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S85, (ख) संतमत में नामजप व नादानुसंधान की क्रिया क्या है ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। ११.५.१९५४ ई .

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 85

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ८५ के बारे में। इसमें बताया गया है कि  संतमत में नामजप व नादानुसंधान की क्रिया क्या है। वर्णनात्मक और ध्वन्यात्मक नाम भजन क्या है? ध्वन्यात्मक नाम भजन कैसे करते हैं? संतवाणी की गहराई क्या है? तुरिया अवस्था में कौन रहता है? नाम जपने का महत्व क्या है? सदा आनंदित कौन रहता है?

इसी प्रवचन को लेख रूप में पढ़ने के लिए।  यहां दबाएं।


संतमत में ध्वन्यात्मक नाम भजन की महिमा पर चर्चा करने वाला शांति संदेश
नाम भजन के चर्चा वाला शांति संदेश

संतमत में नामजप व नादानुसंधान की क्रिया क्या है ?

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! संतमत के सत्संग से ईश्वर - भक्ति का प्रचार होता है । यही एक विषय इस सत्संग का है । ..... इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----सत्संग में किस विषय पर चर्चा होती है? दूसरे जीवो की अपेक्षा मनुष्य में क्या विशेषता है? मनुष्य शरीर में कितने द्वार हैं? मनुष्य शरीर के द्वार और खिड़कियां क्या है? साधकों को विषय भोग कैसे करना चाहिए? विषय भोगों से अलग रहने का मतलब क्या है? ब्रह्म-पीयूष किसे मिलता है? नाम, नामी और वर्णनात्मक शब्द किसे कहते हैं? वर्णनात्मक और ध्वन्यात्मक शब्द का क्या महत्व है? ध्वन्यात्मक शब्द कैसे सुनते हैं? कबीर वाणी में पूरब, पश्चिम क्या है? संतवाणी की गहराई क्या है? तुरिया अवस्था में कौन रहता है? नाम जपने का महत्व क्या है? सदा आनंदित कौन रहता है? पुस्तकालय और सत्संगालय का महत्व क्या है?.....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए निम्नलिखित चित्र में पढ़ें-

ध्वन्यात्मक नाम की चर्चा वाला प्रवचन चित्र एक

ध्वन्यात्मक आत्मक नाम की चर्चा वाला प्रवचन चित्र दो

ध्वन्यात्मक नाम की चर्चा वाला प्रवचन चित्र 3

ध्वन्यात्मक नाम की व्याख्या वाला प्रवचन चित्र 4



इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 86 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि मनुष्य शरीर और नाम भजन । दूसरे किसी प्रकार का जीव नाम भजन करके मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है इसलिए मनुष्य शरीर को देव दुर्लभ कहा जाता है; इसका ज्ञान सत्संग से होता है, इत्यादि बातें।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
अगर आप "महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर"' पुस्तक से महान संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस  जी महाराज के  अन्य प्रवचनों के बारे में जानना चाहते हैं या इस पुस्तक के बारे में विशेष रूप से जानना चाहते हैं तो   यहां दबाएं।

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S85, (ख) संतमत में नामजप व नादानुसंधान की क्रिया क्या है ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। ११.५.१९५४ ई . S85, (ख)  संतमत में नामजप व नादानुसंधान की क्रिया क्या है ।।  महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। ११.५.१९५४ ई . Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/19/2018 Rating: 5

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