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S111, संसार में खीरा की तरह रहो ।। Mrtyu Mein Kya Hota hai ।। २६.५.१६५५ ई० अपराह

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 111

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 111 के बारे में। इसमें बताया गया है कि  जिस तरह स्थूल शरीर से जीवात्मा निकल जाता है , तो स्थूल शरीर मर जाता है ; उसी तरह सूक्ष्म , कारण , महाकारण शरीर से जीवात्मा के निकल जाने पर इन शरीरों की मृत्यु होती है । 

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 110 को पढ़ने के लिए   यहां दवाएं। 

मृत्यु होने पर क्या होता है इस पर चर्चा करते सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज और भक्तजन

मृत्यु में क्या होता है? What happens in death?

 इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि- नाम का घर कहां है? कंज-कमल किसे कहते हैं? नीलागिरी क्या है? संसार से क्या मतलब है? मृत्यु में क्या होता है? शरीर कितने हैं? सभी शरीरों से मृत्यु कैसे होती है?  संसार में कैसे रहना चाहिए? स्वर्ग लोक, शिव लोक, गोलोक में कौन सा दुख है? देवताओं और परमात्मा का दर्शन कहां होता है? क्या झूठ चोरी नशा हिंसा और व्यभिचार करते हुए ईश्वर को पा सकते हैं? नशा और हिंसा क्यों नहीं करना चाहिए? हिंसा कितने तरह का होता है? किस पाप को छोड़ देने से सभी पार्क छूटते हैं? इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि-परमात्मा का दर्शन कैसे हो? पूर्ण परमात्मा का नाम क्या है? क्या आत्मा ही परमात्मा है? परब्रह्म भगवान कौन है? इंसान नशा क्यों करता है? नशे की आदत से बचने के लिए हम क्या करेंगे? नशा कितने प्रकार की होती है? नशा करने वाले की पहचान, नशा करने वाला व्यक्ति को क्या कहते हैं, नशा करने के बाद क्या होता है, नशा करने से शरीर में क्या होता है, नशा करने के कारण, इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।

१११. संसार में खीरा की तरह रहो


Sadharan mitti Mein Kya Hota hai is par charcha karte sadguru Maharshi Mehi aur bhakt Ganj

प्यारे लोगो ! 

     जहाँ से अनहद सुनने का आरंभ होता है , वह नाम का घर है कंज - कमल । कंजाकमल = ध्यान का आरंभ जहाँ से होता है । लीलागिरि=कौतुक का पहाड़ । शब्द के ध्यान में जो ज्ञान बढ़ा , वह है नाम का प्रकाश अथवा जिस प्रकाश से नाम प्रकट होता है , वह 'दीपक बारा नाम का ' है । बाती दीन्ही टार = सुरत को आगे बढ़ाया । तल्ली ताल तरंग बखानी = तल पर शब्दों की तरंगें उठती हैं । तल्ली=तल । 

     इस सत्संग में कहा जाता है कि अपना उद्धार करो । इस संसार में पूर्णरूप से कोई सुखी नहीं होता है । यहाँ केवल कहलाने के लिए सुख है । दरअसल यह संसार सुख का स्थान नहीं है । इससे पार हो जाना चाहिए । जबतक आप देह में रहिएगा , तबतक संसार में रहना होगा । संसार का अर्थ केवल स्थूल जगत नहीं । जहाँ तक शरीर है , वहाँ तक संसार है । इस स्थूल शरीर के भीतर सूक्ष्म शरीर है । 

     साधारण मृत्यु में केवल स्थूल शरीर चला जाता है - मर जाता है । जीवात्मा मरता नहीं है सूक्ष्म , कारण , महाकारण शरीर नहीं मरते हैं । इसके साथ जीवात्मा रहता है । भजन करने से ही इन बचे शरीरों को मार सकते हैं । जिस तरह स्थूल शरीर से जीवात्मा निकल जाता है , तो स्थूल शरीर मर जाता है ; उसी तरह सूक्ष्म , कारण , महाकारण शरीर से जीवात्मा के निकल जाने पर इन शरीरों की मृत्यु होती है । 

     किसी भी लोक में रहिए , किसी भी शरीर में रहिए , स्वर्गादि लोक में रहिए , ब्रह्म के लोक में रहिए ; सभी जगह कष्ट - ही कष्ट है । शिवलोक में शिव को भी कष्ट होता है । सभी लोकों में झगड़ा - तकरार , शापा - शापी होते हैं । गोलोक में भी ऐसा होता है । गर्ग - संहिता पढ़कर देखिए । कितनाहूँ सुन्दर - से - सुन्दर देहवाला हो , कितनाहूँ ऊँचा लोक हो , सबमें दुःख है । इसलिए अपने उद्धार के लिए सब शरीरों को छोड़ना होगा । जैसे कोई घर से बाहर जाना चाहे तो पहले घर - ही - घर चलना पड़ता है । उसी तरह शरीरों से निकलने के लिए शरीर - ही - शरीर निकलना होगा और सब शरीरों से निकलने पर परमात्मा की प्राप्ति होती है । 

     अभी आपलोगों ने तुलसी साहब का पद ‘ जीव का निबेरा ' सुना । उसमें अन्तर्मार्ग का वर्णन है । संसार में जो कुछ देखने में आता है , वह अपने अंदर भी देख सकते हैं । सब शरीरों को छोड़ने का अपने अंदर में ही यत्न होना चाहिए । परमात्मा के दर्शन का यत्न अपने शरीर में ही होना चाहिए । बाहर में जो दर्शन होता है , वह माया का दर्शन होता है । गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है- 

गो गोचर जहँ लगि मन जाई सो सब माया जानहु भाई ।।

     अपने अन्दर जो चलता है , तो उसको देव - रूपों का दर्शन होता है और अन्त में परमात्मा का भी दर्शन होता है । इसका यत्न है - अपने घर में रहो , सत्संग भजन करो और यह ख्याल रखो कि यह शरीर छोड़ना होगा । घर बढ़िया बढ़िया हो , उसमें अपने आराम किया हो , तो उस सोने के महल में भी कोई नहीं रखता , जब इस शरीर से प्राण निकल जाता है । गुरु नानकदेवजी ने कहा है- 

एक घड़ी कोऊ नहिं राखत , घरतें देत निकार ।

     इसमें आसक्त होने से ठीक नहीं । कोई भी संसार में सदा नहीं रह सकता । संत चरणदासजी की शिष्या सहजोबाई ने बड़ा अच्छा कहा है-

  चलना है रहना नहीं , चलना विश्वाबीस । सहजो तनिक सुहाग पर , कहा गुथावै शीश ॥

     कोई कितनाहूँ प्यारा हो , सबको छोड़कर जाना होगा । इसलिए संसार में खीरा बनकर रहो । खीरा ऊपर से एक और भीतर से फटा हुआ होता है । इस तरह संसार में रहने से कल्याण होगा । न तो बाल - बच्चों को छोड़ो , न इनमें फँसो । फँसाव को छोड़कर अपने अन्दर साधन - भजन करो । जप करो और ध्यान करो । इसके लिए चाल चलन अच्छी बनाओ । 

     झूठ एकदम छोड़ दो । जो झूठ बोलेगा , उसी से सब पाप होगा । जो झूठ छोड़ देगा , उससे कोई पाप नहीं होगाचोरी मत करो । व्यभिचार मत करो । नशा मत खाओ , पिओ । नशा खाने से मस्तिष्क ठीक नहीं रहता । भाँग , तम्बाकू , गाँजा सबको छोड़ दो । हिंसा मत करो जीवों को दुःख मत दो । मत्स्य मांस मत खाओ । मत्स्य - मांस खाने से जलचर , थलचर , नभचर के जो स्वभाव हैं - तासीर हैं , उस स्वभाव को , खानेवाले अपने अन्दर लेते हैं । अपने शरीर पर विचारिए और उन जानवरों के शरीर पर विचारिए ।

     मनुष्य का शरीर तो देवताओं के शरीर से उत्तम है । फिर इतने पवित्र शरीर में अपवित्र मांस को देना ठीक नहीं । 

     हिंसा दो तरह की होती हैं - एक वार्य और दूसरी अनिवार्य । वार्य हिंसा बच सकते हैं । जिह्वा स्वाद के लिए नाहक जीवों को मारना वार्य हिंसा है । इससे बचना चाहिए । कृषि कर्म में जो हिंसा होती है , वह अनिवार्य है । अनिवार्य हिंसा से कोई बच नहीं सकता वार्य हिंसा से बचो । मांस - मछली नहीं खाने से सात्त्विक मन होगा । तब भजन बनेगा । ∆

 ( यह प्रवचन खगड़िया जिला के श्रीसंतमत सत्संग मंदिर रामगंज में दिनांक २६.५.१६५५ ई० को  अपराह्नकालीन सत्संग में हुआ था । )


नोट-  इस प्रवचन में निम्नलिखित रंगानुसार और विषयानुसार ही  प्रवचन के लेख को रंगा गया या सजाया गया है। जैसे-  हेडलाइन की चर्चा,   सत्संग,   ध्यान,   सद्गगुरु  ईश्वर,   अध्यात्मिक विचार   एवं   अन्य विचार   । 


इसी प्रवचन को "महर्षि मेंही सत्संग सुधा सागर"  में प्रकाशित रूप में पढ़ें-

सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज का प्रवचन नंबर 111


इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 112 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि जिस तरह स्थूल शरीर से जीवात्मा निकल जाता है , तो स्थूल शरीर मर जाता है ; उसी तरह सूक्ष्म , कारण , महाकारण शरीर से जीवात्मा के निकल जाने पर इन शरीरों की मृत्यु होती है ।  इत्यादि बातें।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है। जय गुरु महाराज। 



सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-...
अगर आप "महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर"' पुस्तक से महान संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस  जी महाराज के  अन्य प्रवचनों के बारे में जानना चाहते हैं या इस पुस्तक के बारे में विशेष रूप से जानना चाहते हैं तो नििम्नलिखि लिंक पर जाकर पढ़िए -

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S111, संसार में खीरा की तरह रहो ।। Mrtyu Mein Kya Hota hai ।। २६.५.१६५५ ई० अपराह S111,  संसार में खीरा की तरह रहो ।।  Mrtyu Mein Kya Hota hai  ।। २६.५.१६५५ ई० अपराह Reviewed by सत्संग ध्यान on 5/29/2021 Rating: 5

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