महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 101
प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर १०१वां, के बारे में। इसमें katha udaaharan sahit sumiran kee sampoorn jaanakaaree दी गई है।
इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष ) में पायेंगे कि- sumiran ka arth karata hai? paramaarthik drshti se bada kaun hai? paramaatma kab milate hain? raaja aur raanee kee katha, sumiran kitane prakaar ka hota hai? sumiran kee mahima, maanas dhyaan kya hai? sookshm maanav dhyaan kya hai? sumiran ka vistaar kahaan tak hai? इत्यादि बातों के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- sumiran ka sampoorn gyaan, shabd hee shabd bakhaana santo, santo bhajan simaran sunaie, saaranaam kya hai, 4 shabd kya hai, nepaalee saar shabd, saar shabd aur usakee dhun, nihakshar kya hai, saaranaam mantr, shabd hee shabd bataana, kabeer saaheb ke bhajan, simaran ka arth kya hai, sumiran ka mahatv, smaran ka arth, sumiran bhajan, इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए ! संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।
इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 100 को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
सुमिरन की संपूर्ण जानकारी देते सद्गुरु महर्षि मेंहीं |
Complete knowledge of Sumiran
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- प्यारे लोगो ! सुमिरन से सुख होत है , सुमिरन से दुख जाय । कह कबीर सुमिरन किये , साई माहिं समाय ॥ .....इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----What does Sumiran mean? Who is bigger than charity? When does the divine meet? How is Sumiran, the legend of king and queen? Glory of Sumiran, what is psyche meditation? What is subtle human meditation? To what extent does Sumiran extend?.......आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-
१०१. सुमिरण से क्या होता है ?
प्यारे लोगो !
सुमिरन से सुख होत है , सुमिरन से दुख जाय । कह कबीर सुमिरन किये , साई माहिं समाय ॥ राजा राणा राव रंक , बड़ा जो सुमिरे नाम । कह कबीर सोइ पीव को , जो सुमिरे निःकाम ॥ नर नारी सब नरक है , जब लगि देह सकाम । कह कबीर सोइ पीव को , जो सुमिरे निःकाम ॥ सुमिरन से मन लाइये , जैसे दीप पतंग । प्राण तजे छिन एक में , जरत न मोड़े अंग ॥ सुमिरन से मन लाइए , जैसे नाद कुरंग । कह कबीर बिसरे नहीं , प्राण तजे तेहि संग । सुमिरन से मन लाइये , जैसे पानी मीन । प्राण तजे पल बिछुड़े , सत कबीर कहि दीन ॥
सुमिरण का अर्थ स्मरण करना है । तरह - तरह से सुमिरण या याद किया जा सकता है । सुमिरण करने से क्या गुण, क्या फल होता है? सो भी कहा । सुमिरण से सुख होता है , दुःख भाग जाता है । अंत में परमात्मा मिल जाते हैं । राजा - रंक कोई हो , बड़ा वही है जो सुमिरण करता है । धन में बड़ा हो , प्रतिष्ठा में बड़ा हो , जाति में बड़ा हो ; किंतु सुमिरण नहीं करता है , तो पारमार्थिक दृष्टि से बड़ा नहीं है । फल - सहित होकर जो भजन करता है , वह ठीक नहीं । जो निष्काम होकर भजन करता है , वह परमात्मा को पाता है । जैसे घर से सभी चीजों को निकाल देने से खाली जगह बच जाती है , उसी तरह हृदय से सभी फलाशा छोड़ देने पर हृदय में केवल ईश्वर रह जाएंगे । सांसारिक सभी इच्छाओं को छोड़ दो और भजन करो , तो परमात्मा मिल जाएंगे ।
एक राजा की बहुत - सी रानियाँ थीं । विदेश जाते समय राजा ने सभी रानियों से पूछा - ' तुम्हारे लिए क्या लाऊँ । ' सभी ने अपनी - अपनी इच्छानुकूल चीजें लाने को कहा । किंतु एक रानी ने कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए , केवल आप कुशलपूर्वक मेरे पास आ जाइए । राजा विदेश से लौटकर आया तो सब रानियों को उनकी माँग के अनुकूल चीजें दी और अपनी उस रानी के पास चला गया , जिसने कुछ माँग नहीं की थी । अब सोचिए , जिसका राजा ही अपना हो गया , उसको क्या कमी रही ? सभी खजाना उसी का हो गया । इसी प्रकार परमात्मा जिसके हो जाएंगे , उसको किसी चीज की कमी नहीं रहेगी ।
सुमिरण तीन तरह से होता है - एक तो जोर-जोर से पुकारकर , दूसरा धीरे - धीरे बोलकर , जिसमें केवल होठ हिलते हैं और तीसरा है , जिसमें मन-ही-मन जपते हैं । मन - ही - मन जप करने से मन की स्थिरता आती है । नाम जपत स्थिर भया , ज्ञान कथत भया लीन । सुरतिशब्द एकै भया , जल ही बैगा मीन ॥
लोग मुँह से मिष्ट वचन , अश्लील वचन और कटु वचन बोलते हैं , किन्तु ईश्वर का नाम जपने के लिए एकाग्र मन होना चाहिए । बाहर क्या दिखलाइये , अंतर जपिये नाम । कहा महौला खलक से , पड़ा धनि से काम ॥ नाम जपत दरिद्री भला , टूटी घर की छान । कंचन मंदिर जारिदे , जहँ गुरु भक्ति न जान ।। नाम जपत कुष्टी भला , चुई चुई पडै जो चाम । कंचन देह केहि काम का , जामुख नाहीं नाम ।।
ईश्वर के गुण का वर्णन करते - करते जपनेवाला उस रंग में रंग जाता है । जो समझ - समझकर जपता है , वह ईश्वर के रंग में रंग जाता है । जैसे कंगाल पैसे को नहीं भूलता , वैसे ही पल - पल नाम को जपो , एक घड़ी भी मत छोड़ो , जैसे पनिहारी माथे पर गगरी लेकर चलती है और रास्ते में बातचीत भी करती जाती है । यह मानस ध्यान है । सुमिरन से मन लाइए , ज्यों सुरभी सुत माहिं । कह कबीर चारा चरत , विसरत कबहूँ नाहिं ।।
यह भी मानस ध्यान है । किंतु दोनों में अंतर है । गाय का बच्चा गाय के अंग - संग नहीं है ; किंतु पनिहारी की गगरी उसके अंग - संग मौजूद है , तब उस पर ख्याल रखती है । गौ और गौ के बच्चे की जो मिसाल दी गई है , उससे यह गगरी और पनिहारीवाली उपमा विशेष है । जो चिह्न आपके अंग - संग मौजूद है और साधन करके उसे कभी देख लिया , उसको यदि बराबर नहीं देख सकते हैं तो जिस स्थान पर वह चिह्न है , उस ओर आपका मन लगा रहे , सुरत उधर लगी रहे तो बहुत अच्छा है ।
दृष्टि - साधन में यदि आपने एक बार भी झलक देख ली और फिर वह नहीं देख पाते हैं तो उस ओर के लिए आपकी सुरत चलती रहेगी , उठी रहेगी , जिस ओर आपने देखा है । उसकी बारंबार याद आपको रखनी चाहिए । यह सूक्ष्म मानस ध्यान है । बाहर में रूप देखकर जो मानस ध्यान करते हैं , वह स्थूल मानस ध्यान है । यदि आप सूक्ष्म मानस ध्यान कर सकते हैं तो स्थूल मानस ध्यान करने की आवश्कता नहीं है । कबीर साहब ने कहा है सुमिरन सुरत लगाय के , मुख ते कबूं न बोल । बाहर का पट देयके , अंतर का पट खोल ॥
ब्रह्मज्योतियों को देखने से और अनहद ध्वनियों को सुनने से बाहर की कोई चीज याद नहीं आती । केवल परमात्मा याद आता है । इससे परमात्मा का प्रत्यक्ष ज्ञान तो नहीं होता , किंतु उसकी वृत्ति ऊपर उठी हुई होती है ।
कबीर साहब ने दीप और पतंग की मिसाल दी है , वह है - प्रत्यक्ष ब्रह्मज्योति में अपनी वृत्ति लगी रहे । नाद - कुरंग की जो मिसाल दी है , वह है - शब्द अभ्यासी को नादध्यान में उसी तरह रहना चाहिए । पानी और मछली की जो उपमा है , वह है - जैसे पानी को मछली पसन्द करती है , उससे अलग करने से वह जी नहीं सकती , उसी तरह काम करता हुआ या एकान्त में बैठा हुआ या बहुत लोगों में बैठा हुआ किसी भी तरह रहे , यदि उसकी सुरत उसमें लगी रहती है , तो वह मछली की तरह है । दीप और पतंग में ब्रह्मज्योति की उपमा है । नाद - कुरंग में शब्द अभ्यास का सहारा है । मानस जप , मानस ध्यान , दृष्टिसाधन और सुरत - शब्द - योग - सब कुछ सुमिरण के अंदर है ।
इसलिए कबीर साहब ने कहा है जप तप संयम साधना , सब सुमिरन के माहिं । कबीर जाने भक्तजन , सुमिरन सम कछु नाहिं ।। इसलिए सब किसी को इसकी तरकीब जानकर सुमिरण करना चाहिए । ०
इसी प्रवचन को शांति संदेश में प्रकाशित किया गया है उसे पढ़ने के लिए यहां दवाएं।
इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 102 को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि सुमिरण का अर्थ करता है? परमार्थिक दृष्टि से बड़ा कौन है? परमात्मा कब मिलते हैं? राजा और रानी की कथा, सुमिरन कितने प्रकार का होता है? सुमिरन की महिमा, मानस ध्यान क्या है? सूक्ष्म मानव ध्यान क्या है? सुमिरन का विस्तार कहां तक है? इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर |
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए शर्तों के बारे में जानने के लिए. यहां दवाएं।
S101, (क) Complete knowledge of Sumiran ।। महर्षि मेंहीं-Literature ।। दि.16-02-1955ई.
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
10/06/2020
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं:
प्रभु प्रेमियों! कृपया वही टिप्पणी करें जो सत्संग ध्यान कर रहे हो और उसमें कुछ जानकारी चाहते हो अन्यथा जवाब नहीं दिया जाएगा।