प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के इस प्रवचन सीरीज में आपका स्वागत है। आइए आज जानते हैं-संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) प्रवचन संग्रह "महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर" के प्रवचन नंबर 498 के बारे में। इसमें बताया गया है कि मनुष्य शरीर की विशेषता मनुष्य शरीर ही स्वर्ग, नरक और मोक्ष में जाने की सीढ़ी हैं। स्वर्ग जाने की सीढ़ी क्या है? स्वर्ग में कौन कौन से लोग जाते हैं? स्वर्ग के कितने दरवाजे होते हैं? स्वर्ग में जाने के लिए क्या करना पड़ेगा? इत्यादि बातें। आइये इन बातों को जानने के पहले गुरु महाराज का दर्शन करें-
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सत्संग सुधा प्रवचन नंबर 498
Stairway to heaven and hell and salvation
प्रभु प्रेमियों ! इस प्रवचन (उपदेश, अमृतवाणी, वचनामृत, सत्संग सुधा, संतवाणी, गुरु वचन, उपदेशामृत, ज्ञान कथा, भागवत वाणी, संतवचन, संतवचन-सुधा, संतवचनामृत, प्रवचन पीयूष ) में आप निम्नलिखित बातों को पायेंगे-- 1. मनुष्य शरीर देवताओं को दुर्लभ क्यों है? 2. जीव को उपार्जन के लिए क्या करना चाहिए? 3. सत्संग कितने तरह का होता है? 4. मनुष्य शरीर पाकर क्या करना चाहिए? 5. बाहरी और आंतरिक सत्संग क्या है? 6. सत्संग करने से क्या लाभ है? इत्यादि बातें। आइये उपरोक्त बातों को अच्छी तरह समझने के लिए निम्नलिखित प्रवचन का पाठ करें--
S498 मनुष्य शरीर की विशेषता
सत्संग सुधा प्रवचन नंबर 498
"बन्दों गुरुपद कंज, कृपासिन्धु नररूप हरि ।
महामोह तमपुंज,जासु वचन रविकर निकर ।।"
प्यारे लोगो !
शांति संदेश कभर
हमलोगों को ईश्वर ने कृपा करके मनुष्य-शरीर का दान दिया है। यह शरीर ऐसा है कि देवताओं को भी दुर्लभ है। छोटे जीवों की बात ही क्या है ! यह शरीर ऐसा है कि चाहो तो नरक की ओर चले जाओ, चाहे स्वर्ग की ओर चले जाओ, चाहे स्वर्ग से परे परम मोक्ष-निर्वाण है, वहाँ पहुँच जाओ। यह शरीर ऐसा ही है। इस शरीर को काम में लाना चाहिये ।
पहले तो हमलोग संसार को देखते हैं। संसार में जीविकोपार्जन अत्यन्त आवश्यक मालूम पड़ता है। जो जिस योग्य हैं, उनको उसी योग्य काम करना चाहिये। अगर कोई किसान है, तो उसको खेती करनी चाहिये। अगर कोई किसान नहीं है, वैश्य है, तो व्यापार में मन लगाना चाहिये। जो इन दोनों तरह के नहीं हैं, तो वे सेवा कर्म करते हैं।
मनुष्य, मनुष्य की सेवा भी करता है और अपने उद्धार के लिये अपवर्ग का काम भी करता है। इस लिये इस तरह का काम भी करते रहना चाहिये ।
मोक्ष मार्ग पर
सबसे उत्तम बात यह है कि मनुष्य-शरीर चला गया तो अपवर्ग हाथ नहीं आवेगा, इसलिये अपवर्ग की ओर ज्यादे-से-ज्यादा जोर देना चाहिये। मोक्ष को ओर चलना ही भक्ति है। इसका लसंग एक बार लग जाता है, तो करते-करते किसी-न-किसी एक जन्म में निर्वाण को प्राप्त करता है। तब वह किसी अनेतिक काम की ओर नहीं झुकता है। असल में वह काम होता है सत्संग से । बिना सत्संग से यह भक्ति का काम नहीं होता है। सत्संग में है- सत् और संग, अर्थात् सच्चा संग अच्छा संग। इसमें भो दो प्रकार हैं, एक तो ऐसा जो अभी हमलोग एक साथ बैठकर सत्संग कर रहे हैं, यह बाहर का सत्संग है। दूसरा अन्दर का सत्संग है, वह है ध्यान। इस शरीर के अन्दर रहने वाला जीवात्मा है। इसको ईश्वर से मिलाना अन्दर का सत्संग है।
यदि हम अपने शरीर को समझते हैं तो इसी शरीर तक हमारे जीवन का अन्त नहीं है। जैसे हम कपड़ा पहनते हैं, पुराना होनेपर उसको छोड़कर नया पहनते हैं, उसी तरह नाना देहों को छोड़ते हुए इस मनुष्य-देह में आये हैं। फिर इस मनुष्य-देह से भी दूसरी-दूसरी मनुष्य-देहों में जायेंगे और भक्ति करते हुए अन्त की मनुष्य-देह में निर्वाण यानी मोक्ष को प्राप्त करेंगे ।
आपलोगों ने तीन दिनों तक सत्संग सुना है। इसका लसंग आपलोगों को लग जायगा ।
आपलोग अभी जो इस घर में सत्त्संग कर रहे हैं, इस घर के अतिरिक्त और घर बनाइये, जिसमें केबल सत्संग ही हो। गरीबों को अवश्य ही कुछ-न-कुछ देकर और शुभ वचन कहकर खुश कोजिये ।∆
( प्रातःस्मरणीय अनन्त श्री विभूषित परम पूज्य सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज का यह प्रवचन पश्चिम बंगाल के मालदह नगर में दिनांक २५-१०-८१ ई० को अपराह्नकालीन सत्संग के अवसर पर हुआ था । )
नोट- इस प्रवचन में निम्नलिखित रंगानुसार और विषयानुसार ही प्रवचन के लेख को रंगा गया या सजाया गया है। जैसे- हेडलाइन की चर्चा, सत्संग, ध्यान, सद्गगुरु, ईश्वर, अध्यात्मिक विचार एवं अन्य विचार ।
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सुति पुरान सबको मत यह सतसंग सुदृढ़ धरिये ।
- गो० तुलसीदास जी महाराज
कौन जतन बिनती करिये ।
निज आचरन विचारि हारि हिय, मानि जानि डरिये ॥१॥
जेहि साधन हरि द्रवहु जानि जन, सो हठि परिहरिये ।
जाते विपति जाल निसिदिन दुख, तेहि पथ अनुसरिये ।।२॥
जानत हूँ मन बच्चन करम परहित कीन्हें तरिये ।
सो विपरीत, देखि परसुख बिनु कारन ही जरिये ॥३॥
स्रति पुरान सबको मत यह सतसंग सुदृढ़ धरिये ।
निज अभिमान मोह ईर्षा वस, तिनहि न आदरिये ॥४॥
संतक सोइ प्रिय मोहि सदा जाते भवनिधि परिये ।
कहौ अब नाथ ! कौन बलतें संसार-सोक हरिये ।।५।।
जब-कब निज करुना-सुभावतें, द्रवहु तौ निस्तरिये ।
तुलसिदास विस्वास आन नहिं, कत पचि पचि मरिये ।।६।।
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शांति संदेश में प्रकाशित प्रवचन नंबर 497
सत्संग सुधा प्रवचन नंबर 498 क
सत्संग सुधा प्रवचन नंबर 498ख
संतवाणी-सुधा सटीक
विभिन्न तीर्थ
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प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के इस प्रवचन का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि मनुष्य शरीर ही स्वर्ग, नरक और मोक्ष में जाने की सीढ़ी हैं । स्वर्ग जाने की सीढ़ी क्या है? स्वर्ग में कौन कौन से लोग जाते हैं? स्वर्ग के कितने दरवाजे होते हैं? स्वर्ग में जाने के लिए क्या करना पड़ेगा? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
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S498 स्वर्ग नरक और मोक्ष में जाने की सीढ़ी || Stairway to heaven and hell and salvation
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/30/2018
Rating: 5
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प्रभु प्रेमियों! कृपया वही टिप्पणी करें जो सत्संग ध्यान कर रहे हो और उसमें कुछ जानकारी चाहते हो अन्यथा जवाब नहीं दिया जाएगा।
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