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S89, Marane ke baad kya hota hai ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 06-06-1954ई. पूर्णियाँ

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 89

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ८९ के बारे में। इसमें बताया गया है कि  मरने के बाद क्या होता है? धर्म शास्त्रों में और पौराणिक आख्यान में इस संबंध में क्या कहा गया है? विचार बुद्धि क्या कहती है? इन बातों को विचार कर क्या करना चाहिए?

इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि-  मरने के बाद कहां जाना होता है? वह स्थान कैसा है? उसे क्या कहते हैं? राजा ययाति का कैसा प्रभाव था? राजा ययाति क्यों गिर गए? पुण्य का नाश कैसे होता है? कर्मनाशा नदी कैसे उत्पन्न हुई? भगवान विष्णु के पार्षद जय विजय को मृत्यु लोक क्यों आना पड़ा? गोलोक में श्री राधा और श्रीदामाजी में क्या हुआ? ईश्वर-भक्तों के शरीर छोड़ने पर क्या होता है? दृष्टियोग साधना क्यों करते हैं? आपको नुकसान पहुंचाने वाले के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?  इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- मरने के बाद कहां जाता है, मरने के बाद आत्मा कितने दिन घर में रहती है, मरने के बाद आत्मा कब तक भटकती है, इंसान मरने के बाद कहां जाता है, सोने के बाद आत्मा कहां जाती है, मरने के बाद क्या होता है, अकाल मृत्यु के बाद क्या होता है, मरने के बाद की ज़िन्दगी, शरीर छोड़ने के बाद आत्मा कहां जाती है, मृत्यु के बाद, क्या मृत्यु के बाद अपने प्रियजन से बात हो सकती है, मरने के बाद आत्मा का रहस्य,  इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 88 को पढ़ने के लिए   यहां दवाएं।


मरने के बाद क्या होता है इस पर चर्चा करते हुए गुरु महाराज
मरने के बाद कहां जाते हैं पर चर्चा करते गुरुदेव

What happens after death? मरने के बाद कहां जाना होता है?

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! जहाँ कहीं कभी नहीं गए हो , राजाज्ञा हो कि वहाँ जाना पड़ेगा ; किसी प्रकार की सहायता नहीं..... इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----Where do you go after death? How is that place what is he called? What was the impact of King Yayati? Why did King Yayati fall? How does virtue perish? How did the river Karmansha originate? Why did Lord Vishnu's councilor Jai Vijay have to come to death? What happened in Shri Radha and Sridamaji in Goloka? What happens when God-devotees leave the body? Why do visualizations work? How should you treat a loser?....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-

८९. संसार में पनडुब्बी चिड़िया की तरह रहो 

मरने के बाद क्या होता है की जानकारी देते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! 

      जहाँ कहीं कभी नहीं गए हो , राजाज्ञा हो कि वहाँ जाना पड़ेगा ; किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलेगी , उस स्थान पर जाना होगा , तब तुम्हारे मन में कैसा दुःख होगा ! नहीं मालूम कि कहाँ ले जाया जाएगा , वह स्थान कैसा है , दुःख - सुख वहाँ के कैसे हैं ? परन्तु जाना अवश्य होगा । बिना गए कल्याण नहीं होगा । जिस क्षण के लिए आज्ञा हो जाएगी उस क्षण से कुछ आगा - पीछा नहीं होगा ; कुछ मुरौवत ( लिहाज ) नहीं होगा । चलना है रहना नहीं , चलना बिस्वावीस । सहजो तनिक सुहाग पै , कहा गुथावै सीस ।। 

      संत लोग कहते हैं कि इस आज्ञा में अदल बदल नहीं हो सकता । किंतु तुम यदि कोशिश करो तो जिस स्थान में तुम जाओगे , उसको जीवन में देख लोगे । यदि पूरी कोशिश करो , तो उस स्थान में भी जा सकोगे , जहाँ सदा सुख - ही - सुख है , वहाँ से लौटना नहीं होता । सब लोगों के घर में कोई - न - कोई शरीर छोड़ते हैं ऐसा कोई घर नहीं , जिस घर में किसी ने शरीर न छोड़ा हो । जो जाता है , वह जानता नहीं कि कहाँ जाना होगा ; किंतु जाना होता है । सुख - दुःख मिला हुआ भी स्थान है और कहीं दुःख - ही - दुःख का भी स्थान है , ये ही स्वर्ग - बैकुण्ठादि स्थान हैं । वहाँ का भोग समाप्त होने से या किसी कारण के उपस्थित हो जाने से बहुत शीघ्र ही इस मृत्युलोक के किसी स्थान पर जन्म हो जाएगा ।

      राजा ययाति बड़े प्रभावशाली और पुण्यात्मा थे किसी कारण इन्द्र लुके ( छिपे ) हुए थे । इन्द्रासन खाली था , तो विचार हुआ कि मृत्युलोक में वैसा कोई है , जिसे इस आसन पर बैठाया जाय , जो इन्द्र जैसा ठीक - ठीक प्रबंध कर सके । ययाति को ही चुना गया । ययाति गए और उस आसन पर विराजे । यदि ययाति ठीक तरह से रह सकते , तो जबतक इन्द्र नहीं आते , तबतक वहाँ रहते ; किंतु ययाति को घमण्ड हो गया । वहाँ लोगों को वे अपमानित करते थे । सभी ने विचारा कि इनको नीचे गिराना चाहिए , इसलिए उनके सामने उनके पुण्य की चर्चा करो । वे अपने मुख से पुण्य की चर्चा करेंगे और नीचे गिर जाएँगे । ऐसा ही हुआ , घमण्ड में आकर अपने पुण्य का वर्णन करने लग गए और वहाँ से नीचे गिरा दिए गए । ' सुर पुर ते जनु खसेउ ययाती । ' उनके गिरते समय मुँह से बहुत लार निकली , वही कर्मनाशा नदी है । उनके कुल का कोई तपस्या कर रहा था । उसने समझा कि मेरे कुल के श्रेष्ठ आदमी नीचे गिर रहे हैं । इसलिए उसने कहा कि ठहर जाइए , तो वे वहीं ठहर गए ।

      भगवान विष्णु के पार्षद जय - विजय ने सनक , सनंदन आदि को द्वार पर रोक दिया , जिस कारण वे क्रोधित हुए और शाप दिया – मृत्युलोक में जाकर राक्षस होकर जन्म लो । वे बहुत डरे और विनती की , तब उन सनक , सनंदन आदि ऋषियों ने कहा ' भगवान से प्रार्थना करना , वे तुम्हारा उद्धार करेंगे । ' भगवान के पास वे बहुत गिड़गिड़ाए । भगवान ने कहा - ' मैं तुम्हारे लिए अवतार लूँगा और अपने हथियार से उद्धार करूँगा । चाहे बड़ी अवधि ही क्यों न हो , किंतु उनके समाप्त होने पर फिर यहाँ जन्म लेना पड़ेगा ।

       गोलोक में राधाजी ने कृष्ण के सखा श्रीदामा को शाप दिया । श्रीदामाजी ने भी राधाजी को शाप दिया । श्रीदामाजी राक्षस हो गए और राधाजी को इस पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा । श्रीदामाजी राक्षस हुए और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें मारा । इस प्रकार कितने इतिहास हैं । ऊँचे - से - ऊँचे लोक से भी गिरना होता है । 

     स्वर्गादि जो पितृलोक हैं , वहाँ के भोग समाप्त होने पर फिर यहाँ जन्म लेना पड़ता है । इस प्रकार कहाँ जाना होगा ठिकाना नहीं । निरापद तो कोई भी लोक नहीं संतों ने कहा निरापद स्थान भी है , जहाँ जाकर कोई आपदा नहीं रहती । 

     संतों की आज्ञा के अनुकूल यदि तुम बरतो ( आचरण करो ) यानी भक्ति करना आरंभ करो और पूरी भक्ति नहीं कर सको , तो शरीर छूटने पर फिर तुम स्वर्ग स्थान को पाओगे और वहाँ से लौट आकर फिर ईश्वर का भजन करोगे और उस निरापद पद को भी प्राप्त कर लोगे । किंतु तुम उसका ख्याल नहीं करते और निडर होकर बैठे हुए हो । कब तुम्हें काल की ठोकर लगेगी और तुम चले जाओगे , ठिकाना नहीं । इसलिए चेतो और ईश्वर - भजन करो । यह शरीर पानी का बुदबुदा है , कब फूट जाएगा , ठिकाना नहीं । नहिं बालक नहिं यौवने , नहिं बिरधी कछु बंध । वह औसर नहिं जानिये , जब आय पड़े जम फंद ।। 

      बालकपन में मरोगे कि जवानी में मरोगे कि बूढ़े होकर मरोगे , ठिकाना नहीं । यम के फन्दे में कब पड़ोगे , तुम नहीं जानते । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा प्रयाण काले मनसा चलेन भक्त्यायुक्तो योगबलेन चैव । भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्सतं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ।। 

      अर्थात् वह भक्तियुक्त पुरुष अंतकाल में भी योगबल से भृकुटी के मध्य में प्राण को अच्छी तरह स्थापित करके , फिर निश्छल मन से स्मरण करता हुआ उस दिव्य परमपुरुष परमात्मा को ही प्राप्त होता है ।

      जो कोई इसके दर्शन का हिस्सक ( आदत ) लगा लेता है और मरने के समय उसी ओर मन लगाता है, तो उसी परम पुरुष को प्राप्त करता है । ' उस ' शब्द यहाँ पर अणु - से - अणु तमस से परे के लिए कहा गया है । यह बिल्कुल निरापद तो नहीं है ; किंतु इसको जो प्राप्त करके शरीर छोड़ेगा , तब जो फिर इस संसार में आएगा , तो इस संस्कार से प्रेरित होकर फिर भजन करेगा और निरापद स्थान को प्राप्त कर लेगा । इसलिए संसार में पनडुब्बी चिड़िया की तरह रहो । जैसे जल महि कमलु निरालमु मुरगाई नैसाणै । सुरति सबदि भवसागरु तरिऔनानक नामुबखाणै ।।

      हमलोगों का दृष्टियोग - साधन अणोरणीयान् को पकड़ने के लिए है । अनहद नाद का ध्यान सुरत - शब्द - योग का अभ्यास करना है । इसके आगे अनाहत नाद है । अनाहत नाद से ही ईश्वर की पहचान होगी , परंतु पहले उस अणोरणीयान् का ध्यान किए बिना अनहद नाद को पकड़ना नहीं हो सकता । इसलिए पहले विन्दु को पकड़ो फिर अनहद शब्द को सुनो । पापी हृदय में भजन नहीं हो सकता ; झूठ , चोरी , नशा , हिंसा और व्यभिचार आदि पाप बुद्धि से भजन नहीं कर सकते ।  तुलसी दया न छोड़िये , जब लगि घट में प्राण ।  

     हमारा किसी ने अपकार किया है , हम उसका अपकार नहीं करें । जिसने अपकर्म किया - पाप किया , वह दया का पात्र होगा , उसपर दया करो , उसका अपकार मत करो । अभी कुछ दिन जियोगे , किंतु जीव का जीवन अनंत है । इसलिए अनंत जीवन के लिए पाप - कर्म क्यों करो , जो दुःख - ही दुःख भोगते रहो । इसलिए पाप - कर्म छोड़ो और भजन करो ।० 


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 90 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि What happens after death?  What has been said in this regard in the scriptures and mythological stories?  What does thought intelligence say?  What should be done after considering these things? इत्यादि बातें।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S89, Marane ke baad kya hota hai ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 06-06-1954ई. पूर्णियाँ S89, Marane ke baad kya hota hai ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। 06-06-1954ई. पूर्णियाँ Reviewed by सत्संग ध्यान on 11/05/2020 Rating: 5

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