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S99, Importance of pratyahar in meditation yoga ।। गुरु महाराज अमृतवाणी ।। दि.15-02-1955ई.

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर / 99

प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के हिंदी प्रवचन संग्रह "महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर ९९वां, के बारे में। इसमें  बताया गया है कि सत्संग का उद्देश्य क्या है? ध्यान में प्रत्याहार क्या है?

इसके साथ ही आप इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष )  में  पायेंगे कि-  hari ras kahaan milata hai? satsang kyon hota hai? vaarshik satsang ka uddeshy kya hai? dhyaan mein pratyaahaar kya hai? vimal-vimal anahad dhvani ko kaun jaan sakata hai? vijay dilaane vaala rath kaun sa hai? bhajan kee mahima, bhajan bhed kya hai? dhyaan mein tarakkee ka rahasy,     इत्यादि बातों  के बारे में। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान इसमें मिलेगा। जैसे कि- yog kriya mein pratyaahaar se abhipraay hai? pratyaahaar yog kya hai? pratyaahaar se aap kya samajhate hain, yog mein pratyaahaar kya hai, pratyaahaar in hindee, satsang kyon, satsang kyon jarooraiai hai . satsang kyon karan chhaahiai, satsang kyon jarooraiai, satsang kyon karatai hain, satsang kyon karain kyonki satsang, satsang maiin kyon jaan chhaahiai,      इत्यादि बातें। इन बातों को जानने-समझने के पहले, आइए !  संत सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें। 

इस प्रवचन के पहले वाले प्रवचन नंबर 98 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।

सत्संग और प्रत्याहार क्या है ? पर चर्चा करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं
सत्संग और प्रत्याहार क्या है?

Importance of pratyahar in meditation yoga

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कहते हैं कि- धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! भजन - कीर्तन को सुनो , समझो और वैसा करो । इसीलिए भजन - कीर्तन होता है । .....इस तरह प्रारंभ करके गुरुदेव----Where do you find Hari Ras? Why does satsang happen? What is the purpose of annual satsang? What is pratyahar in meditation? Who can know Vimal-Vimal soundless? What is the chariot that brings victory? Glory to Bhajan, what is the difference between Bhajan? The secret of promotion in meditation,.......आदि बातों पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इन बातों को अच्छी तरह समझने के लिए पढ़ें-

९९ . भया जी हरि रस पी मतवारा

सत्संग और प्रत्याहार क्या है इसे समझाते हुए सद्गुरु महर्षि मेंही


विमल विमल अनहदधुनिबाजै , सुनतबनेजाकोध्यान लगे ।। सिंगी नाद संख धुनिबाजै , अबुझा मन जहाँ केलि करे । दह की मछलीगगन चढ़िगाजै , बरसत अमिरस ताल भरे ।। पछिम दिसाको चलली विरहिन , पाँच रतन लिए थार भरे । अष्ट कमल द्वादस के भीतर , सो मिलने की चाह करे ।। बारह मास बुन्द जहाँ बरसै , रैन दिवस वहाँ लखि न परे । बिरला समुझि परे वहि गलियन , बहुरिन प्रानी देह धरे ॥ काया पैसि करम सब नासै , जरा मरन के संसे गये । निरंकार निर्गुन अविनासी , तीनि लोक में जोति बरे ।। कहै कबीर जिनको सतगुरु साहब , जन्म जन्म के कष्ट हरे । धन्य भाग जिनकी अटल साहिबी , नाम बिना नर भटकि मरे ।। -संत कबीर साहब

भया जी हरिरस पीमतवारा । आठ पहर झूमत ही बीते , डारिदियो सब भारा ॥ इडा पिंगला ऊपर पहुँचे , सुखमन पाट उघारा । पीवन लगे सुधारस जब ही , दुर्जन पड़ी बिडारा ॥ गंगजमुनबीच आसनमारयो , चमक चमकचमकारा । भँवर गुफा में दृढ़ वै बैठे , देख्यो अधिक उजारा ॥ चित स्थिर चंचल मनथाका , पाँचों का बल हारा । चरणदास कृपासूं सहजो , भरम करम भयो छारा ॥ -भक्तिन सहजोबाई

धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! 

     भजन - कीर्तन को सुनो , समझो और वैसा करो । इसीलिए भजन - कीर्तन होता है । ' विमल विमल अनहद धुनि ' तब मालूम होती है , जब ध्यान किया जाता है । हरि रस पी मतवारा । ' हरि - रस पीकर मतवाला हो गया । यह कहाँ होता है ? तो कहा इड़ा - पिंगला के ऊपर सुषुम्ना पाट उघरने पर - ' इडा पिंगला ऊपर पहुँचे सुखमन पाट उघारा । ' आपका मन भजन में लगे , मन में भजन करने का प्रेरण हो , इसलिए वार्षिक सत्संग होता है , प्रदर्शनी के लिए नहीं

      हरि - रस किसको कहते हैं ? जब ध्यान लगेगा और विमल-विमल अनहद ध्वनि सुनोगे , उसमें जो आनंद होता है , वहीं हरि - रस होता है दृष्टियोग करते हुए पहला दृश्य अन्धकार रह गया , तब तुम प्रत्याहार करते रहे , धारणा नहीं हुई । प्रत्याहार में ख्याल नहीं रहता है , मन भागता रहता है । कभी - कभी दूर - दूर तक , देर - देर तक ख्याल नहीं रहता है । बहुत देर के बाद ख्याल आता है कि ध्यान करने के लिए बैठा था , मन कहाँ - कहाँ चला गया , यह लँगड़ा प्रत्याहार है जिसको प्रत्याहार नहीं होगा , उसको धारणा कहाँ से होगी । धारणा ही नहीं होगी , तो ध्यान कहाँ से होगा ? इसीलिए मुस्तैदी से भजन करो । भजन करने की प्रेरणा हो , इसलिए सत्संग है । मन बहलाव के लिए सत्संग नहीं है ।

      विमल - विमल अनहद ध्वनि होती है , सो बिना ध्यान लगे क्या सुनेगा ? जब बाहर के बाजे - गाजे और मधुर संगीत को सुनकर भी मन उस ओर लग जाता है , तब अंदर की विमल - विमल अनहद ध्वनि सुनने में कैसा मन लगेगा , कहा नहीं जा सकता । बिना ध्यान किए विमल - विमल अनहद ध्वनि और हरि - रस को कोई नहीं जान सकता

      हरि - रस को ही गोस्वामी तुलसीदासजी ने ब्रह्म - पीयूष कहा है ब्रह्मपियूष मधुर शीतल जो , पै मन सो रस पावै । तौकत मृग जल रूप विषय , कारण निशिवासर धावै ।।

     जिसको विशेष पदार्थ मिल गया , वह विषयों में क्यों दौड़ेगा ? जो कोई कहे कि मुझे हरि - रस मिल गया तो उसको देखिए कि वह विषय - रस की ओर दौड़ता है या नहीं । यदि मन विषय - पदार्थ की ओर दौड़ता है और वह कहता है कि मुझे हरि - रस मिला है तो वह झूठा आदमी है , वह झूठ कहता हैश्रीगुरुपद नख मनिगन जोती । सुमिरत दिव्यदृष्टि हिय होती । 

     यहाँ हरि - रस है । सहजोबाई कहती हैं - ' भया जी हरिरसपी मतवारा । ' हरि - रस के लिए सबको कोशिश करनी चाहिए । बिना हरि - रस के अपना कल्याण नहीं होगा और न दूसरे की भलाई हो सकती है । केवल कर्मयोगी होने से नहीं होगा । कर्मयोगी बनने के लिए ऐसा कहना कि श्रीराम और श्रीकृष्ण भजन - ध्यान नहीं करते थे , ठीक नहीं । 

     श्रीराम के भजन - ध्यान के लिए तो गोस्वामीजी ने ऐसा वर्णन किया है कि वे ध्यान में जैसे डूबे ही रहते थे । भगवान श्रीराम केवल रावण को मारने और कुम्भकरण को पछाड़ने के लिए ही नहीं थे , जब श्रीराम रावण से युद्ध करने के लिए जाते हैं , तो विभीषण कहते हैं - ' नाथ न रथ नहिं तन पदत्राणा । ' हे नाथ ! आप न तो रथ पर सवार हैं और न आपके पैर में जूते हैं । इस बलवान शत्रु को कैसे मारिएगा ? श्रीरामजी ने कहा सुनहु सखा कह कृपानिधाना । जेहि जय होय सो स्यन्दन आना ।। सौरज धीरज तेहि रथ चाका । सत्यशील दृढ़ध्वजापताका ।। बल बिवेक दम परहित घोरे । छमा कृपा समता रजु जोरे ।। ईस भजन सारथी सुजाना । बिरति चर्म संतोष कृपाना ।। दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा । बर बिज्ञान कठिन कोदंडा ।। अमलअचल मन त्रोन समाना । समजमनियम सिलीमुख नाना ।। कवच अभेद विप्र गुरुपूजा । एहि सम विजय उपाय न दूजा ।। सखा धरममय अस रथ जाको जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताको । 

     कृपानिधान रामजी ने कहा कि हे मित्र ! सुनो , जिससे जीत होती है , वह दूसरा ही रथ है शूरता और धीरज उस रथ के पहिए हैं, सत्यता मजबूत ध्वजा और शीलता पताका है । सारासार का ज्ञान बल , इन्द्रियों की रोक और परोपकारी घोड़े हैं ।  क्षमा , कृपा और समता की रस्सी से जुड़े ( बँधे ) रहते हैं । ईश्वर का भजन अति चतुर सारथी है , वैराग्य ढाल और सन्तोष तलवार है । दान , फरसा , ज्ञान तेज बर्थी और श्रेष्ठ विज्ञान ( अनुभवज्ञान ) कठिन धनुष है । निर्मल और स्थिर मन तरकश के समान है ; शम , यम और नियम नाना प्रकार के तीर हैं । ब्राह्मण और गुरु की पूजा, नहीं छिदने योग्य सनाह ( जिरह बख्तर ) है , इसके समान विजय के लिए दूसरा उपाय नहीं है । हे सखा ! जिसके पास ऐसा धर्ममय रथ है उसको जीतने के लिए कहीं भी शत्रु नहीं है ।

      समता कैसे होगी ? समता ' शम ' से होगी ? ' शम ' मनोनिग्रह को कहते हैं । केवल मन में कर लेना कि ' सम ' है , हो नहीं सकता । कर्म से उसकी पहचान हो जाएगी । ' कवच अभेद बिप्र गुरु पूजा । ' विप्र का अर्थ यहाँ विद्वान है । ' ईस भजन सारथी सुजाना । ' ईश्वर का भजन सुजान सारथी है । कृष्ण अर्जुन के सारथी थे । जिसका सारथी है ईश - भजन , वह ईश - भजन नहीं करे तो सारथी कहाँ से मिले ।

     भगवान श्रीकृष्ण के लिए श्रीमद्भागवत में पढ़िए , वे नित्य ध्यान करते थे । यदि हम कहें कि सब कोई संध्या के समय ध्यान करते थे और श्रीकृष्ण घोड़े की परिचर्या करते थे , कितनी बुरी बात है ! ऐसा कहना कि केवल काम ही करो , ध्यान नहीं करो कितना आश्चर्य है ! पाखाने के लिए , बोलने के लिए और गप - शप करने के लिए समय मिलता है और भजन करने का समय नहीं मिलता है ! पखाना जाने से शरीर के भीतर का मल निकलता और ध्यान करने से चित्त का मल निकलता । देश का काम करते हो और पखाना भी जाते हो । इसी तरह देश का काम भी करो और ध्यान भी करोऐसा नहीं समझो कि ध्यान करने लगेगा , तो देश का काम नहीं करेगा । जो ऐसा समझते हैं , उनकी भूल है

      इडा पिंगला ऊपर पहुँचे , सुखमन पाट उघारा । सहजोबाई ने कहा है । यही भजन - भेद है । जो भजन करता है , वह समझता है । शब्दार्थ करने की आवश्यकता नहीं । इड़ा बायीं धार और पिंगला दायीं धार और मध्य में सुषुम्ना है वही ब्रह्म - पीयूष है । ध्यान में किसी ने विघ्न किया होगा , इसलिए कहा ' दुर्जन पड़ी बिडारा । ' इसी को दूसरी तरह से कहा ' गंग जमुन बीच आसन मारयो , चमक चमक चमकारा । भँवर गुफा में दृढ़ वै बैठे , देख्यो अधिक उजारा ॥ ' ' पिंगल दहिन गंग सूर्य , इंगल चन्द जमुन बाई । सरस्वती सुखमन बीच , चेतन जलधार नाई ॥ ' 
      चमक चमक चमकारा ' उनको प्रकाश होने लगा, भँवर गुफा में थिर हो गई फिर क्या हुआ ? चित्त स्थिर हुआ , चंचल मन थक गया और पाँचों ज्ञानेन्द्रियों का बल हार गया । सहजोबाई कहती है कि ऐसा जो हुआ , सो गुरु चरणदासजी की कृपा से हुआ ।०


 इस प्रवचन के बाद वाले प्रवचन नंबर 100 को पढ़ने के लिए   यहां दबाएं


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि हरि रस कहां मिलता है? सत्संग क्यों होता है? वार्षिक सत्संग का उद्देश्य क्या है? ध्यान में प्रत्याहार क्या है? विमल-विमल अनहद ध्वनि को कौन जान सकता है? विजय दिलाने वाला रथ कौन सा है? भजन की महिमा, भजन भेद क्या है? ध्यान में तरक्की का रहस्य। इतनी जानकारी के बाद भी अगर कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। उपर्युक्त प्रवचन का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है।




सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
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S99, Importance of pratyahar in meditation yoga ।। गुरु महाराज अमृतवाणी ।। दि.15-02-1955ई. S99, Importance of pratyahar in meditation yoga ।। गुरु महाराज अमृतवाणी ।। दि.15-02-1955ई. Reviewed by सत्संग ध्यान on 10/04/2020 Rating: 5

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