महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 75
प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराजके भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ७५ को । इसमें निर्गुण स्वरूप परमात्मा ने पहले नाद उत्पन्न किया, नाद से बिंदु और बिंदु से सारी सृष्टि हुई। ऐसा बताया गया है।
इसके साथ ही इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग-सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष ) में बताया गया है कि- उत्तम संस्कृति कैसा होता है? संतलोग के करते हैं? व्यक्ति का सुधार कैसे होगा? सत्संग करने से क्या होता है? रामायण का उपदेश, प्रातः काल क्या करें, ब्रह्मचर्य पालन के फायदा, बाह्य पूजा का अर्थ, मन की एकाग्रता के लिए पूजा-पाठ, जप-ध्यान है। आध्यात्मिक शिक्षा का महत्व, इत्यादि बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- प्रणाम का अर्थ, प्रणाम किसे कहते हैं, प्रणाम meaning, प्रणाम का महत्व, प्रणाम का पर्यायवाची, प्रणाम का शाब्दिक अर्थ, प्रणाम का जवाब, प्रणाम का उत्तर, प्रणाम in हिन्दी, प्रणाम करने के फायदे , प्रणाम करने का तरीका, प्रणाम करने की विधि, प्रणाम करने का सही तरीका, प्रणाम करने का महत्व, प्रणाम करने योग्य, प्रणाम करने का मंत्र, प्रणाम करने के तरीके, इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए ! संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।
इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 74 को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
Raamaayan mein Pranaam karane ka Mahatv,
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारी जनता ! बिना आध्यात्मिकता के राजनीति में शांति नहीं आ सकती । संतों ने जगतकल्याणार्थ आध्या त्मिकता के प्रचार का कार्य किया और आज भी वही बात चल रही है । .....इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव--Good culture, work of saints, improvement of person with satsang, benefits of salutation, preaching of Ramayana, what to do in the morning, benefits of celibacy, external worship means, worship for meditation of mind, chanting meditation, ashtang namaskar, Importance of spiritual education,.....आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए
७५. उत्तम संस्कृति
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !
बिना आध्यात्मिकता के राजनीति में शांति नहीं आ सकती । संतों ने जगतकल्याणार्थ आध्यात्मिकता के प्रचार का कार्य किया और आज भी वही बात चल रही है ।
हमलोग सुधरे हुए कम हैं । अच्छे आचरण से चलें , यही सुधार है । अच्छा सुधार बिना अच्छे संग और अच्छी विद्या के नहीं हो सकता ।
भगवान बुद्ध का वचन है - जो बूढ़ों को प्रणाम और उनका आदर करते हैं , उनकी चार चीजें बढ़ेगी - आयु , सुख , सुन्दरता और बल ।
उत्तम संस्कृति के लिए बड़ों का आदर और उनके सामने में नम्र अवश्य रहें और अपने से छोटों को प्यार करें । तुलसीकृत रामायण पढ़िए । कितना अच्छा कहा गया है कि प्रातकाल उठिकै रघुनाथा । मात पिता गुरु नावहिं माथा ॥
हमलोग राम के नमूने पर चलें तो हमारा सुधार हो । शील धारण करें । शील निभाना है तो आवश्यक यह है कि जिस काम के लिए जो व्रत है , उसमें मजबूत रहें । आर्य - संस्कार में विद्यार्थी ब्रह्मचर्य का पालन करते थे । आचार्य , गृहस्थ होते हुए भी ब्रह्मचर्य का पालन करते थे । ब्रह्मचर्य व्रत पर बहुत ख्याल रखना चाहिए । जहाँ ब्रह्मचर्य पर ख्याल नहीं है , वहाँ ओजपूर्ण तेज नहीं हो सकता । विद्या - ग्रहण की शक्ति पूर्णतया विकसित नहीं हो सकती । सभी विद्यालयों - महाविद्यालयों में आध्यात्मिक परिषद् का रहना अच्छा है । आध्यात्मिक पुस्तकालय भी हो । हमारे प्यारे विद्यार्थीगण भी अध्यात्मज्ञान को अपने मस्तिष्क में रखें ।
ईश्वर भक्ति करनी चाहिए । बाह्य पूजा का सार यह है कि उसके द्वारा भक्त अपना भाव भगवान को अर्पण करता है । जप , स्तुति , प्रार्थना , प्रेयर ( prayer ) - सब कुछ कीजिए । मन की एकाग्रता के लिए कीजिए । एकाग्रता के लिए प्राणायाम की उपयोगिता मानी जाती है । अच्छी संस्कृति के लिए झूठ , चोरी , नशा , हिंसा और व्यभिचार नहीं करें ।
प्यारे विद्यार्थियो ! विद्या सीखो । मन से पढ़ो । अच्छे मन से पढ़ो । सांसारिक कामों को भी करो , किंतु अनासक्त होकर । यही हमारे यहाँ की आध्यात्मिक शिक्षा है ।०
इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 76 को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि रामायण में प्रणाम करने का महत्व, प्रणाम करने का मंत्र, संतो के कार्य, व्यक्ति का सुधार, मन की एकाग्रता के लिए पूजा-पाठ, जप-ध्यान; प्रणाम करने के फायदे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का संका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर |
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S75, Importance of bowing in Ramayana ।। महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा ।। दि.18-4-1954ई.
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
9/23/2020
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