्त्वरूप में क्या है? योग युक्ति की क्या आवश्यकता है?  ऋषि, मुनियों और संतों की वाणी में ईश्वर की स्थिति कैसी है? योग किसे कहते हैं? ईश्वर भक्ति कैसे करते हैं? जप ध्यान में गुरु की आवश्यकता ? परमात्मा की पहचान कैसे होती है? संत पलटू साहिब की वाणी में ईश्वर सर्वव्यापक कैसे है? स्वतंत्र होते हुए भी दुखी क्यों है?पुण्यात्मा को दुख सहना पड़ता है।  इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- परमात्मा है, परमात्मा है या नहीं, परमात्मा है, कौन परमात्मा है, क्या परमात्मा है, परमात्मा है कि नहीं, कहां परमात्मा है,  तू परमात्मा है प्यारे, परमात्मा क्या है, परमात्मा कौन है, परमात्मा का नाम, परमात्मा कहा है, परमात्मा का अर्थ, आत्मा और परमात्मा का मिलन कैसे होता है, परमात्मा की परिभाषा, परमात्मा का मूल स्वरूप, परमात्मा in हिन्दी, आत्मा परमात्मा का रहस्य, पूर्ण परमात्मा कौन है, आत्मा और परमात्मा का दर्शन, योग कैसे करें?  इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें। 

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 78 को पढ़ने के लिए   यहां दवाएं।

ईश्वर की स्थिति अवश्य है? पर प्रवचन करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज
ईश्वर अवश्य है पर चर्चा करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं

No god is wrong. ईश्वर को नहीं मानने वाला भूल में

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारे लोगो ! यदि किसी दर्शनीय वस्तु की पहचान करनी हो , तो उसको आप किससे पहचान करेंगे ? ..... इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----How do you identify an object? How do senses work? What is God? What is the need for a yoga device? What is the position of God in the speech of sages, sages and saints? What is yoga called? How do you do devotion to God? Need Guru in chanting meditation? How is God identified? How is God omnipresent in the voice of Sant Paltu Sahib? Why is he sad despite being independent? The saint has to suffer......आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए  पढ़ें-

७९. ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर-भक्ति 

ईश्वर की स्थिति अवश्य है। पर प्रवचन करते गुरुदेव महर्षि मेंही

प्यारे लोगो ! 

     यदि किसी दर्शनीय वस्तु की पहचान करनी हो , तो उसको आप किससे पहचान करेंगे ? बहुत ही ठीक है कि उसकी पहचान आप अपनी आँखों से करेंगे । यदि गंध विषय हो , तो नाक से और शब्द विषय हो तो कान से पहचान करेंगे । इसी तरह यदि आप ईश्वर की पहचान करना चाहें , तो किससे करेंगे ? इन्द्रिय , मन , बुद्धि आदि से नहीं ;  स्वयं अपने से कर सकेंगे आप अपनी आँखों से जो देखते हैं , वह अपने से नहीं देखते हैं , अपनी आँखों से देखते हैं । जैसे कोई चश्मे से देखते हैं , तो आँखों से नहीं , बल्कि आँखों के सहारे चश्मे से देखते हैं । इन्द्रियों को छोड़कर केवल अपने से क्या करना होगा , इसको सबलोग नहीं जानते । जो आत्मा के विषय में ग्रंथों में पढ़े हैं अथवा सत्संग किए हैं , वे इस बात को समझते होंगे । आप अपने से समझ सकते हैं कि किसी मृतक को देखकर ज्ञान करेंगे कि शरीर में जो रहनेवाला था , वह चला गया । शरीर मर गया । इस ज्ञान से आपको जानना चाहिए कि जितनी इन्द्रियाँ हैं , सबसे आप भिन्न हैं । आपके कारण ही इन्द्रियाँ सचेष्ट हैं । पढ़े - लिखे लोग जानते हैं कि स्वयं चेतन आत्मा अपने विषय को ग्रहण करती है । उसका निज विषय अपने स्वरूप की पहचान और परमात्मा की भी पहचान है । जैसे आँखों से सब रूपों को देखते हैं और अपनी आँखों को भी आँख से ही देखते हैं ।

      बचपन से सब कोई राम - राम , शिव - शिव आदि कोई - न - कोई ईश्वरवाचक शब्द को जानते हैं , ईश्वर में विश्वास करते हैं । किंतु ईश्वर तत्त्वरूप में क्या है , इसको बहुत कम लोग जानते हैं । मैं अपने तईं क्या हूँ ? यदि अपने से अपने को पहचानो , तो तब जो हो , वही तुम हो और उसी से परमात्मा का ग्रहण होता है । वह कहाँ है ? शरीर के बाहर या भीतर ? अपने भी अंदर और सर्वव्यापी होने के कारण परमात्मा भी अपने अंदर है । उसकी खोज अपने अंदर करो । परमात्मा से निकट और कुछ भी नहीं है । कबीर साहब कहते हैं परमातम गुरु निकट विराजें जाग जाग मन मेरे । 

     यह संसार मोह का शहर है । विविधता और अनेकत्व मोह के कारण देखते हैं । इस मोह निशा से जगने के लिए ऐसा भजन करें , जो योग - युक्त हो ; क्योंकि गोस्वामीजी ने लिखा है यहि जग जामिनी जागहिं जोगी । परमारथी प्रपंच वियोगी ।। 

     बिना योग - युक्ति के अपने अंदर खोज नहीं हो सकती , अपनी पहचान नहीं और न परमात्मा की पहचान हो सकती है । मनोवृत्ति या चेतनवृत्ति जो इन्द्रियों के घाटों में लगी है , इसका सिमटाव होना चाहिए । यदि केन्द्र में स्थापित हो , ऐसा भजन हो तो यह सुरत अंतर्मुखी हो जाती है । इस अंतर्मुखी वृत्ति से अंदर में प्रवेश होना होता है । जैसे - जैसे अंदर में प्रवेश होता है , सुरत इन्द्रियमण्डल से आगे बढ़ती है । इसी प्रकार बढ़ते - बढ़ते चेतन आत्मा कैवल्य दशा को प्राप्त करती है । तब अपने की और परमात्मा की पहचान होती है । 

     जो लोग कहते हैं कि परमात्मा नहीं है , वे भूल में हैं । वह वैसी ही बात है , जैसे कोई जन्मान्ध कहे कि रूप विषय नहीं है । किंतु आँखवाला रूप देखता है , वह कहता है , उसको आँख नहीं है । इसलिए वह कहता है कि रूप नहीं है । जिसको चेतन आत्मा का ज्ञान नहीं है , वह कहता है - शरीर मर गया , तो चेतन आत्मा भी नहीं रही । यह उनकी भूल है । हमारे ऋषियों , मुनियों , संतों ने बताया ईश्वर अवश्य है और तुम चेतन आत्मा भी अवश्य हो । यदि विश्वास नहीं होता है , तो अंदर प्रवेश करके देखो । योग की युक्ति जानो । ज्ञान - योग - युक्त ईश्वर की भक्ति करो । भक्ति में त्रिपुटी होती है । 

     भक्ति - भक्त - भगवन्त , सेवक - सेव्य - सेवा ; ये तीनों अवश्य होंगे । मिलाप होने से सेवा होती है । मिलन को ही योग कहते हैं । योग से जो लोग डरते हैं , उनको डरना नहीं चाहिए । चित्तवृत्ति के निरोध को योग कहते हैं । लोग शारीरिक कठोर कर्म - जैसे नेती , धौती , आसन आदि को योग समझते हैं । अपने शरीर को किसी सरल आसन से बैठाने का हिस्सक लगाओ । इस काम को हल चलानेवाला , लिखा - पढ़ी करनेवाला आदि सभी कोई कर सकते हैं । जिस बच्चे को कुछ समझने बूझने का ज्ञान है , उस बच्चे को बता दो , तो वह भी एक आसन से बैठ सकता है । 

     ईश्वर की स्तुति करो और उसका जप करो । सत्संग में जाओ । स्तुति करने के लिए सीखो । पहले जप करो और स्थूल मूर्ति का ध्यान करो । इसमें मजबूती आ जाय तो उसके बाद गुरु से आगे की क्रिया पूछ लो । सूक्ष्मरूप का ध्यान करना सीखो । रूपातीत ध्यान करना सीखो । इन्द्रियों से ऊपर उठकर कैवल्य दशा प्राप्त कर लोगे , तब अपने का और परमात्मा का साक्षात्कार होगा । ईश्वर अंश जीव अविनाशी । चेतन अमल सहज सुखरासी ।। 

     इसको प्रत्यक्ष पावेगा । सुगम तरीके से जप ध्यान करो । लोग कहते हैं कि बिना प्राणायाम के ध्यान नहीं होता , किंतु प्राणायाम किए बिना भी ध्यान होता है और प्राणायाम करके भी ध्यान होता है । उपनिषद में वर्णन है कि बिना प्राणायाम के भी ध्यान होता है । जो प्राणायाम के बाद ध्यान करते हैं , तो यह भी ठीक है । किंतु प्राणायाम कठिन है । प्राणायाम करनेवाले को कष्ट भी होता है । किसी बात को सोचते - विचारते हो तो उस समय श्वास - गति धीमी हो जाती है । जो मन को एकाग्र करने का अभ्यास ध्यान द्वारा करेगा , तो उसकी भी श्वास - गति धीमी पड़ जाएगी । जप - ध्यान से अंतर्मुख हो जाओगे । जप - ध्यान करने के लिए अंदाजी नहीं , किसी जानकार से जानकर करो ईश्वर का ध्यान कोई कठिन काम नहीं । थोड़ा - थोड़ा करते - करते अभ्यास हो जाने से उसमें अभ्यस्त हो जाता है । फिर सुलभ और सुखदायी हो जाता है , किंतु किसी काम में अभ्यस्त उसका अभ्यास करते - करते ही कोई होता है । मोटे - से - मोटा काम करने के लिए अभ्यास की जरूरत होती है । उसी तरह ध्यान का भी अभ्यास धीरे - धीरे , करते - करते कोई अभ्यस्त होता है । 

     जैसे दूध से घी निकाल लेने पर ही घी का निज काम होता है , उसी तरह शरीर से चेतन आत्मा के अलग होने पर ही चेतन आत्मा का निज काम होगा । दूध में घी है , किंतु दूध से पूड़ियाँ , मिठाइयाँ नहीं बनतीं । उसी प्रकार शरीर में चेतन आत्मा है , किंतु ईश्वर की पहचान नहीं होती । इन्द्रियों और शरीरों से चेतन आत्मा को अलग करने पर ही परमात्मा की पहचान होती है । यही बात सभी संतों ने कही है । ' एहि तें मैं हरि ज्ञान गँवायो । ' गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी अपने अंदर खोजने के लिए कहा । 

     गुरु नानकदेवजी ने कहा काहे रे वन खोजन जाइ । सरब निवासी सदा अलेपा, तोही संग समाई ।। 

     बाहर की खोज इन्द्रियों के द्वारा होगी । अंदर में चलने से इन्द्रियों से छूटोगे । इसलिए अंदर में खोज करो । बैरागिन भूली आप में जल में खोजै राम ॥ जल में खोजै राम जाय के तीरथ छान । भरमै चारिउ खूट नहीं सुधि अपनी आने । फूल माहिं ज्यों बास काठ में अगिन छिपानी । खोदे बिनु नहिं मिलै अहै धरती में पानी । दूध महै घृत रहै छिपी मिंहदी में लाली । ऐसे पूरन ब्रह्म कहूँ तिल भरि नहिं खाली । पलटू सत्संग बीच में करि ले अपना काम । बैरागिन भूली आप में जल में खोजै राम ॥ 

     पलटू साहब ने कहा - जैसे फूल में सुगंध है , काठ में अग्नि है , धरती में पानी है , दूध में घृत है और मेंहदी में लाली है ; उसी तरह परमात्मा सबमें है । ईश्वर की खोज अपने अंदर करने के लिए सभी संतों ने कहा । किसी अच्छे से इसकी क्रिया सीखिए और कीजिए । मैं सरल - सरल क्रिया बतलाता हूँ । नेती , धौती , वस्ती , नौली आदि क्रियाएँ करने के लिए नहीं बतलाता हूँ । मध्य में रहो यानी न विशेष सोओ और न विशेष जागो । न विशेष खाओ और न विशेष भूखे रहो । अपने घर में रहो । सच्ची कमाई करके अपना गुजर करो । झूठ , चोरी , नशा , हिंसा और व्यभिचार से बचते रहो । ईश्वर का भजन करोगे , तो मनुष्य का जीवन सफल होगा । 

     आजकल हमलोग स्वतंत्र हैं । अपने प्रभु आप हो , पंचायत का राज्य है । जनता का राज्य है । राज्य सुखदायी होना चाहिए , किंतु सुख कहाँ है ? इसका कारण है कि हमलोग पाप बहुत करते हैं । झूठ बहुत बोलते हैं । यदि झूठ बोलना छोड़ दें , तो सुख - ही - सुख होगा । झूठ गया , तो घूस गया । और झूठ - फूस चला गया तो मुकदमेबाजी नहीं होगी । पंच पापों को करते रहने से तुम संसार में भले तो सब आदमी बनकर नहीं रह सकोगे । परमार्थ तो और कहाँ से होगा ? जनता अच्छी हो जाय , ठीक हो जाय ।

      पुण्य का फल सुख होता है , लेकिन इसमें पहले थोड़ा कष्ट होता है । इसको सहो । महात्मा गाँधीजी को अफ्रीका में इतना मारा कि उनका दाँत तोड़ दिया । उनसे मैला फेंकवाया । उन्होंने इन कष्टों को सहन किया । पीछे उन्हीं महात्मा गाँधी जी की इतनी इज्जत हुई कि कहा नहीं जाय । अपने देश की तो बात ही क्या दूसरे देश के लोगों ने भी इनकी बहुत इज्जत की । धनोपार्जन पाप करके भी होता है , किंतु परमार्थ पाप करने से नहीं हो सकता । इसलिए पाप मत करो सत्संग ध्यान करते रहो । संसार और परमार्थ - दोनों ठीक - ठीक चलेंगे ।० 


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 80 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि One who does not believe in God is mistaken.  The position of God has been firmly believed in the speech of sages, sages and saints and it is said that their devotion eliminates all kinds of suffering.  How to do yoga इत्यादि बातें।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S79, Eeshvar ko nahin maanane vaala bhool mein ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 24-04-1954ई. S79, Eeshvar ko nahin maanane vaala bhool mein ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 24-04-1954ई. Reviewed by सत्संग ध्यान on 10/30/2020 Rating: 5

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