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S86, Moh, Maaya se Chhutakaara kaise hoga ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 18-05-1954ई.

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 86

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ८६ के बारे में। इसमें बताया गया है कि  काम , क्रोध , लोभ , मोह आदि विकारों का दमन ' नेम , धरम , आचार , तप , ज्ञान , जोग , जप , दान ' आदि से होता है; परंतु इसका संपूर्ण नाश ईश्वर-प्राप्ति से ही संभव है।

इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि-  मन,  इंद्रिय और जीवात्मा के क्या काम है? मन और जीवात्मा में क्या अंतर है? सत् और असत् क्या है? ज्ञानी और साधारण लोग के मन में क्या अंतर है? मन कैसे मरता है? जीवात्मा को अपना ज्ञान क्यों नहीं होता है? हमारे दुख-सुख का क्या कारण है? क्या मिलने से सारी इच्छाएं पूरी हो जाती है? ईश्वर से कैसे मिला जाता है? ईश्वर को पाने में कितना समय लगता है? सत्संग करने से क्या होता है?   इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- मोह माया से मुक्ति शायरी, मोह माया से बचने के उपाय, मोह माया शायरी, मोह का त्याग कैसे करे, मोह का त्याग कैसे करें, मोह माया क्या है, मोह माया का अर्थ, मोह माया से छुटकारा कैसे मिले, मोह माया in हिंदी, मोह क्या है, मोह ममता, सब मोह माया है का मतलब, मोह माया से कैसे आज़ाद होते हैं, सब मोह माया है, मोह माया meaning in Hindi, मोह माया से मुक्ति कैसे पाए   इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 85 को पढ़ने के लिए   यहां दवाएं।

काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से छुटकारा कैसे होगा? पर चर्चा करते गुरुदेव
माया मोह से छुटकारा पर प्रवचन करते गुरुदेव

How to get rid of fascination. मोह माया से छुटकारा कैसे होगा

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारे लोगो ! आपलोगों को यह अच्छी तरह जानने में आता होगा कि शरीर से जो कुछ भी काम करते हैं , उसको काम करने के लिए लगानेवाला मन है । .....   इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----What is the work of mind, sense and spirit?  What is the difference between mind and spirit?  What is Sat and Asat?  What is the difference between the knowledgeable and ordinary people?  How does the mind die  Why does not the individual have his knowledge?  What is the reason for our suffering?  Does meeting all wishes come true?  How is it reconciled with God?  How long does it take to find God?  What happens with satsang?....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-

८६. मन - जीवात्मा में इतना मिलाप , जैसे दूध में घी करे तो हाथ , 

मोह माया से कैसे छुटकारा होता है?  इसे बताते हैं सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

प्यारे लोगो ! 

     आपलोगों को यह अच्छी तरह जानने में आता होगा कि शरीर से जो कुछ भी काम करते हैं , उसको काम करने के लिए लगानेवाला मन है । मन यदि किसी काम को करने के लिए प्रेरणा नहीं करें, तो हाथ, पैर , शरीर आदि कोई काम नहीं कर सकता । मन भीतर में रहता है और सब काम करता रहता है । एक बात और है कि मन ही सब कुछ नहीं है , मन के साथ आप भी हैं अर्थात् जीवात्मा रहता है । आप जीवात्मा हैं , भीतर में रहते हैं । मन के संग जीवात्मा नहीं रहे तो मन कुछ नहीं कर सकता , जैसे इन्द्रियों के साथ मन नहीं रहे तो इन्द्रियाँ कुछ कर नहीं सकतीं । जैसे बाहर में इन्द्रियाँ हैं , वैसे ही भीतर में इन्द्रिय मन है,  कोई कहता है - मेरा मन है । तो वह वैसा ही हुआ जैसे आप कहते हैं - मेरा घर है, मेरा शरीर है । घर उसका है , जो उसमें रहता है ; वह घर नहीं है; उसी तरह जो कहता है - मेरा पैर , तो वह पैर नहीं है , पैर उसका है । उसी तरह ' मेरा मन ' कहनेवाला भी मन नहीं है , वह मन के संग में वहाँ रहता है, मन का काम बाहर - भीतर होता है , किंतु अपना काम क्या है - कुछ मालूम नहीं होता ।

      मन और जीवात्मा में इतना मिलाप है , जैसे दूध में घी ।दूध और घी दोनों एक साथ रहते हैं और दोनों को अलग - अलग भी किया जाता है । जो काम दूध से होता है , वह काम घी से नहीं और जो काम घी से हो सकता है , वह दूध से नहीं होता । उसी तरह मन से जो काम हो सकता है , वह जीवात्मा से नहीं और जो जीवात्मा से हो सकता है , वह मन से नहीं । जीवात्मा सूक्ष्म है ।  

     संसार में दो तरह के पदार्थ हैं - एक सत् और दूसरा असत् । जो विनाश नहीं हो , बदले नहीं , वह सत् है । जो विनाश हो , बदलता रहे , वह असत् है । शरीर कुछ दिनों तक रहता है ; किंतु यह बच्चे से जवान , फिर बूढ़ा हो जाता है । कुछ काल शरीर ठहरता है , फिर नहीं रहता है । मन भी एक तरह नहीं रहता । यह सभी जानते हैं । बच्चे में मन कैसा , जवान में कैसा और बूढ़े में कैसा ? कभी मन एक तरह का , फिर दूसरी तरह का । जैसे देह में अदल बदल होता है , वैसे मन में भी अदल - बदल होता है । शरीर जैसे कमजोर और बलवान होता है , उसी तरह मन भी कमजोर और बलवान होता है । जो ज्ञानी है , उनका मन वैसा नहीं बदलता , जैसे साधारण जन का बदलता है । ज्ञानी लोग समझाते हैं कि झूठ , चोरी , नशा , हिंसा और व्यभिचार नहीं करना चाहिए , तो नहीं करते हैं । किंतु साधारण लोग इन बातों को सोच - समझकर भी संसार की ओर झूक जाते हैं । भोग की ओर मन हो जाता है और वे पाप में गिर जाते हैं । इस प्रकार मन एक तरह नहीं रहता ।

      दूध से घी निकाला जाता है , तो दूध का दाम कम हो जाता है । जितनी देर में बिना घी का दूध खराब होता है , उतनी जल्दी दूध के साथ घी रहने से नहीं । उसी तरह जब जीवात्मा मन से निकल जाता है , तब मन मर जाता है ; किंतु यह ऊँची बात है

      इसी प्रकार मन भी असत् है , किंतु जीवात्मा सत् है । शरीर और मन बलवान और कमजोर होते हैं , किंतु जीवात्मा एक तरह रहता है । अपने को जीवात्मा समझो । जबतक कोई अपने को मन समझता है या शरीर को ही अपना कहकर जानता है , तबतक शरीर और संसार का जो मेल होता है , वही ज्ञान होता है अर्थात् वह शरीर और संसार को ही जानता है । जैसे स्वप्न में शरीर का ज्ञान नहीं रहता , तो संसार का भी ज्ञान नहीं रहता , संसार का भी सरोकार नहीं मालूम होता है । उसी तरह जबतक जीवात्मा मन के साथ है , तबतक इसको अपने का ज्ञान नहीं होता है और जो इससे काम होना चाहिए , वह भी नहीं हो पाता है । मन और इन्द्रियों से जानने योग्य संसार है और केवल जीवात्मा से जानने योग्य परमात्मा है। जबतक जीव संसार के पदार्थों को एकत्रित करने में रहता है , तबतक दुःखी - सुखी होता रहता है शान्ति नहीं मिलती है । 

     संत लोग कहते हैं - परमात्मा को पहचानोगे तो तुम दुःख - सुख से छूट जाओगे । वह वैसा सुख है , जो मन इन्द्रियों के भोगों से ऊपर है । उसके बाद दुःख नहीं होता उसको पाकर और कुछ पाना नहीं रहता उसके पाने से संसार बंधन से छूटकर मुक्ति पाता है , जन्म - मरण से छूट जाता है । इसी का उपदेश संतों ने दिया । उन्होंने कहा , यदि तुम उसे नहीं प्राप्त करते हो , तो तुम काम , क्रोध , लोभ , मोह आदि विकारों में फंसकर दुःख उठाते रहोगे । इसके लिए ' नेम , धरम , आचार , तप , ज्ञान , जोग , जप , दान ' आदि कितना ही करो ; किंतु ये रोग नहीं छूटते । इसका मतलब यह नहीं कि नेम , धरम , आचार , तप , ज्ञान , जोग , जप , दान आदि नहीं करो । यह सब काम तो समय - समय पर करना ही पड़ता है । किंतु यह मत समझो कि इन्हीं से सब विकार दूर होंगे । 

     इसके लिए ईश्वर की भक्ति करो । उसको पहचानो । पहले अपने को पहचानो अपने को पहचानने के लिए नयन से देखते रहो अर्थात् दृष्टि - साधन करो । इसके पहले मूर्ति - ध्यान करो । इसके भी पहले जप करो । जप करने से मूर्ति - ध्यान करने में बल मिलेगा । मूर्ति ध्यान करने से दृष्टि - साधन में सहायता मिलेगी । जिसकी दृष्टि - साधन क्रिया ठीक - ठीक होती है , उसको अपनी स्थूल देह का भी ज्ञान नहीं रहता है वह जानता है कि मैं कुछ हूँ और कुछ पा रहा हूँ । इतना ही नहीं है , और भी है । इसके बाद शब्द को पकड़ना , जो ईश्वर की ध्वनि है । जो इस शब्द को पकड़ता है , उसके बचे और सूक्ष्म , कारण , महाकारण आदि सब शरीर छूट जाएँगे । वह अकेला हो जाएगा और ईश्वर को प्राप्त कर लेगा । इतना मार्ग तय करना है । इसमें बहुत समय लगता है । जो विशेष करते हैं , उनके लिए जल्दी रास्ता तय होता है और जो आहिस्ते - आहिस्ते करते हैं , उनको देर में । इसलिए सब कोई नित्य नियमित रूप से ध्यान अभ्यास कीजिए । धीर - धीरे , होते - होते एक - न - एक दिन उस मंजिल को तय करके अवश्य परम प्रभु परमात्मा को प्राप्त करेंगे । सत्संग से विचार संभलता और ध्यान के लिए प्रेरणा मिलती है । सत्संग नहीं करने से जो नहीं करने योग्य कर्म है , वह भी करने लगता है । इसलिए प्रतिदिन सत्संग अवश्य करना चाहिए ।०



इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 87 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि kaam , krodh , lobh , moh aadi vikaaron ka daman  nem , dharam , aachaar , tap , gyaan , jog , jap , daan  aadi se hota hai; parantu isaka sampoorn naash eeshvar-praapti se hota hai. इत्यादि बातें।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S86, Moh, Maaya se Chhutakaara kaise hoga ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 18-05-1954ई. S86, Moh, Maaya se Chhutakaara kaise hoga ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 18-05-1954ई. Reviewed by सत्संग ध्यान on 11/03/2020 Rating: 5

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